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*🌺श्रीमन्नित्यनिकुंजविहारिणे नमः।🌺*
*🌺श्री स्वामी हरिदासोविजयतेतराम्।।🌺*
*🌺केलिमाल🌺*
🌺 *पद=4*🌺
*...जोरी माई री विचित्र बनायीं ,काहू मन के हरन कौ...*
*.चितवत दृष्टि टरत नहि इत उत .मन वचन करम याहि संग कौ.*
*.ज्यौ घन दामिनी संग रहत और वारन कौ .*
*..श्री हरिदास से स्वामी श्यामा कुञ्जबिहारिनी तारन कौ.*
*🌺..अर्थ-4*🌺
..श्यामा कुञ्ज बिहारी जू कि जोरी ने निकुंज महल में विचित्रों में विचित्र बनायीं है ..सुन्दर सजाये हुए आसन पर .प्रिया-प्रियतम परस्पर एक दुसरे का मुख देखते रहते हैं ..इनकी दृष्टि नैक भी इधर उधर नहीं होती ....वहीँ पर हरिदासी सखी भी गुलाब के फूलों के आसन पर बैठी हुई देख रही हैं ....उनसे रहा नहीं गया तो बोल पड़ी ====यह जोरी विचित्र है सखी ..इनके मन ही मन में जो रस कि तरंग उपजत है ,सो बहुत विचित्र है ,यह जोरो विचित्र कि प्रतिबिम्ब है ..इसीलिए यह काहू के मन को हर लेते हैं ..लाल जी कि दृष्टि ,प्रियाजू के अंग अंग को अवलोकित है .,,उनके मन से मन मिल गए हैं ...उनके अति मृदुल वचन मन को हर लेते हैं ..इन दोनों कि अंग छटा इतनी सुंदर है ,जैसे घन दामिनी हो ....जैसे वृन्दावन इनके संग हमेशा रहता है ,,उसी प्रकार घन दामिनी भी नित्य इनके संग रहता है .एक पल के लिए भी बिछुड़ते नहीं .........श्री हरिदास जी कहते हैं ====कि यह विहार है ,उससे और भी छिन-छिन [[पल पल ]अति उत्सुकता बढती रहती है ..इस विहार से वह नैक हूँ नहीं टरते हैं ..इनकी एक नख छवि पर, कोटि कोटि कामदेवों कि शोभा फीकी पड़ जाये ...इनके माधुर्य,लावण्य,प्रेम और गुणों का पूरा बखान करना तो संभव ही नहीं ....
*🌺श्री कुंज बिहारी श्री हरि दास🌺*
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