5 अधूरी
*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*
*जय जय श्री विष्णुप्रिया गौरांग*
भाग 5
*गौरविरहिणी विष्णुप्रिया*
महाप्रभु ने अबला विष्णुप्रिया को पलँग पर सोती छोड़कर चुपके से गृहत्याग किया था । उस रात्रि के दो दण्ड रहते जब प्रिया जी की नींद टूटी तो अपने प्राणवल्लभ को शैया पर न पाकर उन्होंने व्यथित होकर पलँग पर इधर उधर हाथ फेरकर देखा कि उनके प्राणवल्लभ शैया पर नहीं हैं । वे रुदन करती हुई कहने लगीं -
हा हा प्राणनाथ छाड़ि गेले हे नदिया।
अनाथिनी विष्णुप्रियाय निठुर हईया।।
सखी कंचनमाला ने उन्हें संभाला। उनके शरीर मे प्राणों का संचार रुक गया । काँचना का गला छोड़कर प्रिया जी भूतल पर गिर पड़ी । उनका सर्वांग थर थर कांपने लगा, केश बिखर गए, सोने के अंग धुली धूसरित हो गए।शचीमाता तथा सभी भक्त भी हाहाकार करने लगे। पशु पक्षी , जीव जंतु पर्यंत गौर विरह में रो रहे हैं।
नदिया के समस्त भक्तगण उपवासी रह गए। किसी के भी घर में हांडी न चढ़ी।सभी वैष्णव गृहणियां जो मैया तथा प्रिया जी को सांत्वना देने आई थी लौटकर ही न गयी। लौटती भी तो कैसे ? मातृ हृदय का विलाप देख उनका कोमल हृदय चूर चूर हो रहा था । उस रात्रि वे सब उनके पास ही रहीं। दोनो ने जल तक स्पर्श नहीं किया। उस रात सबने गौर गुणों का गान करते हुए हृदय शीतल किया और विरहाश्रु बहाये।
जैसे ही महाप्रभु जी के सन्यास की खबर शचीमाता के कानों में पड़ी , वे आँगन में पछाड़ खाकर मूर्छित हो गयी। बहुत देर तक उनको चेतना नहीं आई।वैष्णव ग्रहणीजन उनको घेर आँगन में बैठ मुंह पर कपड़ा देकर फुफकार मारकर रोने लगी। भक्तवृंद बाहरी दालान में हाहाकार और आर्तनाद करने लगे।गम्भीर शोकवेग से हृदय चूर चूर हो गया। कोई स्थिर होकर खड़ा न रह सका।सभी भूतल पर पछाड़ खाकर गिरने लगे और उच्च स्वर से रुदन करने लगे।
घर में श्रीविष्णुप्रिया देवी मृतवत पड़ी थी। उन्होंने तीन दिन से जल स्पर्श नहीं किया था।उनमे बोलने की शक्ति भी न थी।प्रभु के सन्यास ग्रहण की खबर उनके कानों में भी पहुंची।वे जोर जोर से छाती पीटने लगी।सभी सखी मिलकर भी उनको पकड कर न रख सकी।श्रीप्रिया के आर्तनाद से काष्ट और पाषाण हृदय भी द्रवित हो उठे।
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