महाप्रभु जी के चरण कमल

*।। श्री महाप्रभुजी के चरण👣कमल 🌷।।
:
श्री महाप्रभुजी के चरणकमल की रज
यानि कमल का मकरंद।

जब इस मकरंद का सम्बन्ध जीव के साथ होता
है, तभी उसका उद्धार होता है।

श्री महाप्रभुजी के चरणारविन्द में अनेक चिन्ह
है। उन चिन्हों में एक चिन्ह कमल का है।
श्री महाप्रभुजी ने चरणरज द्वारा कई जीवों का
उद्धार किया है। ये चरणरज चरणकमल का
मकरंद है।

श्री महाप्रभुजी के चरण में कमल है।
ये ही कमल श्री यमुनाजी ने व श्रीनाथजी ने
स्वयं के हस्त में धारण किया है।

*ये कमल कैसा है..??*

जब श्री ठाकुरजी को श्री स्वामिनीजी का
विप्रयोग होता है। ये विप्रयोग इतना बढ़ जाता
है कि श्री ठाकुरजी श्री स्वामिनीजी बिना रह
नही सकते ।

उस समय श्री महाप्रभुजी के चरण में रहा
ये कमल हजार पाखुड़ी वाला बन जाता है।

श्री ठाकुरजी इस कमल के मध्य में बिराजमान
हो जाते है और स्वयं के श्री मुख से *"राधे राधे"*
शब्द का उच्चार कर श्री स्वामिनीजी को याद
करते है।

श्री ठाकुरजी के नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगती है।

इतना प्रगाढ़ विरह होता है की श्री स्वामिनीजी
के वियोग में श्री प्रभु के नेत्र का काजल भी बहते-
बहते अश्रु के साथ कपोल पर आ जाता है।

ये काजल मिश्रित अश्रु श्री ठाकुरजी स्वयं के
हस्त की ऊँगली पर लेकर कमल की पाँखुड़ी
पर श्री स्वामिनीजी का चित्र बनाते है।

श्री ठाकुरजी स्वयं के हस्त से श्री स्वामिनीजी
का एक एक नाम लिखते है।

इस प्रकार श्री ठाकुरजी इस कमल के हजार
पाँखुड़ी पर श्री स्वामिनीजी का नाम लिखकर
*राधासहस्त्रनाम* लिखते है।

जब श्री ठाकुरजी स्वयं के द्वारा बनाये गए
स्वामिनीजी के चित्र की तरफ दृष्टी करे,
तब प्रभु विचारे की

अभी तक तो एक स्वामिनीजी का वियोग था,
लेकिन अब तो हजार स्वामिनीजी के दर्शन हो रहे
जिससे श्री ठाकुरजी का विरह हजारगुना बढ़ गया।

श्री ठाकुरजी को इतना ताप हुआ की मूर्छित होकर
उस कमल में पौढ़ गए।

ये ही कमल हमारे श्री महाप्रभुजी के चरण में है।
जहाँ श्री महाप्रभुजी के गुणगान होते हो वहाँ इस
रज का इस कमल का सम्बन्ध प्रकट होता है।

जब श्री महाप्रभुजी के गुणगान सुनते सुनते नेत्रों में
प्रेमाश्रु आ जाय तब मानना की प्रभु ने कृपा कर के
इस कमल का स्पर्श हमारे नेत्र को कराया।

श्री महाप्रभुजी के गुणगान सुनते सुनते जब ह्रदय  में
रोमांच छा जाय तब मानना की श्री प्रभु ने उस कमल
का स्पर्श हमारे ह्रदय को कराया।

जहाँ जहाँ श्री महाप्रभुजी की वाणी व श्री महाप्रभुजी
का गुणगान वैष्णव करते हो वहाँ ये कमल स्वयं ही
प्रकट होता है।

वास्तव में जब श्री महाप्रभुजी का गुणगान करते हो
या गुणगान सुनते हो तब ये कमल प्रकट होता ही है।

श्री ठाकुरजी को याद करते करते श्री महाप्रभुजी
के गुणगान गाते गाते जब नेत्र में अश्रु आ जाये..!!

तब श्री महाप्रभुजी कहते है की तब ये नेत्र नही नेत्र -
कमल कहलाते है।

जेसे कमल जल बिना रह नही सकता उसी तरह नेत्र
भी जल धारण करता है तब ये नेत्रकमल कहलाता है।

श्री महाप्रभुजी के चरणरज का ये सामर्थ्य है,
जो इस कमल का दान  जीवों को करते है
और
उन्हें धन्य बनाते है।

ऐसे श्री महाप्रभुजी के चरण कमलमेंकोटि ~ कोटि दंडवत "

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