श्यामसुंदर नर्तकी वेश
*श्याम सुंदर कवियित्री वेश*
एकबार श्याम सुंदर श्यामांगी कवियित्री का वेश धरकर श्री राधारानी से मिलने पहुंचे
कवियित्री वेश में श्याम सुंदर बोले-"हे गुणनिधे!आप सकल कला पारंगत हो
आपकी प्रशंसा सुनकर मैं दूर मथुरा से आई हूं
उज्जयिनी के परम विद्वान से मैंने काव्यशास्त्र का अध्ययन किया है
मेरे श्री गुरुदेव भी मुझसे सदा प्रसन्न रहते हैं
परन्तु मेरे मनमे एक ग्लानि है"
श्री राधारानी ने कहा-"कहो क्या ग्लानि है"
कवियित्री-"रानी!मुझे केवल एक ही ग्लानि है,मेरे काव्यशात्र को यथार्थ में समझे ऐसा कोई मुझे आजतक मिला नही
मैंने आपकी कीर्ति सुनी है,रस शास्त्र में,भाषा शास्त्र में आप बेजोड़ हैं
बस अपनी कुछ रचनाएं सुनाना चाहती हूं"
राधारानी ने मुस्कुराकर अनुमति देदी
तब कवियित्री वेश धारी श्याम सुंदर ने अद्भुत रस सिक्त कविता सरिता से सभी को आप्लुत कर दिया
एक तो कविता की अपूर्व रचना,तिस पर विषय माधुर्य सिंधु श्री राधा श्याम सुंदर का अपूर्व केली विलास
कविताओं को सुनकर सखियों में सात्विक भाव उदय हो गए
हिरणीयां अपने पतियों के संग स्तम्भित हो श्याम सुंदर की वाणी सुधा का पान करने लगीं
यमुना जी की गति स्तम्भित हो गई
कोकिलायें, भ्रमर ऐसे शांत हो गए मानो वे भी श्याम सुंदर के मुखसे केली विलास वर्णन सुन रहे हो
राधारानी भी विलासानन्द के स्मरण से अतिशय आनंद में डूब गईं
फिर थोड़ा चेत होते ही उन्हें शंका हुई
ये कवियित्री निकुंज विलास का वर्णन कैसे कर रही है?
ये रहस्य तो केवल श्याम सुंदर जानते हैं,ललिता भी ये रहस्य नही जानती
रूप रति जानती हैं ,पर वो किसी अनजानी स्त्री से कहेंगी नही।फिर इसे कैसे पता
ध्यानसे राधारानी ने उनके श्यामल अंगों को देखा
देखते ही पहचान गई
राधारानी बोली-"हे कवियित्री!तुम्हारी कला से हम सब अत्यंत प्रसन्न हैं।तुम्हे एक प्रशस्ति पत्र देना चाहती हूं"
यह कहकर उन्होंने एक कमल पत्र में अपनी उंगली को कलम बनाकर, अपने मस्तक कुमकुम की स्याही बनाकर लिखा-
'प्रियतम श्याम राधा आज आपको कवि अलंकार की उपाधि देती है।
【जो सभी कवियों की कविताओं के अलंकार हैं,सभी कवियों की कविताएं आपके गुणगान से ही सार्थक हैं,सुंदर है।अन्यथा केवल शब्द विलास है】
परन्तु साथमे एक नाम भी देती है 'छल कला पण्डित'
ऐसा लिखकर श्रीराधा ने उसपर अपने लीला कमल की छाप लगा दी,फिर चुपचाप अपनी ही वेणी माला से उस पत्र को बांध दिया
श्रीराधा बोली-"हे प्रिय कवियित्री!यह प्रशस्ति पत्र मैंने तुम्हें दिया ।परन्तु यहां नही अपने गृह जाकर खोलना"
श्याम सुंदर प्रसन्न हो गए कि प्रिया जी ने कम से कम आज तो उन्हें नही ही पहचाना
आनंद तो तब आएगा जब कल उनसे कहूंगा -" वाहः री तुम सबकी चतुराई तुम सब कल मुझे पहचान न पाई"
हाय ललिता का मुंह तो देखते बनेगा
यह सोचते हुए श्रीराधा के चरण वंदन कर श्याम सुंदर दौड़ते हुए निज गृह लौटे
वचन जो दिया था प्यारी को,घर लौटकर ही पढूंगा
प्रशस्ति पत्र खोलकर पढ़ते ही श्याम सुंदर हँस दिए।वाहः प्यारी सबको छल सकता हूँ,तुम्हे नही
जय जय श्री राधे🙌🏼🙏🏼🙇🏻🌹
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