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*जय जय श्री हित हरिवंश।।*

*श्रीदास पत्रिका*~~~~
क्रमशः भाग एक के आगे।

यह एक चिट्ठी है जो चाचा श्रीहित वृन्दावनदास जी ने अपने स्वामी " रसिक मुकुटमणि प्रिया प्रियतम श्री राधावल्लभ लाल जी" के नाम लिखकर प्रेम के हाथों भेजी है। जीव और ईश्वर के बीच मे दोनों का मेल कराने वाला प्रेम ही है।

*सकल धर्म कौ मूल निपट अनुकूल प्रणत जन।ताते अधिक उमाह रहत है नाथ मिलन मन।।5।।*

*परम् चतुर कौतुकी पीर पर मन की जानों। तुम्हें भजै जो कहू ताहि नीकै पहिचानो।।6।।*

*सीलवन्त गुनवन्त सदा जनपन कौ लरजत। एक रावरी बांह भक्त त्रिभुवन में गरजत।।7।।*

*महा तेज बलवीर धीर धर को सम वीयौ। परम् सनेहिनु हेत कहा नहि साकौ कीयौ।।8।।*

*अहा कहो मणि जानि जगत जीवन जग भूषन। हौ समरथ सब भाँति चरितै कीने निरदूषन।।9।।*

*हौ करुणा की अवधि , अवधि आनन्द सु वरषन। अपने कौ उत्कर्ष वढावन अति उर हरषन।।10।।*

*व्याख्या ::* सकल विश्व के सभी धर्मों का मूल व विशुद्ध रूप (प्रेम ) हो ,सभी शरणागत जनो को अनकूल प्रभाव देते हो।इससे स्वामी आपसे मिलन का मन मे अत्यधिक उत्साह रहता है।।5।।

आप परम् चतुरशिरोमणि  विनोदशील कौतूहल लिये हुए हो , जो पराये मन की पीड़ा को भी जानते हो।आपका जो भजन करता है उन्हें तो आप अच्छी तरह पहचानते हो।।6।।

आप सदा सुशील गुणों को लिए लोक संकल्प को सदा स्फुरित हो प्रफ्फुलित रहते हो।एक अदद भवदीय भक्त की बांह जब पकड़ते हो तो तीनों लोकों में यह गर्जना रहती है।।7।।

आपके समान महान तेज, बल में वीर और धीर को धारण करने वाला कौन दूसरा है।आपने परम् स्नेह के लिये क्या क्या कीर्ति स्थपित नही की है।।8।।

आप संसार के जीवन मे हर्ष रूप से मणि है व आप जगत के भूषण है।आप सभी प्रकार से समर्थ हो और आपका चरित्र  निर्दोषता प्रदान करने वाला है।।9।।

आप करुणा के अनन्त रूप है व आप अनन्त आनन्द की वर्षा करने वाले है।हमारे लिए आप उत्साह बढ़ाने वाले व अत्यधिक हर्ष प्रदान करने वाले है।।10।।

(क्रमशः)

*जय जय श्री हित हरिवंश।।*

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