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🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 2⃣0⃣
                 
                   🌿व्यास पूजा🌿

🌺श्री निताई चांद श्री गौरांग के साथ अनेक आनंद कुतूहल करने लगे। श्री कृष्ण कथारस में समस्त नदियावासी भक्त विह्लल हो उठे जब से श्रीनिताई चांद नदिया में पधारे। आज चतुर्दशी का दिन था श्रीविशम्भर यकायक बोले -"श्रीपाद नित्यानंद। कल तो व्यास -पूर्णिमा है, आपकी व्यास पूजा कहां होगी ? श्री निताई चांद जान गए प्रभु का इशारा। झट श्रीवास पंडित का हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए बोले -"इस ब्राह्मण के घर।
            🌿श्री विशम्भर बोले -"श्रीवास! तुम्हारे ऊपर बड़ा बोझ पड़ेगा।" "न न प्रभो!  कुछ भी बोझ नहीं, आपकी कृपा से सब पूजा- सामग्री घर में ही मौजूद है। हां, पूजा- पद्धति पुस्तक मेरे यहां नहीं है सो मांग लाऊंगा।" श्रीवास ने कहा। श्री निताई निमाई प्रभु श्रीवास पंडित के घर की ओर चल ही दिए उसी समय अधिवास कीर्तन के लिए। अनेक भक्तगण साथ-साथ पीछे चल रहे थे। ऐसा लगता था श्री कृष्ण बलराम ही गोप गण के साथ सुशोभित हो रहे हैं। श्रीवास भवन में प्रवेश करते ही सब के सब प्रेमोन्मत हो उठे। श्रीमन महाप्रभु ने आदेश दिया।-" अपने जनों के सिवा और कोई अंदर न आने पावे, दरवाजा बंद कर दो।" दरवाजा बंद कर दिया गया।  फिर क्या था व्यास पूजा का शुभ अधिवास कीर्तन उल्लासपूर्वक उच्च ध्वनि से आरंभ हो गया। चारों तरफ भक्तजन गान करने लगे और मध्य में दोनों भाई विशाल भुजाएं उठाकर सुंदर नृत्य करने लगे।
                🌿अनेक दिन पीछे आज ऐसा संयोग हुआ था, दोनों एक साथ प्रेम में नाच उठे ब्रज की याद करते हुए। कितनी ऊंची हुंकार गर्जना कर रहे थे वे। उनके आनंद की सीमा न रही। कभी उच्चस्वर में रोने लगे, तो कभी पछाड़ खाकर पृथ्वी पर गिरने लगे पुलकित हो उठे दोनों के श्रीअंग,  स्वेद - वैवणर्य आनंद मूर्छा। विस्मित हो उठे नदियावासी भक्तजन। किसी ने ऐसे प्रेम विकार कभी न देखे थे। अलौकिक थे, महाअद्भुत थे सब विकार। प्रेममूर्ति प्रेम दात के थे यह प्रेमविकार ! आज स्वानुभावानंद में दोनों प्रभुपाद नाच रहे थे। एक दूसरे को गलकण्ठ कर जोर से रोने लगे एक दूसरे के चरण पकड़ना चाहते, परंतु कौन कम था इनमें, कोई भी चरण न छूने देता।  दोनों को अपने वस्त्र तक संभालने की सुधि न रही, भक्तजन भी कैसे संभालते, इन दोनों को ? जो त्रिभुवन को संभाले?  अखिल ब्रम्हांडो को स्थिर रखे,  जब वह ही अस्थिर हो  उठे तो उसे कौन संभाले ? दोनों कीर्तन - विहार में उनमत हो उठे, बाहर के कुछ सुध-बुध न रही। आनंद सागर में डूब गए।

क्रमशः....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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