जगाई मधाई 1

*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 1
एक दिन नित्यानन्द प्रभु और हरिदास ठाकुर श्रीहरिनाम का प्रचार करते करते नदिया के मार्ग से बाहर निकले तो दो अत्यंत दुरन्त भाई जिनका नाम जगाई मधाई था । वे शराब के नशे में चूर होकर राहगीरों से धन लूट रहे थे। ये दोनों भाई , मद्दपान, मांसाहार , परस्त्रीगमन, आदि कोई ऐसा पाप नहीं था जो इन्होंने न किया हो।

   अतः ये दोनों जिस किसी राहगीर को पकड़ लेते हैं, वह अपने आपको अपवित्र मानकर पुनः गंगास्नान को जाता है। नित्यानन्द प्रभु तो सदा पतितों की खोज में रहते हैं। नित्यानन्द जी ने हरिदास जी के साथ जाकर जब इनकी दुरन्त अवस्था देखी तो उनकी स्वाभाविक असीम करुणा उन दोनों के प्रति उमड़ पड़ी और अपना दृढ़ संकल्प वह हरिदास जी को सुनाने लगे तथा कहने लगे , हे हरिदास ! ये दोनों भाई मदिरा पीकर मतवाले हो रहे हैं, ये यदि कृष्ण नाम मे मतवाले हो जाएं और इनका स्पर्श पाकर जो लोग गंगास्नान को जाते है अब यदि ऐसा हो कि इनके स्पर्श को ही लोग गंगा स्नान के समान मान लें , तभी मेरा नित्यानन्द नाम सार्थक होगा और मैं गौरचन्द्र का दास कहलवाऊंगा।

    इतना कहकर वह हरिदास जी को सँग लेकर जगाई मधाई की ओर बढ़ रहे हैं।यधपि सबने उन्हें जगाई मधाई के पास जाने से रोका।परन्तु करुणा के सागर नित्यानन्द चलते ही जा रहे हैं। गौरचन्द्र रूपी सागर से कृपा को लेकर बादल की तरह जगाई मधाई पर कृपा की बरसात करने के लिए। श्रीनित्यानन्द प्रभु ने हरिदास जी से कहा हे हरिदास ! यदि इन दोनों पर दया दृष्टि हो तभी इनका उद्धार हो। चूंकि दुष्ट यवन जब तुम्हें मार रहे थे , तब भी तुम उनके कल्याण के लिए प्रार्थना कर रहे थे।हरिदास ठाकुर जी ने नित्यानन्द प्रभु की जगाई मधाई पर कृपा देख मन ही मन निश्चय किया कि अब इन महापतित दस्यु भाइयों का उद्धार निश्चित है। इस समय दोनों भाई राहगीरों से मारामारी और गाली गलौच कर रहे थे।

    पास में आकर श्रीनित्यानन्द और हरिदास जी करुणा भरी वाणी से कहने लगे-
बोलो कृष्ण भजो कृष्ण गाओ कृष्ण नाम।
कृष्ण माता कृष्ण पिता कृष्ण धन प्राण।
तुम्हारे कारण हुआ है चैतन्य अवतार।
कृष्ण भजो और सब छोड़ो अनाचार।

     इनका साधु वेश देखकर जगाई मधाई अत्यंत क्रोधित हुए तथा ललकारते हुए , गाली गलौच करते हुए दोनो महापुरुषों को मारने और पकड़ने के लिए दौड़े।श्रीनित्यानन्द प्रभु बलराम जी के स्वरूप हैं।कारण समुद्र में कारणोदशायी महाविष्णु जो अनन्त कोटि ब्रह्मांडों की सृष्टि करके पालन करते हैं।ऐसे महाशक्तिधर श्रीनित्यानन्द प्रभु मनुष्य लीला में भय से भाग रहे हैं।भय भी जिनसे भय पाता है , ऐसे अनन्त प्रभु की कैसी मधुर लीला, उनकी मनुष्य लीला।इसीलिए तो नित्यानन्द अपार करुणा के भंडार हैं मधुर से भी अति मधुर हैं।दौड़ते हुए और हाँफते हुए वह सीधे महाप्रभु जी के घर मे प्रवेश कर गए।नशे में चूर जगाई मधाई उनको अपनी आंखों से ओझल देख आपस मे ही लड़ने लगे।उधर महाप्रभु जी अपने भक्तों के साथ कृष्ण कथा में मग्न थे नित्यानन्द जी तथा हरिदास जी ने हाँफते हाँफते घर मे प्रवेश किया, महाप्रभु ने उस समय जिज्ञासा की क्यो क्या बात है श्रीपाद!आप दोनों इस तरह हाँफते हुए क्यों आये।क्रमशः

जय निताई जय गौर

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