निताई 17

🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 1⃣7⃣

                🌿  श्री कृष्ण- ध्यानात्मक इस श्लोक को सुनते ही श्रीनिताइ चांद तो मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़े। श्री गौरांग श्रीवास को पुन:-पुन: इसी श्लोक को गान करने की आज्ञा दे रहे थे। कुछ देर बाद चेतना आई प्रभु श्रीनिताई चांद को, परंतु रोने लगे जोर से। श्लोक को बार-बार सुन कर वे उन्मत हो उठे। सिंहनाद की तरह गर्जना करते हुए श्रीनिताई चांद उछलते हैं। बार-बार पृथ्वी पर जोर से गिरते हैं। समस्त भक्त वृंद रक्ष कृष्ण -हे कृष्ण रक्षा करो'- पुकार रहे हैं -अश्रुधारा एवं रज से सारा शरीर श्री निताई चांद का लथपथ हो रहा है। श्री विशंभर गौरांग का मुखचंद्र देख-देखकर लंबी- लंबी श्वास छोड़ते हैं। रोते हैं कभी जोर से अट्हास करते हैं, नाच उठते हैं, पछाड़ खा जाते हैं, दोनों कामों को सिकोड़कर आकाश में बहुत ऊंचे कूदते है।
             🌿 अद्भुत थे यह सब सात्विक विकार श्री निताई चांद के श्री गौरांग ने बढ़कर आलिंगन कर लिया श्री निताई चांद को।  श्रीअनंतदेव रुप से जो समस्त पृथ्वी को अपने शिर पर धारण करते हैं आज वह श्री विशंभर की दोनों भुजाओं में आलिंगन हो रहे थे। फिर क्या सीमा रहती, इनके परमानंद की। साक्षात देहधारी नित्यानंद के दर्शन कर आज सब भक्तजन नित्यानंद में डूब गए सब चुपचाप खड़े थे, परंतु नेत्रों से अजस्र प्रेमाश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। श्री मन्नमहाप्रभु बोले -आज मेरे भाग्य की क्या सीमा ? भक्ति योग मूर्तिधारी चारों वेदों के सार को मैंने साक्षात अपने नेत्रों से देखा है।
              🌿यह वचन केवल स्तुति में गुण महिमा को ही प्रकाशित करने वाले नहीं हैं। तथ्य एवं परम सत्य है। श्रीमन्नमहा प्रभु के ये वचन। चारों वेदों का सार है भक्तियोग। भक्ति योग का साधारण अर्थ है भक्ति -मार्ग के साधन।  चारों वेदों में जितने भी प्रकार के साधन कहे गए हैं । उनमें सर्वश्रेष्ठ है भक्ति मार्ग का साधन। फिर भक्ति मार्ग के साधनों में भी भी शुद्ध भक्ति या प्रेम -भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार चारों वेदों में कहे गए समस्त साधनों में प्रेम भक्ति ही सार वस्तु है। श्री निताई चांद में उपयुक्त जिन सात्विक विकारों का वर्णन किया गया है। उससे उनकी प्रेम भक्ति भी लक्षित होती है। श्री चैतन्य भागवत के व्यास श्रीवृंदावन दास ने कहा - सबसे विचित्र बात यह है कि श्री निताई चांद में प्रेम भक्ति के साधन को किसी ने नहीं देखा। उन में  आरम्भ से प्रेम भक्ति का ही सब ने स्पष्ट दर्शन किया। इसलिए इस प्यार में जो भक्ति योग प्रभु ने कहा है वस्तुतः वह भक्ति योग से प्राप्त होने वाली प्रेम भक्ति ही अभिप्रेत है।

क्रमशः....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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