5

*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 5

निष्पाप श्रीश्री जगाई मधाई को महाप्रभु जी का कृपा पात्र जान सरस्वती जी ने उनकी जिव्हा पर अधिष्ठान किया।श्रीश्री निताई गौर की लीला माधुरी तत्व जानकर जगाई मधाई हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे , जिसके श्रवण एवम पाठ से ब्रज भक्ति की प्राप्ति होती है।वे बोले -हे श्रीश्रीविशमंभर प्रभु !आपकी जय हो ! जय हो ! श्रीविशम्भर प्रभु के सर्व मनोरथ पूर्णकारी श्रीनित्यानन्द प्रभु आपकी जय हो। आप दोनों नामानन्द में आनन्दमग्न हैं।अतः आप आचार्य हैं,और आपके प्राणधन श्रीचैतन्य देव के समस्त कार्य पूर्णकारी हैं।जय जय श्रीजगननाथ मिश्र नंदन करुणासिन्धु सचिसुत श्रीगौरहरि आपकी जय हो । हे पूर्ण कृपामय कलेवर श्रीनित्यानन्द हे वैष्णवाधिराज आपको शत शत नमन है।हे प्रभु !श्रीनित्यानन्द आप साक्षात गौरचन्द्र के द्वितीय प्रकाश ही हो। पूर्व पूर्व अवतारों में आपने जीवों को मारकर उनका उद्धार किया है, परन्तु इस परम करुणामय अवतार में आपने मार खाकर उसके बदले देव दुर्लभ निज प्रेम दान दिया है।हे नित्यानंन्द प्रभु !आपके समान दयालु इन तीनों लोकों में कोई नहीं है।इतना कहकर वे फूट फूटकर रोने लगे।

    चारों ओर खड़े वैष्णवजन इन दोनों भाइयों की अपूर्व स्तुति सुनकर हाथ जोड़कर नयनअश्रु बहाने लगे।प्रसन्न होकर गौरसुंदर बोले -जगाई मधाई को मैं सर्वोत्तम वैष्णव बनाऊंगा और इतना ही नहीं ब्रह्मा को भी दुर्लभ प्रेम इनको दान करूंगा।इनके छुते ही जो लोग गंगा स्नान कर आते थे , अब वे इनके स्पर्श से गंगा स्नान हुआ मानेंगे।इनको घर ले चलो, सचिमता और विष्णुप्रिया को दिखाऊंगा, कि कल यह लोग कैसे थे और आज कैसे हो गए।

    सपार्षद गौरसुन्दर जगाई मधाई को ले निज ग्रह मन्दिर पधारे। जगाई मधाई ने महाप्रभु जी के श्रीचरणों में समर्पण किया , पतित पावन श्रीश्री निताई गौर ने इनको स्वीकार किया।

   श्रीमती विष्णुप्रिया साक्षात भक्तिदेवी हैं। उनकी ही शक्ति के बल से महाप्रभु जी ने जीवोउद्धार लीला की और जगाई मधाई के उद्धार कार्य मे भी भक्तिस्वरूपिणी श्रीबिष्णुप्रिया की सहायता हुई। दया के महासागर श्रीगौरांग महाप्रभु ने जगाई मधाई की अनुताप से भरी आर्तनाद सुनकर परम संतुष्ट होकर दोनो भाइयों को बारी बारी से प्रेमालिंगन प्रदान किया ।भक्तवृंद प्रेमानन्द में बार बार हरि ध्वनि करने लगे । शचिमता और विष्णुप्रिया महारानी जगाई मधाई के प्रति महाप्रभु जी की कृपा दृष्टि देखकर प्रीम आनन्द में आकुल होकर नयनअश्रु बहाने लगी । घर के भीतर बैठी वैष्णव ग्रहणी गण आनंद ध्वनि करने लगी। महाप्रभु जी ने जगाई मधाई को अपना प्रेम दान दिया।श्रीमती विष्णुप्रिया ने उनको भक्ति प्रदान की। वे प्रेमभक्ति पाकर समस्त पापों से मुक्त ही गए।श्रीबिष्णुप्रिया था गौरांग महाप्रभु की अपार कृपा पाकर वह धन्य हो गए।युगलराज की परम कृपा पाकर वे अत्यंत दीन हीन हो गए उनके नयन अश्रु बहाने लगे और उन्होंने श्रीश्रीनिताई गौर की स्तुति की।स्तुति को सुनकर उनके प्रति प्रिया जी के मन मे करुणा उतपन्न हुई , नवद्वीपेश्वरी करुणामयी श्रीश्री विष्णुप्रिया जी की परम कृपा से उनको देव दुर्लभ प्रेम प्राप्त हुआ।

   जगाई मधाई की अतिदीन भावना देखकर भक्तों के मन मे उनके लिए करुणा का संचार हुआ , श्रीमन महाप्रभु जी ने भक्तों को सम्बोधन करते हुए कहा कि आज से यह दोनो मेरे सेवक हैं।सब मिलकर इन पर अनुग्रह करो कि अब यह जन्म जन्मांतर मुझे नहीं भूलें। यदि इन्होंने आपके प्रति अपराध किया हो तो वह क्षमा करके इनपर दया करो।

पतितपावन महाप्रभु जी ने जगाई मधाई के पाप इसलिये क्षमा कर दिए , क्योंकि वैष्णवों के श्रीचरणों। में अपराध होने से भक्ति लता नहीं बढ़ पाती।घोर अपराध पागल हस्ती के समान है जो हृदय रूपी उद्यान में लगी भक्ति लता की बेल को उखाड़कर फेंक देता है।जगाई मधाई ने उनकी शरण ली थी।शरणागत भक्तों के लिए श्रीभगवान कुछ भी कर सकते हैं।गौर शिक्षा का सार यही है कि जीव मेरा है, मेरे भक्त और मेरी शरण मे रहे, संतों की सेवा करता रहे, शुद्ध आय द्वारा जीवन यापन कर मेरी लीलाओं का स्मरण करता रहे तो वह मेरी माया से पार जा सकता है।अर्थात उसके सब पाप क्षमा कर मैं अपनी शरण मे ले लेता हूँ।श्रीगौरसुन्दर ने कहा कि अब इन दोनों को कोई पापी नहीं माने। श्रीभगवान ने इतनी करुणा किसी अवतार में नहीं दिखाई है।महाजनगण ग्रंथो में लिख गए हैं-

*अवतार सार निताई गौर अवतार*
क्रमशः

जय निताई जय गौर

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला