mc 73

मीरा चरित 
भाग- 73

उन्होंने लौटकर बताया- ‘वे तो मर्यादाहीन व्यक्ति हैं।हमें कहने लगे कि हम अपना काम कर रहे हैं।तुम कौन हो बीच में पाँव रोपने वाले? हम किसी मेड़तणीजी सा को नहीं जानते।जाकर कह दो हमें फुरसत नहीं है।’
‘क्या?’- मीरा रथ से नीचे कूद गई।रथ में लगे हथियारों में से एक तलवार उन्होंने म्यान से खींच ली- ‘चलो कहाँ है अन्यायी?’
‘अरे अन्नदाता, आप यह क्या करतीं हैं? आप यहीं बिराजें, हम अभी पकड़कर लाते हैं उनको।’
‘नहीं पधारें आप भी।राणाजी की नाक तले इतना अत्याचार हो रहा है तो दूर सीमाओं पर क्या होता होगा।’
ग्रामीणों ने बताया- ‘मालवे के सैनिक तीसरे चौथे महीने आ धमकते हैं, स्त्रियों को उठ ले जाते हैं, बच्चों को चीरकर छप्पर पर फेंक देतें हैं।विरोध करने वालों को मारकर वे वापस भाग जाते हैं।’
मीरा से सुना नहीं जाता था।एक निःश्वास छोड़ उन्होंने सोचा कि ऐसे राजा कै दिन टिकेगें, जो प्रजा के पेट को अन्न और आँखों को निश्चिंत नींद नहीं दे सकते? आगे जाकर देखा कि पन्द्रह बीस आदमियों को बाँध कर एक ओर पटक दिया गया है।उनके घरों से अन्न, बर्तन और पशु निकाले जा रहे हैं।दो स्त्रियाँ रोती हुई मुख में तृण लेकर हाथ जोड़कर विनती कर रहीं थीं, जिन्हें वे लोग गालियाँ देते हुए ठोकरें मार रहे थे।बच्चे डरकर भीत से चिपके खड़े हैं, बढ़े हुये पेट, नंगे और भूखे।एक बीस वर्ष की बहू अपनी फटी साड़ी के घूँघट में हिचकियाँ लेते हुए रो रही थी।उसकी ओक देखकर एक कर्मचारी बोला- ‘कर के बदले इसको दे दो तो दोनों फसलों की माफी हो जायेगी।’
यह सुनकर उसके पति ने कहा- ‘तुम्हारे घर की बहू बेटी के लिए कोई ऐसी बात कहे तो?’
‘कह कर तो देख’- कहते हुये कर्मचारी ने उस बँधे पड़े ग्रामीण को जूते समेत ठोकर मारते हुए बोला- ‘यह स्वर्ग की अप्सरा तुम्हारे यहाँ कितने दिन टिकेगी? हम नहीं तो कोई और उठाले जायेगा।’

‘क्यों न ले जाये? तुम्हारे जैसे खेत को खाने वाली बाड़ हो तो क्यों न कोई भी इसे उठा कर ले जायेगा।’- मीरा सामने आ खड़ी हुई तो वे सभी सिटपिटा कर जैसे स्तब्ध हो गये।किसी ने पूछ लिया- ‘ये कौन हैं।’
‘मेदपाट की महिषी महाराज कुमार भोजराज की धणियाणी मेड़तणीसा पीहर से पधार रहीं हैं।’
‘तुम्हारा नायक कौन है?’- मीरा ने गरज कर पूछा।
‘चाकर सेवा में उपस्थित है सरकार’- उसे लगा मानों सारे जीवन के पाप पुण्य के लेखे जोखे का निर्णय करने के लिए भगवती दुर्गा सामने खड़ी हों।वह हाथ जोड़कर काँपता हुआ खड़ा रहा।
‘ऐसे कर उगाहा जाता है? कहाँ से आई यह रीत? तुम राज्य के रखवाले हो या राक्षस।’
‘हम तो अन्नदाता, हुकुम के ताबेदार हैं।’
‘हुक्म देने वालों ने क्या यह फरमाया है कि पैसा न होने पर उनकी स्त्रियाँ उठालाना।पशु औरबर्तन ले आना और उन्हें मौत के मुँह में ढकेल देना।क्या ये बर्तन और स्त्रियाँ तुम राजकोष की पेटियों में बंद करते हो? मुख से झरती गालियों की यह गंदगी, दूसरों की बहू बेटी की ओर ताकने वाली कुत्तों जैसी यह कुदृष्टि भी हुजूर के हुक्म में मिली है? अरे अन्यायियों जब मालवे और गुजरात के डाकू इन्हें लूटने आते हैं, तब क्यों नहीं रक्षा करते इनकी? मरे हुये पशु पर गिद्धों की भाँति केवल चीथना ही जानते हो।अपने बापों की दशा तो देखी होगी, भूत भी दुबले पतलों को नहीं सताता।तुमने दीवानजी से अर्ज की थी क्या कि पिछले वर्ष अकाल पड़ा है, अश्विन में डकैती हुई और अब प्रजा भूखों मर रही है।राजा की आँखे तो कर्मचारी होते हैं।यदि तुन न बताओ तो वे क्या जानें कि प्रजा सुखी हैं या दु:खी?’- साथ आई दासियाँ, सरदार और कर्मचारी मीरा का यह नया रूप देख कर सन्नाटे में आ गये।इस चौबीस वर्ष की आयु में उन्होंने किसी की ओर कड़ी दृष्टि से कभी देखा तक न था।मेड़तणीजी सा को क्रोध भी आता है, यह बातसपने में भी उन्हें झूठी लगती।

