केलिमाल पद 1

*श्रीमन्नित्यनिकुंजविहारिणे नमः।*
    *श्री स्वामी हरिदासोविजयतेतराम्।।*
                 *🌹श्री केलिमाल🌹*
*🌹पद---१==🌹*
माई री सहज जोरी प्रगट भई जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे
प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रही है न तरिहहिं जैसें
अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें................

*🌹अर्थ पद १🌹* ---  श्री वृन्दावन कि रास उपासना के विशुद्धम स्वरुप के प्रकाट्य कर्ता स्वामी श्री हरिदास जी हैं ...ऐसा मन जाता है कि नित्य विहार रूप निकुंज में छिपा हुआ था ..उसे धरती पर कलयुग के लोगों के लिए स्वामी जी ने अति कृपा करके प्रकट किया ..श्री स्वामी जी प्रातः स्नान कर के श्री निधिवन में जप करते थे .एक सघन कुञ्ज में प्रवेश कर बार बार प्रणाम करते तो उनके शिष्य देखते रहते किसीसा क्या है ,इस कुञ्ज में .......एक दिन स्वामी जी की कृपा हो हीं गयी और वह उनको विहार में प्रवेश करने की आज्ञा दे ही दी ..गुफा में उन्होंने एक प्रकाशमय रंग महल देखा .......वहां अदभुत कुञ्ज महल में बहुत सुंदर आसन पर बिहारी-बिहारिनी जू बैठे हुए थे .......स्वामी जी ने अपने शिष्यों को इशारा किया और वह उनको रंग महल से बाहर ले आये ....तब स्वामी जी का यह प्रथम पद भी प्रकट हुआ ....वह बोले .आहा आहा ............................कैसी अदभुत जोरी प्रकट भई है आज ...................यह सहज जोरी गौर-श्याम घन दामिनी जैसी है ..........................प्रियाजू के अंग कान्ति गौर और प्रीतम जू के सुगम अंग श्याम रंग के हैं ........जिस प्रकार आकाश में बिजली और मेघ विलसें हैं ..इसी प्रकार यह जोरी कितनी सुन्दर लग रही है .........................यह जोरी पहले भी थी ,अब भी है ,,और आगे भी रहेगी ..............यह जोरी नित्य हीं रहती ......... स्वामी श्री हरिदास जी कहते हैं ===प्रिया प्रियतम तुम दोनों एक दुसरे से कम नहीं हो ,समान वेश है तुम्हारो............स्वामी जी ....कहते हैं ---यह जोरी अजन्मा ,नित्य किशोर है ...यह नित्य वृन्दावन में निकुंज महल में विराजमान है ,,यही जोरी स्वामी श्री हरिदास जी के अनुरोध से धरा पर रहने को राजी हो गयी ...............हमारे बहुत बड़ा सौभाग्य है कि हमें इतनी सहजता से श्री ठाकुर बाँकेबिहारी जी के दर्शन हो जाते हैं .............उनका सुन्दर मोहक स्वरूप का तो क्या कहें ,जो एक बार देखता है ,वह उन्हें निहारते थकता हीं नहीं ..........उनके विशाल नेत्रों में जिसने एक बार भी डुबकी लगा ली ,वो उन्हीं में डूब जाता है .......उनके मुख कि मुस्कान ,नाक कि बेसर,ठोढ़ी का हीरा,,कानों के कुण्डल, माथे का पाग .टिपारे ,चन्द्रिका ,मोर-पंख आदि मिलकर ऐसी मोहित कर देते हैं कि भक्त अपने आप को उन पर प्राण निछावर करने को तैयार रहता है .....ऐसे बाँकेबिहारीजी को कोटि कोटि प्रणाम ,,,,बोलो बाँकेबिहारी लाल कि जय ...श्री हरिदास

*जल विहार वर्णन ----*🌹

पुनि राग अनुरागनि रंगे श्री यमुना तट  लटकत चले i
जल मध्य जुग मुख चन्द्र बिबनि  ठटकि अवलोकत  भले ii
तिहिं  लोभ तटनी  तट निकट हेवे सलिल केलि करन लगे i
रस त्रिशत उर अभिलाष खेवन अमी बीज भरण लगे  ii

जल मधि करत कलोल बिहारी
रीझी भीजी  भिजवावत सहचरि सुख -निधि संग सुकुमारी
तन मन प्रान समान सगबगे  लपटी नेह पट धारी
श्री दासि किसोर सनेह सने नव केलि कला विस्तारी

   *🌹श्री कुंज बिहारी श्री हरिदास🌹*

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