सुंदर पद
बिंधे विलोचन चोर किशोरी,
मोहन चन्द्र चकोर किशोरी।
बरबस विवस किये मन मोहन,
नेक निरखि मुख मोरि किसोरी।
त्रिभुवन मोहन मन अलि राखे,
कनक कमल कुच कोर किशोरी।
पिय दृग चपल जुगल खग खंजन,
बांधे अलकन डोर किशोरी।
जय-जय नवल नागरी राधा,
बरसत प्रेम अथोर किशोरी।
लाज लगत निज ओर निहारे,
कस देखहुँ तब ओर किशोरी।
देखहु मन की उमंगे मेरी,
कैसी बढ़त बर जोर किशोरी।
तोहि तजि मैं निज ओर न देखौं,
तुम तौ लखौ मम ओर किशोरी।
मो हिय तप्त कीजिये सीतल,
नेक सींच दृग कोर किशोरी।
मन कुरंग बन विषय भुलानौ,
दीजिय तेहि रंग बोर किशोरी।
मन मेरो बाँधि राखिये लट सों,
विषय डोर सों छोर किशोरी।
जानी दृग कृपाल उमड़ेंगे,
बाढ़त कृपा हिलोर किशोरी।
भरि दृग देखि वारि कब डारौं,
कोटि प्राण तृण तोरि किशोरी।
ढरिहौ बान आपनी कबहूँ,
करिहौ भावती मोर किशोरी।
तेरे चरण कमल सों लागी,
हौंसें भोरी करोर किशोरी।
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