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*🌷श्रीमन्नित्यनिकुंजविहारिणे नमः।🌷*
*🌷श्री स्वामी हरिदासोविजयतेतराम्।।🌷*

                  *🌷केलिमाल🌷*
*🌷पद--५ ..🌷*
                             इत उत काहे कौ सीधारत [मेरी ]...आँखिन आगे हि तौ आव
..प्रीति कौ हित हौं तौ जानो ..ऐसौ राखी सुभाव
..अमृत वचन जिये कि प्रकृति ,सौ मिली ऐसौई से दाव
,श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कहत री प्यारी ,प्रीति कौ मंगल ग़ाव.

*🌷अर्थ -पद --५ ..🌷*

                                    अति विचित्र अद्भुत प्रीति कुञ्ज महल ,जहाँ से निरंतर रस कि वर्षा होती रहती है ,और सखियाँ झरोखों के उस परदों के बीच में से अवलोकन करती हुईआनंदित होती रहती हैं और उसी रस में झूमती रहती हैंविविध भांति से यह दिव्य भूमि सुशोभित होती है ..जहाँ आंगन में नित्य अमृत जैसे वचन कि परस्पर वर्षा होती रहती है
यहाँ नित्य दुल्हिन सी बिहारिनी जू वा बिहारी जू दुल्हे से ,,सेज पर विराजमान हैं.इस पद में दूल्हा बिहारी जी ,दुल्हिन बिहारिनी जू से कह रहे हैं -----हो लाडली जू !तुम्हारे ये नैन सलज्ज हुए मुझे देखते हैं ,परन्तु जब मैं तुम्हें देखता हूँ ,तब तुम इधर उधर देखने लग जाती हो ,आपसे अनुरोध है कि अप ऐसा ना करो ,..और मेरी आखों से ऑंखें मिलाएं..तुम तो सदा कृपा करती हो ,ये तो तुम्हारा स्वभाव ही है/.तुम अपनी दयालुता कि प्रसिद्द गाथा को ,क्या भूल गयी हो ?तुमने मौन क्यूँ धारा हुआ है ?यह चुप्पी को कृपया खोल दो ..हे प्यारी जू ,आप अपनी मधुर वाणी से बोलो..तुम्हारे वचन निर्मल हैं ,सो तुम मुझसे बात करो..आपके बोल सुनकर हमारे नैन और कान शीतल होते हैं..मुझको अपने अंक में भरकर मेरा सुख बढ़ा दो
श्री हरिदास जी कहते हैं कि यह सुनकर प्रिया जू ने मुस्कुरा कर बिहारी जो को अपने उर से लगा लिया..तब बिहारी जी बोले -प्रीति को मंगल गावों,यानी हे प्यारी!ऐसे हीं मुझ पर कृपा किया करो..मुझे एक छिन[पल] भी नहीं भूलो ..आप कि कृपा से अब हम दोनों मंगल रूप विहार के अंग संग मिल गए ।

        *🌷श्री कुंज बिहारी श्री हरिदास🌷*

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