श्रीनित्यानन्द प्रभु स्तुति( लीलामृत से)
*श्रीनित्यानन्द प्रभु स्तुति*
रासविलास परिणति राधाकृष्ण एकाकृति।
युगलोज्जवल रस का निर्यास।।
गौरांग अभिन्न देह गौर सेवा विग्रह।
निताई अतिगूढ़ रहस्य।।
गौरांग माधुरायांर्णव प्रतिक्षण।
नव नव बढे जिसकी नहीं अवधि।।
आस्वादे निताई महाभाव नव नव अनुराग।
मिलित माधुरी गौरा निधि।
गौरांग प्रेमाधार प्रभु नीतिसुन्दर।।
तव चरणों में आश्रय जो करे।
पाये युगल प्रेमरस प्राणगौरांग को करे वश,
सेवा सुख सागरे वो तरे।।
शून्य माया प्रभाव निताई सर्वस्व जब।
मन में सदा गौर प्रेमार्णव।।
कृतार्थ करे जीवन धन्य करे त्रिभुवन।
अधिकारी वही गोपीभाव।।
नाचे निताईसुन्दर नाचे चूढा मनोहर ।
नाचे कर्णे मकर कुंडल।।
नाचे रक्त नेत्र द्वय
अखिल मर्म हरदम
नाचे वैजयन्ती माला कटि में किंकिणी बाजे
उन्मत्त गोरा रसराज
श्रीचरणे नूपूर रसाल।
नाचे निताई नटराज गाये भगत समाज।
बाजे मधुर खोल करताल।।
करुणा धारा प्रवाह जीव भाग्य का समुदाय।
जो न करे अमृत धारा में स्नान।।
वही महामन्द मति कभी नहीं उसकी गति।
वह पापी जिये किस कारण?
सुरधनि तीरे तीरे विहरे सपरिकरे।
धन्य धन्य पानिहाटि ग्राम।।
बैठाये प्रेम का हाट करे कितना रंग नाट।
आकर्षक गौरगुण धाम।।
नाचे निताई सुन्दर स्तब्ध सब चराचर
देवगण पुष्प वरिषण।
ब्रज सखागण मध्य जैसे दाऊ दादा सज्ज।
वैसे लीला भुवन मोहन।।
कब वो सौभाग्य होगा नदिया नगर जाऊँगा।
हरिसंकीर्तन अभिलाष नदिया राजपथ में देखूंगा।।
हे सन्तजन ! आप सब मुझे एक आशीर्वाद दो की श्रीनित्यानन्द राम ही मेरे सर्वस्व प्राणधन हों वे मुझे प्रेम दान करें अथवा विष देकर मारें, फिर भी वे हैं मेरे प्राणनाथ और मेरी उनके श्रीचरणों में रतिमति नित्य निरन्तर बढ़ती रहे। जो पापियों के पत्थर से आघात खाकर उनको आलिंगन प्रदानकर प्रेमदान करें ऐसा अवतार न हुआ है न होगा।
हे बंधुओ!यदि तुम अति शीघ्र अलौकिक कृपा चाहते हो तो शीघ्र ही निताईगौर का भजन करो।मैं निताई चरणों मे बिक जाऊँगा, केवल निताई गौर ही मुझ पतित के बाँधव हैं।
हे सन्त महन्त जनों! आप अपने तीव्र भजन साधन के बल से सिद्धि प्राप्त कर सकते हो। मैं तो जन्म जन्मांतर का अपराधी हूँ। भजन साधन हीन मुझको तो एकमात्र भरोसा एकमात्र निताई चाँद के श्रीचरण कमलों में ही है। गौरप्रेम रूपी रस सागर को हृदय में धारण करने वाला , गौरचन्द्र का चकोर , उसके प्रेम में मदमत्त होकर कलि के गर्व को खर्व करके उस पर पदनत करते हुए हरिनाम में मधुर नृत्य कर रहा है, उनके कर्णो में कुंडल हैं , जिव्हा में गौरनाम है, सदा सर्वदा जगत को गौरमय ही देखते हैं।उनकी लीला का कोई अंत नहीं। ब्रह्मा और शिव भी उनकी लीला को समझने में असमर्थ हैं।तब साधारण कलिहत जीव उनकी महिमा का पार किस प्रकार करेगा?
देवदुर्लभ कृपा प्रबल बलशाली नित्यानन्द प्रभु के द्वारा सब सम्भव है।जीव नाना योनियों में अपने कर्मवश भृमण कर रहा है, अब कलिकाल में प्रेमदाता निताई चाँद की शरण लेते हैं।वे ही हमें धन्य कर सकते हैं।श्रीगौरकृपामूर्ति श्रीनित्यानन्द आज भी श्रीगुरु रूप में विचरण कर रहे हैं।जिनकी कृपा पंगु को नचा व मूक को गवा सकती है।हा ! हा! मेरे *करुणासागर गुरुदेव* आप कृपापूर्वक उन निताई चाँद को जो अपने प्राणधन श्रीगौर की सेवा में सदा संलग्न हैं, मुझे उन श्रीनित्यानन्द की शरण मे ले जाने का सौभाग्य प्रदान करें।
(श्रीश्री निताई गौरांग लीलामृत से)
Comments
Post a Comment