वेणु गीत

🎉  *"वेणु गीत"* 🎉
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शरद ऋतु के कारण वह वृन्दावन बड़ा सुन्दर  हो रहा था. जल निर्मल था और जलाशयों में खिले हुए कमलों की सुंगंध से सनकर वायु मंद–मंद चल रही थी. भगवान श्रीकृष्ण ने गौओं और ग्वाल बालो के साथ उस वन में प्रवेश किया, सुन्दर सुन्दर पुष्पों स परिपूर्ण हरी-हरी वृक्ष-पंक्तियो में मतवाले भौरे स्थान-स्थान पर गुनगुना रहे थे और तरह-तरह के पक्षी झुंड-के-झुंड अलग-अलग कलरव कर रहे थे. भगवान ने अपनी बाँसुरी पर बड़ी मधुर तान छेडी.

श्रीकृष्ण की वह वंशी ध्वनि भगवान के प्रति प्रेमभाव को उनसे मिलन की आकांक्षा को जगाने वाली थी उसे सुनकर गोपियों का हदय प्रेम से परिपूर्ण हो गया. वे एकांत में अपनी सखियों से उनके रूप, गुण, और वंशी ध्वनि के प्रभाव का वर्णन करने लगी. वे मन-ही-मन  वहाँ पहुँच गयी, जहाँ श्रीकृष्ण थे, अब उनकी वाणी बोले कैसे? वे उसके वर्णन में असमर्थ हो गयी. वे मन-ही-मन देखने लगी .

बर्हापीडं नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं, 
बिभ्रद् वास: कनककपिशं वैजयंती च मालाम् 
रंन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै 
र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्ति: ..

“श्रीकृष्ण ग्वालबालो के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे है, उनके सिर पर मयूर पिच्छ है और कानो पर कनेर के पीले-पीले पुष्प, शरीर पर सुनहरा पीताम्बर और गले में पाँच प्रकार के सुगन्धित पुष्पों की बनी वैजयंती माला है, रंगमच पर अभिनय करते हुए श्रेष्ठ नटका-सा क्या ही सुन्दर वेष है, वाँसुरी के छिद्रों को वे अपने अधरामृत से भर रहे है, उनके पीछे-पीछे ग्वालबाल उनकी लोकपावन कीर्ति का गान कर रहे है.”

वे आपस में कहने लगी – अरी सखी ! जब वे आम की नयी कोंपले, मोरो के पंख, फूलों के गुच्छे, रंग-बिरंगे कमल और कुमुद की मालाएँ धारण कर लेते है, तब उनका वेष बड़ा ही विचित्र बन जाता है.

अरी सखी ! इस वेणु ने पूर्वजन्म में न जाने ऐसा कौन सा साधन भजन कर चुका है कि हम गोपियों की अपनी सम्पति- दामोदर के अधरों की सुधा स्वयं ही इस प्रकार पिये जा रहा है कि हम लोगो के लिए थोडा-सा भी रस शेष नहीं रहेगा.

अरे सखी ! यह वृन्दावन, वैकुण्ठ लोक तक, पृथ्वी की कीर्ति का विस्तार कर रहा है क्योकि यशोदा नंदन श्रीकृष्ण के चरण कमलों के चिन्हों से यह चिन्हित हो रहा है.

अरी सखी ! इन गौओं को नहीं देखती? जब हमारे कृष्ण प्यारे अपने मुख से बाँसुरी में स्वर भरते है और गौएँ उनका मधुर संगीत सुनती है तब ये अपने दोनों कानो के दोने सम्हाल कर - खड़े कर लेती है और मानो उनसे अमृत पी रही हो इस प्रकार उस संगीत का रस लेने लगती है. अपने नेत्रो के द्वार से श्यामसुन्दर को हदय में ले जाकर वे उन्हे वही विराजमान कर देती है और मन-ही-मन उनका आलिगन करती है. देखती नहीं उनके नेत्रो में आनंद के आँसू छलकने लगते है और उनके बछडो की दशा ही निराली हो जाती है, गायों के थनो से अपने आप दूध झरता रहता है वे जब दूध पीते-पीते अचानक ही वंशी ध्वनि सुनते है तब मुँह में लिया हुआ दूध का घूँट न उगल पाते है, और न निगल पाते है, और उनके नेत्रो में छलकते होते है - आनंद के आँसू, वे ज्यो-के-त्यों ठिठके रह जाते है.

अरी माहि ! गौए तो हमारी घर की वस्तुएँ है. वृन्दावन के पक्षियों को तुम नहीं देखती हो ! उन्हें पक्षी कहना ही भूल है, सच पूँछो तो उनमें से अधिकांश बड़े-बड़े ऋषि मुनि है, वे वृन्दावन के सुन्दर-सुन्दर वृक्षों की नयी और मनोहर कोपलों वाली डालियों पर चुपचाप बैठ जाते है और आँखे बंद नहीं करते, निर्निमेष नयनो से श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और प्यारी चितवन देख-देखकर निहाल होते रहते है मेरी प्यारी सखी उनका जीवन कितना धन्य है .

अरी सखी!  तनिक इन बादलों को भी देखो! जब वे देखते है कि व्रजराजकुमार श्रीकृष्ण और बलराम धुप में गौए चराते है और बाँसुरी भी बजाते है, तब उनके हदय में प्रेम उमड़ आता है. वे उनके ऊपर मंडराने लगते है और वे श्यामघन अपने घनश्याम पर अपने शरीर को ही छाता बनाकर तान देते है. इतना ही नहीं सखी! जब उन पर नन्ही-नन्ही फुहियो की वर्षा करने लगते है, तब ऐसा जान पडता है कि वे उनके ऊपर सुन्दर-सुन्दर श्वेत कुसुम चढा रहे है. नहीं सखी उनके बहाने वे तो अपने जीवन ही निछावर कर देते है .

अरी भटू ! इन साँवरें-गोरे किशोरों की तो गति ही निराली है जब वे तान छेडते है उस समय मनुष्यों की तो बात ही क्या अन्य शरीरधारियों में भी चलने वाले चेतन पशु-पक्षी और जड़ नदी आदि तो स्थिर हो जाते है और अचल वृक्षों को भी रोमाच हो आता है. ‘जड़, चेतन और चेतन, जड़ हो जाते है’. जादूभरी वंशी का और क्या चमत्कार सुनाऊ ..??

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