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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 7

गंगा तट का ब्राह्मण समाज यह लीला देखकर आश्चर्यचकित हो उठा, सभी एकमत होकर विचार करने लगे कि यह तो साधारण मनुष्यों का काम नहीं है।सारे नवद्वीप में आज आनन्द ध्वनि हो रही है।सबके मुंह पर यही बात है।नदिया के घाट पर आनन्द का स्तोत्र बह रहा है।आज पतित पावनी गंगा जी के मन मे बड़ा आनंद है स्नान के बाद भक्तवत्सल श्रीमन महाप्रभु जी ने सबको चन्दन माला अर्पित की।जगाई मधाई को भी बुलाकर स्नेह पूर्वक मालाएं अर्पित की।कुछ नदियावासियों के मन में श्रीमन महाप्रभु तथा श्रीनित्यानन्द जी की भगवता के प्रति सन्देह था। किंतु आज उन्होंने निताई गौरसुन्दर को श्रीकृष्ण बलराम का स्वरूप माना।जो जगाई मधाई पहले भक्तो की हिंसा करते, हरिनाम करने वालों पर हमला करते , आज वही श्रीहरिनाम सुधारस में मतवाले होकर नाचे हैं। जन जन को रुलाने वाले आज सबको हंसाये हैं।ऐसा अद्भूत श्रीश्रीनिताई गौर का लीलारंग देखकर उनके मन मे उनकी भगवता के प्रति सन्देह दूर हो गया है।

   जगाई मधाई में अब समस्त देव् गुण नम्रता, उदारता,सहिष्णुता आदि आ रहे हैं।वे वैष्णव जन को देखते ही दण्डवत प्रणाम करते हैं।सदैव दीनता के कारण मुख नीचे की ओर झुका रहता है।दोनो भाई उषाकाल में गंगा स्नान करते हैं और एकांत में विराजकर नित्य दो लाख जाप करते हैं। अपने पापों के लिए सदा सर्वदा प्रभु से क्षमा मांगते हैं और क्रंदन करते रहते हैं। कल तक दोनो भाई सबको रुलाकर हंसते थे, परन्तु पारसमणि निताई चंन्द्र का ऐसा कृपा परस हुआ कि स्वर्ण के समान उज्ज्वल चरित्रवान होकर स्वयम क्रंदन कर रहे हैं और गा रहे हैं -
मेरे नित्यानंद प्रभु करुणा अवतार।
करुणा अवतार प्रभु कृपावतार।।
तुम जैसा करुणा का अवतार कोई नहीं नित्यनन्द।
मार खाकर भी दुष्टों को तुमने दिया है आनन्द।।
तुम्हण हो जीवन के परम आधार।
मेरे नित्यानन्द प्रभु करुणा अवतार।।
तुम्हारी कृपा से मिले गौरसुन्दर।
हर समय महाप्रभु रहें तुम्हारे अंदर।।
मेरे नित्यानंद प्रभु करुणा अवतार।
प्रभु तुम ही कराते हो भक्तों का बेड़ापार।।
जगाई मधाई बढे थे अत्याचारी।
फिर भी उनपर कृपा करी भारी।
आपकी कृपा से हुआ उनका उद्धार।
मेरे नित्यानंद प्रभु करुणा अवतार।।
  हे मेरे मन !अवतार सार निताई गौर का तुमने भजन नहीं किया, हाय हाय अमृत सरोवर के पास में रहने पर भी तुमने उसका अनुसंधान नहीं पाया।
  हे मन ! तुमने सदा अमृत पाने की चाह में कांटों के वृक्ष को सींचा। प्रेम कल्पतरु दाता निताईसुन्दर के चरणों मे तुम्हारी रति नहीं हुई।ईस शुष्क काष्ठ रूपी संसार को चूसने या प्रीति करने से किस तरह तुम्हें कृष्ण सत्संग और कथामृत का पान हो सकता है। ओह मेरे मन !तुमने तो बिल्कुल विपरीत कर दिया , प्रेम योग्य वस्तु श्रीनिताई गौर चरणों को त्यागकर तुमने संसार मे आसक्ति की है।हे बन्धु !इसका परिणाम अत्यंत भयावह है तुम्हें 84 लाख योनियों में भृमण करना पड़ेगा , हर बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त करना होगा।

  अगर तुम इस दुखालय अशाश्वत संसार में जन्म मृत्यु के चक्र से बचना चाहते हो तो उसका उपाय सुनो।निताई गौरांग के श्रीचरनकमल कोटि कोटि चन्द्रमाओं की शीतलता का तिरस्कार कर रहे हैं। चंद्रमा से भी अनन्त कोटि गुणा अधिकाधिक सुशीतल हैं।श्रद्धापूर्वक विश्वास करो,और उनकी शरण ग्रहण करो। यदि तुम युगल प्रेम प्राप्ति की इच्छा रखते हो और अगर तुम श्रीश्रीनिताई गौर के चरण कमलों की शरण नहीं लेते तो तुम्हारी युगल प्रेमप्राप्ति की आस अत्यंत सुदुर्लभः है।हे मन !यदि निताईसुन्दर के दास के तुम दास हो सको तो ही श्रीगौर चरणकमलों की प्राप्ति हो सकती है।अहो !आश्चर्य इस कलिकाल में निताई गौर रूपी सूर्य और चन्द्र एकसाथ प्रकट हुए हैं, इनके अंधकार रूपी कलिकाल दूर भाग गया है। नित्यानंदजी और गौरांग चरणकमलों में अनुराग समस्त सांसारिक क्लेशों का नाश करके हृदय में समस्त शुभ मंगल भाग्य को जगाता है । अतः संसाररूपी भयावह सिंधु से पार जाने के इछुक हे साधुजनों यदि तुम श्रीश्रीनिताई गौर के संकीर्तन यज्ञ में योगदान दो, अर्थात सदा सर्वदा
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
इस महामन्त्र का जाप करो। यदि कोटि कोटि जन्मों के सौभाग्य से तुम्हारी इच्छा श्रीश्रीराधाकृष्ण प्रेम प्राप्ति की हो तो अतिशीघ्र ही सभी भजन अंगों का परित्याग करके इस कलिकाल में श्रीकृष्ण प्रेम के दाता श्रीश्रीनिताई गौर के श्रीचरण कमलों की शरण ग्रहण करो। क्रमशः

जय निताई जय गौर

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