हरिनाम मंगलकारी

#हरिनाम_संकीर्तन_सदैव_मंगलकारी#

नाम संकीर्तन से बढ़कर कोई और दूसरी सेवा नहीं है, नाम संकीर्तन सब प्रकार से मंगल करने वाला होता है। यदि हम किसी अत्यावश्यक कार्य से बाहर जा रहे हैं और मार्ग में कहीं नाम संकीर्तन हो रहा हो तो हमें कुछ समय रूक उसमें शामिल होना चाहिए, अब प्रश्न यह कि यदि हम वहां रूक गये तो हमारे कार्य का क्या होगा, कुछ अमंगल हो गया तो...नही यह चिंता मन से तत्काल ही निकाल देनी चाहिए क्योंकि श्री ठाकुरजी का नाम सभी प्रकार अमंगल को हरने वाला है।
"मंगल करण अमंगलहारी"
इस विषय में एक दृष्टांत हैं...
श्री चैतन्य महाप्रभु नित्य रात्रि में श्रीवास पंडित जी के यहां नाम संकीर्तन कराते थे, बहुत से वैष्णव उसमें सम्मलित होते थे, श्रीवास पंडित जी का पुत्र कीर्तन में झांझ बजाया करता था और खुब प्रेम से नाम संकीर्तन करता था।
एक सांयकाल के समय किसी भंयकर रोग के कारण उनके पुत्र की मृत्यु हो जाती है, यह देख श्रीवास पंडित जी की पत्नी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं तो श्रीवास पंडित कहते हैं.. सावधान..!! बिल्कुल नहीं रोना, एक थोड़ी सी चित्कार भी नहीं करना। उनकी पत्नी कहती हैं मेरा पुत्र मर गया और आप ऐसा कह रहे हैं।
श्रीवास पंडित कहते हैं यदि तुम्हारा पुत्र था तो मेरा भी तो कुछ लगता है। किन्तु यदि तुम रोई तो आस पास मे सबको खबर हो जायेगी कि हमारे घर में शौक हुआ है और यदि सब यहां एकत्रित हो गए तो रात्रि में महाप्रभु जी को कीर्तन कराने कही अन्यत्र जाना पड़ेगा उनको असुविधा होगी, तुम इस बालक को ले जाकर भीतर कक्ष में लेटा दो सुबह देखेंगे कि क्या करना है, उनकी पत्नी वैसा ही करती है। रात्रि में महाप्रभु जी पधारे, कीर्तन प्रारंभ हुआ,
*"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
  *हरे   राम हरे  राम   राम   राम   हरे हरे"*
तभी महाप्रभु जी पंडित जी से पुछते है, अरे! श्रीवास तेरा बालक किधर है आज दिखाई नही देता वह, श्रीवास पंडित जी झुठ नही कह सकते थे और यदि सत्य कह दिया तो महाप्रभु जी को पीङा होगी इसलिए वह केवल इतना ही बोले..भगवन् होगा " इतने में ही किसी वैष्णव का उस मृत बालक के कक्ष में जाना होता है वह तुरंत महाप्रभु जी को कहता है "महाप्रभु! पंडित जी का पुत्र कीर्तन मे कहां से आयेगा। उसकी तो संध्या को ही मृत्यु हो गई है। रश्री चैतन्य महाप्रभु कहते हैं " ये हो ही नही सकता जिसके घर में नित्य प्रभु के नाम का ऐसा मंगलकीर्तन होता है वहाँ ऐसा अमंगल हो ही नहीं सकता। श्री महाप्रभु जी गंभीर वाणी में पुकारते हैं, अरे! ओ श्रीवास पंडित के बालक कहां है तू, इधर आ, आज कीर्तन में झांझ कौन बजायेगा...
इधर महाप्रभु जी का बोलना हुआ उधर वह बालक कक्ष भीतर से दौड़ा दौङा बाहर आया और कीर्तन में झांझ बजाने लगा श्री वास पंडित जी और उनकी पत्नी के नेत्रों से आंसू बहने लगते हैं वे महाप्रभु जी को बारंबार प्रणाम करते हैं। इसलिए भाई, नाम संकीर्तन से बढ़कर कोई पूंजी नही और इसके समान किसी भी समस्या की कोई कुंजी नहीं हैं।

*भज गोविन्दं भज गोविन्दम गोविन्दं भज मूढ़मते*
*सम्प्राप्ते सन्निहिते काले,न हि न हि रक्षति डुकृणकरणे*

"अरे बोधिक मूर्खो, केवल श्री गोविन्द का भजन करो, केवल श्री गोविन्द का भजन करो, केवल श्री गोविन्द का भजन करो।
तुम्हारा व्याकरण का ज्ञान और शब्द चातूरी मृत्यु के वक्त तुम्हारी रक्षा नही कर पायेगी।।

सदैव जपते रहिये...जपने का सामर्थ्य नहीं तो श्रवण ही  करें --------
      *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
      *हरे   राम  हरे   राम   राम   राम हरे हरे*

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