‘अन्नदाता यह सब बातें निवेदन करने का अधिकार महमंत्रीजी को है।यदि हम खाली हाथ लौटे तो हमारी खाल उतरवा कर उसमें भूसा भरवा दिया जायेगा।’
‘इसीलिए स्त्रियों को ले जा रहे थे? कर की राशि के स्थान पर उन्हें सरकार के सामने खड़ी कर दोगे? एक बार अपने घर की बहू बेटी को ऐसे ले जाकर खड़ी करके देखो और फिर देखो कि तुम्हारे हृदय की क्या दशा होती है? और कुछ न मिले तो इनकी आँतें निकाल ले जाओ। कितना कर बाकी है इस गाँव का?’
‘सात सौ रूपया सरकार’
‘चम्पा, मिथुला, गौमती, गंगा अपने गहने उतार दो’- दासियों ने आज्ञा का पालन किया।
‘हो गये तुम्हारे सात सौ रूपये, उठा लो।’
मीरा ने शांत होकर अपने सदा के स्वाभाविक मीठे स्वर में फरमाया- ‘राजा महलों में रहते हैं। तुम्हीं लोग उनके हाथ पैर और आँखे हो।जिस राज्य में प्रजा दु:खी होती है, वह राज्य टिकता नहीं।राजा प्रजा का चाकर होता है।उसे सुखी रखना राजा का धर्म और कर्तव्य है।तुम्हारी और हमारी भलाई इनके सुख में निहित है।कर उगाहने से पहले यह देख लो कि इनकी जीविका और खेती पर कोई जोखिम न आये।’- कुछ ठहर कर उन्होंने कहा- ‘दूसरों की बहन बेटी को अपनी बहन बेटी समझो।जहाँ गौ और गौरी सताई जातीं हैं वहाँ भगवान कोप करते हैं।ईश्वर ने जीभ और आँखे दी हैं तो इन्हें सत्कर्म में लगाओ।अंत में मरकर अपने बाप को क्या उत्तर दोगे? अमरता का पट्टा लिखा कर लाये हो क्या? उस दिन यहाँ के सब व्यापार ब्याज समेत चुकाने पड़ेंगे, यह बात ध्यान में रखकर चलो।धन औरयौवन पाहुने हैं।इन्हें पाकर अपने पाँवमत उठालो धरती से।’

सबने मीरा के पाँव पर सिर रखकर माफी माँगी और आगे कुकर्म न करने का वचन दिया। अपने साथ आये सेना नायकों को मीरा ने आज्ञा दी- ‘बाजीसा प्रत्येक घर के हिसाब से इन्हें दो दो रूपये और बालको को प्रत्येक को चार चार आना दीजीये।’
गाँव केलोगों के मुझाये मुख खिल उठे।स्त्रियाँ समीप आकर पाँव पड़ने लगीं और पुरूषों ने प्रणाम के लिए धरा पर सिर रखे।पुरूषों के कहा- ‘डाकू आ जायें तो सब मिलकर सामना करो।लुटपिट कर जीवित रहने से तो लड़कर मर जाना अच्छा है।अपनी रक्षा आप करना सीखो।राजा कहाँ कहाँ उपस्थित रह सकता है?’
क्रमशः

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