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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 4
    जगाई पर इस प्रकार की अपार कृपा देखकर मधाई
लज्जित हो उठा।उसने गौरसुन्दर से प्रार्थना की -प्रभु!हम दोनों ने मिलकर यह पाप किये हैं।परन्तु आपने जगाई पर कृपा कर उसके पाप मोचन किये ,अब मुझे भी क्षमा करो।ऐसा कहकर वह जैसे ही महाप्रभु जी के चरण कमलों में गिरने जा रहा था, उनका क्रोध मधाई पर बना हुआ ही था।वे कुछ दूर हटकर बोले -मैं तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता।मैं अपने वश में नहीं हूँ।जगाई ने कहा कि तो फिर राम कृष्ण आदि अवतारों में असुरों ने तुमको बाणों से बींधा था फिर भी तुमने उनको अपना पद दिया था।गौरसुन्दर ने कहा -दैत्यों की अपेक्षा भी तुम बड़े अपराधी हो, दैत्यों ने तो मुझे मारा था परन्तु तुमने तो मेरे प्राणों से प्यारे निताई को मारा है।मधाई पुनः बोल उठा -प्रभु फिर मेरे अपराध का खंडन किस प्रकार होगा।गौरहरि ने कहा यदि निताई तुम्हें क्षमा कर दे तो सुदर्शन चक्र से तुम्हारी रक्षा हो सकती है।यह सुन पतितपावन निताई दयाल कहे प्रभु !मैं हृदय से कहता हूँ, मधाई के प्रति मुझे कोई द्वेष नहीं है।यदि मैंने जन्म जन्मांतर भी कोऊ पुण्य किया हो तो उन समस्त पुण्यों का फल मैं इन दोनों भाइयों को देना चाहता हूँ।कृपा करके मधाई को भी अपनी शरण मे ले लीजिए।इतना सुनते ही प्रभु ने मधाई को अपने श्रीअंगों मे भर लिया और जोर से आलिंगन करके कहने लगे ,मधाई!अब तुम मेरे अत्यंत प्रिय हो गए, मेरे निताई ने तुम्हें क्षमा कर दिया है तथा उनकी कृपा से तुम परम वैष्णव बन गए हो।आंजे से तुम मेरे अंतरंग भक्त हुए। महाप्रभु का आलिंगन पाने से उसका हृदय आनन्द से नाचने लगे।

    उसी क्षण आनंद मूर्छा को प्राप्त कर वह महाप्रभु जी के चरणों मे गिर पड़ा।दोनो भाई श्रीश्री निताई गौर के चरणों मे पड़े हैं।आस पास खड़े लोग निताई चाँद की करुणा वत्सलता को देख अश्रु बहा रहे थे।आज समस्त नदिया ने जान लिया था कि नित्यानंद करुणा के सागर हैं।जिन्होंने मार खाने के बदले में प्रेम दिया है।अत्यंत क्रूर आज परम दीन बन गए हैं।दोनो भाई परम दीनता को प्राप्त हुए हैं।प्रेम भक्ति के कारण दोनो का हृदय दीनता से भर गया है तथा पश्चाताप की अग्नि जल रही है।श्रीगौरसुन्दर ने भक्तों को कीर्तन आरम्भ करने की आज्ञा दी।जगाई मधाई का उद्धार देखकर आज भक्तों में परमानन्द है।जब मधाई ने नित्यानंदजी से प्रार्थना की तो उन्होंने अपनी अजानुलम्बित भुजाओं को फैलाकर उसे प्रगाढ़ आलिंगन प्रदान किया, जिससे उसके सभी पाप ध्वस्त हो गए, सारे बन्धन टूट गए।श्रीनित्यानन्द प्रभु ने उसके शरीर मे प्रवेश किया तब वह सर्व गुण सम्पन्न होकर महावैष्णव बन गए।

   अब जगाई मधाई दीन की तरह हाथ जोड़कर खड़े हैं।तब महाप्रभु जी ने कहा भैया जगाई मधाई अब तुम भविष्य में और पाप न करो तो तुम्हारे सब पाप मैं अपने ऊपर लेता हूँ।ऐसा कहते ही गौरसुन्दर का शरीर श्यामवर्ण हो गया।उन्होंने भक्तो को उच्च स्वर में कीर्तन करने की आज्ञा की तथा कहा कि हरिनाम से यह समस्त पाप मेरे शरीर से निकल जाएंगे और वैष्णव निंदकों के शरीर मे प्रवेश कर जाएंगे।

     कलियुग पावन अवतार श्रीमहाप्रभु जी ने एक बार कहा था कि वैष्णव अपराधियों को छोड़ शेष सब जगत का मैं उद्धार करूंगा।एक जगह उन्होंने सनातन गोस्वामी को उपदेश देते हुए कहा

नाम मे रुचि, जीव दया , वैष्णव सेवन
इससे श्रेष्ठ धर्म नहीं सुनो सनातन।।
अतः हे बंधुगण! उत्तम वैष्णवों की प्रीतिपूर्वक सेवा करके ही हम श्रीनिताई गौरांग द्वारा प्रदत्त श्रीकृष्ण प्रेम को प्राप्त कर सकते हैं।क्रमशः

जय निताई जय गौर

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