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🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 2⃣1⃣
                 दीक्षा ग्रहण लीला

🌿ऐसा विलक्षण नृत्य, इतना उद्दंड किंतु मनोहर नृत्य की श्री गौरांग के अपने चरण उनके सिर को छू जाते और श्री निताई चांद की पद पटकन से तो पृथ्वी कांप उठी भूकंप है क्या ? समस्त वैष्णव चिंतित हो उठे । चिंता की बात कुछ नहीं थी, आज श्री विश्वंभर अपने भाई श्री निताई चांद के निज स्वरूप को भक्तों के सामने प्रकाशित करना चाहते थे।
           
        🌹 हुआ यह कि निताई चांद उछलकर भागवत सिंहासन पर जा बैठे। जाग उठा बलराम- भाव। मद लाओ ! मद लाओ! गर्जना करने लगे ।श्री गौरांग ने कहा- भैया हल मूसल मुझे दे दो। श्री निताई चांद ने झट हाथ बढ़ाएं और श्री विश्वंभर के हाथ में पकड़ा दिए हल मूसल। किसी को कुछ ना दिखाई दिया।क्या दिया श्री निताई चांद ने और क्या लिया श्री निमाई चांद ने। अवश्य देखा हल मूसल को उन्होंने जिन्हें प्रभु ने देखने की कृपा शक्ति प्रदान की ।

       🌿अब तो दोनों हाथ उठाकर लाओ वारुणी! देओ वारुणी! बार बार उच्च स्वर में पुकारे जा रहे थे श्री नित्यानंद उन्मत्त की तरह । कौन सी वाली वारुणी थी यह ? वरुण देवता की कन्या थी जो अपने पिता की प्रेरणा से श्री वृंदावन के कदम्ब वृक्षों के कोटर से टपक कर समस्त भवन को अपने सुगंध द्वारा आमोदित कर देती थी--

वरुण प्रेरिता देवी वारुणी वृक्ष कोटरात ।
पतंति तद्वनम सर्वं स्वगंधे नाध्य वासयेत।।
     
        🌹 श्री सनातन गोस्वामी पादने वैष्णव तोषिणी में लिखा है श्री हरिवंश प्रसंगानुसार वरुण देव की कन्या है वारुणी जो वारुणी नाम मदिरा की अधिष्ठात्री है और जिसने अपने पिता की आज्ञा से अपने को श्री बलराम जी को समर्पित कर दिया था और वह श्री वृंदावन के कदंब वृक्षों के कोटरों से धारा रूप में प्रवाहित होती थी।

         🌿श्री श्रीधर गोस्वामी पाद ने कहा- वारुणी सुधया स्टोत्पन्ना मदिरा।" अमृत के साथ-साथ उत्पन्न हुई थी यह वारुणी मथुरा पूर्ण आवेश का था श्री बलराम जी का श्री निताई चांद में पर कौन समझे उनकी बात को कौन जानता था इस रहस्य को एक दूसरे के मुंह को देखने लगे सब एक उपाय सूझा भक्तों को एक घड़ा निर्मल जल गंगाजल काला कर आगे रख दिया ।श्री निताई चांद तो मत्त होकर पान करने लगे सब को बांट बांट कर खिलाने लगे सर्व पापनाशिनी गंगाजल की वारुणी।

         🌹मानो सब के सब कादंबरी जी बात पान रहे थे। प्रभु श्री निताई तो लोटपोट प्रेम रस आवेश में कभी हंसने लगते।  कहां गया दंड, कमंडल कहां जा पड़ा. वस्त्र भी शरीर पर है कि नहीं कोई पता नहीं अत्यंत चंचल हो उठे परमवीर धरणीधर।श्री विश्वम्भर प्रभु ने दोनों भुजाओं में ले लिया भाई निताई को और अनेक यत्नपूर्वक उन्हें स्थिर किया। बहुत रात बीतने पर अपने निवास स्थान पर चले आए गौरांग । परंतु श्री निताई चांद ने श्रीवास जी के घर में ही रात्रि को विश्राम किया।

क्रमशः  .....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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