mc 72

मीरा चरित 
भाग- 72

उस छोटी सी आयु में ही वे न्यायासन पर बैठते तो बाल की खाल उतार देते।बैरी को मोहित कर लें ऐसा स्वभाव।रणमें प्रलयंकर और घर में नीलकंठ जैसे एकलिंग नाथ ही अवतरें हों।तेरी भुवाजीसा भक्ति करती है, दूसरा होता तो तेरह विवाह रचाता। मेवाड़ के राजराज को बीनणियों की कौन कमी थी पर दीवानजी के पुछवाने पर भी विवाह के लिए नहीं कह दिया। कुंभ श्याम के पास जो मन्दिर है न, वह तेरे फूफोसा ने भुवाजीसा के लिए बनवाया है।’
‘अभी तो बावोसा, महाराणा विक्रमादित्य महाअयोग्य हैं।भाँड गवैये इकट्ठे करके साँग काढ़े भगतण्याँ (वेश्यायें) नचावैं और नशा करते हैं।राज्य के सारे खम्बे (उमराव) डगमग कर रहे हैं।परिवार में किचकिच चल रही है और प्रजा का तो सुनने वाला कोई है ही नहीं।राणाजी के मुँह लगे लोग प्रजा को मनमाने ढंग से लूटते हैं।उनकी गुहार सुने कौन? लोग कहरहे हैं कि राणाजी भुवाजा सा पर बहुत नाराज हैं, पर चौड़े धाड़े कुछ कर नहीं सकते।सभी उमराव सामंत नाराज है उनसे, अन्यथा इन्हें मरवा देते।
‘कौन किसको मरवा सकता है बेटा? आयु लिखी हो तो मनुष्य जलती हुई आग से भी सुरक्षित निकल जाता है, नहीं तो घर में बैठे बिठाये लुढ़क जाये।मीरा के रखवाले चारभुजा नाथ हैं।तुम्हारी बातें सुनकर जी दु:खी हुआ भँवर।उस घर की ऐसी बातें? मैं तो प्रतीक्षा में था कि चित्तौड़ कहीं रण चढ़े तो, मैं भी अपना ऋण उतारूँ।वे तो भगतण्यों (वेश्यायों) में रम रहे हैं, राम राम....... कैसा अभाग उदय हुआ मेवाड़ का।’

मेड़ता में आकर मीरा ने जगत का परिवर्तनशील रूप देखा। जिस महल में उनकी माँ रहती थी, उसका अपना बचपन बीता था।उसमें जयमल की प्रथम पत्नी रहती है।कच्चे घरों के स्थान पर पक्के महल माथा ऊँचा करके खड़े थे।छोटे बालक जवान हो गये थे और जवानों के विवाह और बालक हो गये।नये छोटे छोटे बालकों से माताओं की गोद गुलजार थी।श्याम कुँज पुन: आबाद हुआ।दाता हुकम (वीरम देव जी) थोड़े दूदाजी जैसे ही दिखने लगे थे। वैसे ही उसी महल में पलंग पर विराज कर माला फेरते हुये अपनी काली धोली दाढ़ी को सँवारते पोते पोतियों से बतियाते। मीरा को स्मरण हुआ अपना बचपन - पाँच बरस की मीरा आँखों में आँसू भरे पलंग के पास खड़ी पूछ रही है - ‘बाबोसा ! एक बेटी के कितने बींद होते हैं?
उसकी आँखों में आँसू और होंठों पर हँसी तैर गई। बाबोसा उसके सुघड़ शिल्पी, उन्होंने ही तो गढ़ा था उसे। वे ही तो जगत में उसके पहले और सबसे बड़े अवलम्ब थे।दूसरे महाराजकुमार (भोजराज), दोनों ही छोड़ गये।
‘दाता हुकम ! आप तो बाबोसा जैसे ही दिखने लगे हैं’- मीरा ने सम्हँल कर कहा। 
‘अब तो बुढ़ापा आ ही गया है बेटा ! चित्तौड़ के क्या हाल सुन रहा हूँ। कहते हैं दीवानजी राग-रंग में डूबे रहते हैं।अभी आयु क्या है उनकी? अधिक से अधिक अपने चाँदा की उमर के होगें।अभी से.... किसी की मेख नहीं है क्या उनपर?’
‘राजमाता हाड़ीजी हैं न दाता हुकुम, राजमद सभी पचा नहीं पाते।’
‘सुना है बहादुर शाह गुजराती आक्रमण के लिए उतावला हो रहा है।सीमा की चौकियाँ ठीली हैं।उमराव रूठे हुये हैं।सुना तो यह भी है कि सामंत बहादुर शाह से छिपे छिपे मिल गये हैं।’
प्रभु को जो रूचे सो करे, अपन क्या करें? यह तो ढलता वलती छाया है।इतने समय तक सिसोदियों का प्रताप सूर्य मध्याह्न में था।अब ढल रहा है।’
‘नन्ही बीनणी किसी को याद तो नहीं करती?’
‘उसकी धाय साथ आई है।मेरे पास भी रहती है।फिर भी कभी कभी दादीसा के पास जाना है, कहकर रोने लगती है।’
‘अपनी भाभी से कहो, वही उनके अधिक निकट रहे।उन्हें किसी भी वस्तु की कमी न होने दें।’

