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*जय जय श्री हित हरिवंश।।*
*श्रीदास पत्रिका*~~~~
क्रमशः भाग दो के आगे।
यह पत्रिका प्रेम के हाथ से भेजी गई है,प्रेम से यहां श्री राधवल्लभीय सम्प्रदाय के प्रकाशक आचार्य मुकुटमणि श्री 108 श्रीहित हरिवंशचंद्र महाप्रभु भी अभिप्रेत है, क्योंकि आप पूर्ण प्रेम का ही अवतार माने गये है और इसीलिए " हित " नाम से विख्यात है।
*राधापति राधा सुख वर्द्धन राधा सहचर। राधा विपुल सुहाग रंग रस नेह निपुन तर।।11।।*
*राधा रुचि अनुकूल वदन अम्बुज के मधुकर। राधा परवस नेह विदित राधा मुरलीधर।।12।।*
*राधा रूप अहार भोगता वन घन सम्पति।अहो अहो राधाकंत बहत रस गहर तहाँ अति।।13।।*
*दुर्लभ यह रस अहा विपुल परताप अखंडित।बरषत कानन कुंज तीर रविजा जहाँ मंडित।।14।।*
*मो वृन्दावन दास नाम गुरु संत धरायौ। ताकी तुमको लाज पत्रिका लिखि जु पठायौ।।15।।*
*कोटि कोटि दंडवत निवेदन प्रभु को मेरी। करुणा करि लीजिये दीजिये मोहि न डेरी।।16।।*
*व्याख्या ::* श्री राधापति , श्री राधा जी के सुख को बढ़ाने वाले हमराही।श्री राधा जी के अगाध बृहत सुहाग के रंगों का स्नेह रस में निपुणता से भीगे रहने वाले।।11।।
श्री राधा जी की रुचिता के अनुरूप उनके मुख कमल के भौरा हो।श्री राधा जी के परवश प्रेम के ज्ञाता ,आप श्री राधा मुरलीधर हो।।12।।
गहन वन की सम्पति में आप श्री राधा जी के रूप का आहरण पान करने वाले हो।अत्यन्त हर्ष में श्री राधा जी को प्रसन्न करने को वहां सदा गहरा रस बहता है।।13।।
यह रस अत्यन्त दुर्लभ और आपका अगाध प्रताप अखण्डित है।वहां श्री यमुना जी के किनारे कुंज वाटिका विभूषित है।।14।।
मेरा नाम वृन्दावन दास , मेरे गुरु व सन्तो ने रक्खा है।आपको इसकी लाज रखनी है ,यह पत्रिका यह जो लिखी है पहुंचानी है।।15।।
आपको करोड़ो - करोड़ो दण्डवत प्रणाम के साथ मेरा प्रभु को यह निवेदन है।कृपया करुणा कर यह लीजिए और उन्हें दीजिये मुझे देर या वार्ता नही है।।16।।
(क्रमशः)
*जय जय श्री हित हरिवंश।।*
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