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🌸जय श्री राधे🌸 💐जय निताई 💐
🌙 श्री निताई चाँद🌙
क्रम: 1⃣8⃣
🌿कार्य - कारण के अभेद विवेचन से शुद्ध भक्ति योग से प्राप्त होने वाली प्रेमा भक्ति को ही भक्ति योग कहा गया है । तात्पर्य यह है कि प्रभु ने वेदों के सार प्रेम भक्ति के ही श्री निताई चांद में दर्शन किए , जिससे उन्होंने अपने को धन्य माना है ।
🌹 इतना ही नहीं श्रीमन महाप्रभु मैं स्पष्ट यह भी कहा है--
बुझिलाम ईश्वरेर तुमि पूर्ण शक्ति। तोमा भजिले से जीव पाय कृष्ण भक्ति।
तुमि कर चतुर्दश भुवन पवित्र। अचिन्त्य अगम्य तोमार चरित्र।
🌿 हे निताई चांद !अचिन्त्य अगम्य है आपके 14 भुवन पावन चरित्र। ईश्वर की आप पूर्ण शक्ति हो , जो आपका भजन करता है, वही कृष्ण भक्ति प्राप्त करता है। हे निताई चांद ! आप मूर्तिमान कृष्ण प्रेम भक्ति धन हो । निज स्तुति को और ना सुन सके श्री निताई चांद । बोल उठे- गौरांग! अब क्यों मुझसे सब राज खुलवाते हो ? मैंने सब तीर्थों का भ्रमण किया , श्री कृष्ण की लीला भूमि में गया , केवल स्थल ही स्थल देखें श्री कृष्ण कहीं नहीं। सबके सब सिंहासन खाली थे ।
🌹 मैंने सब से पूछा - श्री कृष्ण कहां हैं? पता लगा गौड़ देश नदिया में श्री कृष्ण अपने नाम संकीर्तन रासलीला का आस्वादन कर रहे हैं । पावन कर रहे हैं असंख्य पापी अधम जीवो को। चला आया प्रभु आपके श्री चरणों में । श्रीनिताई चांद कुछ और भी रहस्य उद्घाटन करना चाहते थे बीच में ही बात काट कर श्री महाप्रभु बोले - आप जैसे भगवत भक्तों के दर्शन पाकर आज हम सब धन्य हुए हैं । श्री मुरारी गुप्त से ना रहा गया, बोल उठे- हम सब क्योंकर धन्य हुए हैं? आप ही दोनों धन्य हुए हैं ।हम तो आपकी परस्पर स्तुति को देखकर अभी यह भी नहीं जान पाए कि आप दोनों का परस्पर संबंध क्या है ?
🌿क्यों एक दूसरे का पूजन कर रहे हो श्रीवास ने कहा- रहस्य क्या समझ सकते हैं हम, ऐसा लगता है श्री कृष्ण और श्री शंकर ही एक दूसरे की पूजा कर रहे हैं । श्री गदाधर ने कहा- सुंदर कहा तुमने श्रीवास । मुझे तो ऐसा लगता है श्री राघवेंद्र और लक्ष्मण का संबंध है इनका । कोई बोला- यह दोनों अप्राकृत कामदेव ही हैं, किसी ने कहा क्या यह दोनों श्री कृष्ण बलराम नहीं लग रहे हैं? दूसरा बोला- मैं तो यह देख रहा हूं श्री कृष्ण ने श्रीशेष जी को ही अंक में भर लिया है और एक बोला - मुझे तो दोनों श्री कृष्ण अर्जुन से लग रहे हैं।दूसरे ने कहा-भाई! इनकी महिमा अनंत है, इनके रूप अनंत हैं।
🌿 अनंत हैं इनके परस्पर संबंध ।हम तो इन दोनों का आज एक जगह दर्शन करके अपने को महा धन्य धन्य मानते हैं । इस प्रकार समस्त भक्तों से परिवेष्टित होकर श्री गौर चांद श्री निताइ चांद को अपने निवास स्थान पर ले आए।
चैतन्येर प्रिय देह नित्यानंद राम।
हउ मोर प्राणनाथ एइ मनसकाम।।
क्रमशः ....
📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी
✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा
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