दास पत्रिका1

*जय जय श्री हित हरिवंश।।*

आप सभी रसिको के समक्ष आज से हम  व्रज भाषा साहित्य सम्राट चाचा श्रीहित वृन्दावनदास जी कृत " श्रीदास पत्रिका" अर्थात श्रीप्रिया प्रियतम के सम्मुख प्रेम द्वारा प्रेषित पत्रिका प्रारम्भ करने जा रहे है, सभी को हित विशाल लाल गोस्वामी की श्रीहित वृन्दावन धाम से जय जय श्रीहित हरिवंश।।

*श्रीदास पत्रिका*~~~~

*श्री हितरूप अनूप वन्दि, गुरु चरननि उर धरि। ललित दास पत्रिका वरनि, हित चित विचार करि।।1।।*

*श्री हरिवंश प्रशंस सुमति दायक जु सहायक। प्रथम तिनहि आराधि महत गुन जुत सब लायक।।2।।*

*सिद्धि श्री विराजमान सर्वोपरि सब गुन आलय। मै श्रीगुरु मुख सुनी प्रीति दीनन सो पालय।।3।।*

*श्री निवास शोभा निवास, पुनि सुख निवास अति। महिमा महत निवास, अखिल ब्रह्माण्ड गति पति।।4।।*

*व्याख्या ::*श्रीहित के अनुपम रूप (गो. श्रीहित रूप लाल जी, चाचा जी के गुरु जी) का वन्दन करता हूँ, अपने गुरु जी के चरणों को ह्रदय में धारण करता हूँ।श्रीहित का ह्रदय में विचार करके सुकुमारता लावण्य भरी श्रीदास पत्रिका वर्णित करता हूँ।।1।।

श्रीहित हरिवंश चन्द्र जी ने प्रसन्न होकर जो मुझे सुमति दी है और वो ही मेरे सहायक है।सर्वप्रथम में उनकी आराधना करता हूँ जो अत्यधिक महत्वपूर्ण गुण लिये श्रीयुत है जो सभी प्रकार से योग्य है।।2।।

वह पूर्णता सफलता की श्री रूप में विराजमान है और उससे भी सर्वोपरि सभी गुणों का घर है।मैंने अपने श्री गुरु जी के मुख से सुना है वो प्रीति के साथ सभी दिनों का पालन करते है।।3।।

जहां वो रहते है वहां निकुन्ज में श्री का निवास है , शोभा का निवास है और वहाँ अत्यधिक सुख का निवास है।उस स्थान की महिमा की क्या महत्व कहू जहां सर्व ब्रह्माण्ड को गति प्रदान करने वाले स्वामी स्वयम निवास करते है।।4।।

*जय जय श्री हित हरिवंश।।*

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