निताई 14

🌸जय श्री राधे🌸  💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 1⃣4⃣

श्री निमाई  मिलन

         🌿श्री नवद्वीप में भगवान श्री विश्वंभर - श्री निमाई चांद गया यात्रा से लौट आए थे और भगवन्नाम के प्रचार द्वारा अपना अद्भुत स्वरूप प्रकाश कर चुके थे । एवं अपने परिवार जनों के साथ दिन रात संकीर्तन रस सागर में गोते ले रहे थे । किंतु प्राणप्रिय भाई श्री निताई चांद के बिना वे अपने को अकेला और अधूरा अनुभव कर रहे थे।
            🌹 उनके बिना कभी कभी अति व्याकुल हो उठते। जिनसे मिलने के लिए स्वयं भगवान व्याकुल होंगे फिर वह क्या उनसे दूर कहीं रुक सकता है ?श्री निताई चांद भी जान गए प्रभु अब मुझे बुला रहे हैं और उन्होंने नवदीप में अपने स्वरूप का पूर्ण प्रकाश कर दिया है । झट चल दिए गंगा के वेग की तरह नवदीप की ओर ।
         🌿  नवद्वीप में आकर श्री निताई चांद श्री विश्वंभर देव जी से जाकर अपने आप नहीं मिले ।वहां नंदनाचार्य के घर जाकर रुक गए परम श्रेष्ठ भागवत थे नंदना चार्य । सूर्य के समान महा तेजस्वी श्री निताई चांद का अद्भुत प्रकांड शरीर , महा अवधूत वेश , निरंतर कृष्ण नाम उच्चारण , बीच-बीच में मदोन्मत्त होकर हुंकार , आजानुलंबित भुजाएं कोटि कोटि चंद्रविनंदित मधुर मुस्कान ऐसे श्री नित्यानंद चैतन्य धाम को अपने घर में प्राप्त कर श्री नंदन आचार्य फूले न समाए ।
         🌹 अनेक पूजा सामग्री से पूजन किया। सादर भिक्षा कराई प्रभुपाद को । मेरे नवद्वीप आने की खबर किसी को ना मिले । ऐसा मेरा आग्रह है आपसे श्री निताई चांद ने श्री नंदनाचार्य जी से कहा । कैसा अद्भुत व वक्रीम प्रेम है प्यारे के लिए। प्राण व्याकुल हैं मिलने के लिए श्री वृंदावन से नवद्वीप तक चले आए हैं परंतु करुणामय की करुणा के प्रकाश के लिए छुपा रहे हैं अपने को ।
         🌿परंतु सूर्य छुपता नहीं कितना भी छिपाएं ।चंद्र की उज्जवल किरण किसी एक कोठी में बंद की जा सकती है  ? फिर छिपाव भी किससे ? विभु तत्व सर्व अंतर्यामी घट घट वासी श्री गौरांग नदिया निवासी थे जान गए श्री विश्वंभर देव बड़े भाई श्रीनिताई चांद की प्रेम वक्रीमा। अतिशय आनंदित हो उठे । नाच उठा हृदय उनके मिलने के लिए। दो-चार दिन पहले ही समस्त वैष्णवों से एकाएक बोल चुके थे श्री गौरांग- कि एक महापुरुष नवद्वीप में आने वाले हैं ।
  🌹 आज यूं ही विष्णु पूजा समाप्त कर श्रीनिवास निमाई वैष्णव के बीच पधारे तब कहने लगे आज मैंने एक अद्भुत स्वप्न देखा है। वह यह है की एक विशाल ताल ध्वज रथ मेरे दरवाजे पर आकर खड़ा हुआ। उसमे बैठा था एक महा प्रकांड शरीर पुरुष जिसके कंधे पर एक मूसल था, परंतु कैसी चंचल गति थी उसकी। प्रेम उन्मत्त गजराज भी लज्जित होता था । उसके बाम हाथ में एक काले रंग की वेत्रबद्ध सुराही थी । नील रंग का वस्त्र कटि में और सिर पर उसने नीले रंग का वस्त्र बांध रखा था।

क्रमशः

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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