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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 8
हे भक्तजन!मैं दांतो में तृण दबाकर सबके श्रीचरणों में गिरकर प्रार्थना करता हूँ कि भगवत्प्राप्ति की सभी मांगों को दूर से ही परित्याग करके एकमात्र श्रीश्रीनिताई गौर की शरण ग्रहण करो ।
भक्तराज जगाई मधाई का भाव है -
हमारा जीवन सदा पापे रत
नहीं कोई पुण्य लेश
अन्यों को उद्वेग दिया अनंत,
दिया जीवों को क्लेश।
निजसुख हेतु पाप से नहीं डर
दयाहीन मैं स्वार्थपर
पर सुखे दुखी सदा मिथयाभाषी
परदुख सुखकर।
अशेष कामना, हृदय में मेरी
क्रोधी मैं दम्भपरायण
महामत्त सदाविष्ये मोहित
हिंसा गर्व विभूषण।
आत्म निवेदन , तव चरणे कर,
हुआ परम सुखी
दुखदूर गया,चिंता न रहा,
नित्यानन्द दर्शन पाकर
अशोक अभय अमृत आधार
तुम्हारे चरण द्वय
तुम्हारा संसार करूंगा सेवन।
न होऊँगा फल भागी।
तव सुख हेतु करूंगा यत्न
होकर श्रीचरण अनुरागी।।
तुम्हारी सेवा से दुख यदि हो
वह तो परम सुख।
सेवा सुख दुख परम सम्पद
नाशे अविद्या दुख।
पूर्व इतिहास भूला हूँ सकल
सेवा सुख पाकर मने।
हम हैं तुम्हारे तुम हो हमारे
क्या कार्य पर धने।
भक्तिविनोद कहे प्रभु नित्यनन्द
ततसेवा अति सुखकर।।

कलियुग कल्मषहारी , श्रीकृष्ण प्रेमदाता श्रीमन नित्यानन्द गौरांग प्रभु श्रीकृष्ण भक्तिरूपी वृक्ष के मूल हैं। जिनका श्रीमुखकमल शरतकालीन चंद्रमा की शोभा को तिरस्कृत कर देता है। जो सदैव मन्द मन्द मुस्कुराते रहते हैं। श्रीश्रीनिताई गौरांग सबके आधार हैं।

  हे श्रीनित्यानन्द प्रभु !आप शचीनंदन के अतिशय प्रिय हैं।आप नित्यानन्दमय हैं।आपका उठना, बैठना, चलना प्रेमानन्द स्वरूप है।कलिकाल के डूबते हुए जीवों का उद्धार करने के लिए आप अपार करुणा को लेकर आये हैं।अतः आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं।चूंकि मैं जन्म से अशेष पापों में रत्त , अति दुष्ट, हिंस्क और अमंगलकारी हूँ। हे करुणासिन्धु श्रीश्री नित्यानन्द प्रभु !मैं दीन हीन आपकी कृपा पाने के योग्य हूँ।आप सदा सर्वदा कलिकाल के दुखी जीवों को भजनानंद दान करने के लिए श्रीगौरसुन्दर के चरण कमल में प्रार्थना करते हैं।हे दयामय ! मैं अत्यंत मंदभाग्य , उपद्रवी तथा अनाथ जीव हूँ।आप अपनी कृपा शक्ति प्रदान कर मुझे सनाथ कीजिये।आप सदा सर्वदा गौरहरि को कहते हैं कि -हे प्रभु !कलिकाल के कलुषित जीवों की क्या गति होगी।, उनके प्रायश्चित का उपाय भी मुझे कहिये, मुझे उनके उद्धार का उपाय बताइए , कलिकाल के पतित जीवों के लिए आप विचार करते हैं कि यदि मुझे अपना खून भी देना पड़े तो इनका उद्धार करूंगा।इसलिये आप सर्वत्र सबसे प्रार्थना करते फिरते हैं कि-
    हे भैयाओ !तुम सब लोग मिलकर प्रेम पूर्वक सदा सर्वदा चलते, फिरते,उठते, बैठते, हरे कृष्ण महामन्त्र का उच्चारण करते रहो, यदि तुम सब लोग ऐसा करोगे तो तुम सबको संसार सागर से पार करने का दायित्व मेरा होगा। अतः हे कृपा निधि नित्यानंदजी जी!मुझे ऐसी सद्बुद्धि प्रदान करें कि मैं सदा आपकी आज्ञा का पालन करता रहूँ। हे आदरणीय पाठकगण !आज गौर नित्यानंद प्रभु जी के अवतरण से पृथ्वी धन्य हो चुकी है।उनकी कृपा से पूरे संसार मे श्रीहरिनाम संकीर्तन चल रहा है। भक्तगण नृत्य कर अपने आपको धन्य कर रहे हैं और नित्यानंद गौरांग की कृपा से कृष्ण प्रेम प्राप्त कर रहे हैं।ओह !!यदि निताई गौरसुन्दर कलिकाल में प्रकट न होते तो हम कलिहत जीवों की क्या दुर्दशा होती। कृष्ण महा अनुरागिनी प्रेमरस सागर सार सर्वलक्ष्मी ईश्वरी कृष्णकांता शिरोमणि वृन्दावनेश्वरी महाभावस्वरूपा श्रीराधिका जी के कृष्ण प्रेम की असीम और अनन्त महिमा माधुरी का प्रचार निताई गौर पार्षदगण श्रीरूप सनातन के अलावा और कोई नहीं कर सकता था।सुमधुर श्रीधाम वृन्दावन महिमा माधुरी वर्णन सामर्थ्य किसी मे न था।क्रमशः

जय निताई जय गौर

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