मेड़ता से चित्तौड़ की ओर.....

मेड़ते में पन: भक्ति की भागीरथी उमड़ पड़ी। मीरा के दर्शन-सत्संग के लिए चित्तौड़ गये हुये लोग लौटकर मेड़ता आने लगे। मेड़ते से एक वर्ष के पश्चात मीरा ने पुन: चित्तौड़ पधारने के लिए प्रस्थान किया।पथ में मेवाड़ की सीमा पर दिखाई दे रहे थे उजड़े हुए गाँव, जलीकुचली खेती, जले हुये घर, सताये हुये मनुष्य और पशु।चारों ओर फैली अराजकता।चित्तौड़ से चार पाँच कोस दूर रहे होगें, तभी एक गाँव के पास से निकलते समय सुनाई दिया स्त्री बच्चों के रोने चिल्लाने का स्वर।उस स्वर से आकाश गूँज रहा थ।उन्होंने साथ के सरदारों से पूछा- ‘यह हल्ला कैसा है?’
‘संभवतः कोई मर गया है’- सैनिको के नायक ने निवेदन किया।
‘नहीं सुनो कान देकर।किसी के डाँटने के स्वर भी सुनाई दे रहे है।कहीं मालवा के मियाँ तो नहीं आ घुसे? मालूम करो जाकर।’
‘सरकार यदि यह यह हो तब भी हमें उनसे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।हमें अपनी चिंता नहीं है, पर हुज़ूर ..... वे किसी मर्यादा को नहीं मानते।’
‘अपनी रक्षा करना हम जानतीं हैं’- मीरा ने आदेश के स्वर में कहा- ‘आँखों से देखते हुये कैसे अत्याचार टाल दें।तुम जाओ और अत्याचारियों को खदेड़ कर समीप की चौकी पर सूचना दो।’

सवारी रूक गई।सघन वृक्षों की ओट मे रथ, पालकी और कुछ रक्षक छोड़कर वे लोग गाँव की ओर चले।शीघ्र लौटकर उन्होंने बताया कि राज्य के अधिकारी उगाही कर रहे हैं।उनके साथ गाँव के दो आदमी भी थे।उन्होंने धरती तक झुक कर उन्हें प्रणाम किया और बताया- ‘अन्नदाता पिछले वर्ष अकाल पड़ा।जैसे तैसे गुजर किया।इस वर्ष वर्षा हुई तो खाद पूरा नहीं मिला।एक बैल मर गया।उधार माँग माँग कर खेती बुबाई।अश्विन में डाकू आ गये।खेतों में आग लगा कर घरों में जो कुछ मिलानउसे उठा ले गये।हमारी बहू बेटियाँ भी नहीं छोड़ीं।’- ग्रामीण का गला भर आया।उसकी आँखे झरने लगी- ‘अब ये कर उगाहने वाले आये हैं।अन्नदाता, घरमें एकसमय खाने जितना भी अन्न नहीं है।हमने कहाकि भगवान की कृपा हुई और अगली फसल ठीक हो गई तो एक साथ पूरे वर्ष का कर चुका देगें, किंतु ये तो मानते ही नहीं।कहते हैं कि पैसा नहीं है तो थाँकी लुगायाँ और छोरा छोरी दे दो।उन्हें खींच खींच करके बाहर निकाल रहे हैं सरकार।हम गरीब कहाँ जायें, किये पुकारें? राम ही रूठ गया है।हमारा भाग्य अस्त हो गया, तभी म्हाराँ धणी कैलाश पधार गया।पहले इतना अत्याचार नहीं था......।’

मीरा का हृदय यह सब सुन कर काँप उठा।आँखे भर आईँ।उन्होंने अपने सैनिकों को भेजा कि कर उगाहने वालों को बुला लायें।
क्रमशः

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