मकर संक्रांति गौर लीला

🙌🏼 आज मकर संक्रांति के महापर्व पर विशेष :::

गौड़ीय वैष्णवों के लिए आज का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सभी को भवसागर से पार कराने के लिए अवतरित हुए दया के सागर श्रीमन चैतन्य महाप्रभु ने आज ही के दिन श्रील केशव भारती द्वारा कटवा (काटोया) नामक स्थान पर सन्यास ग्रहण किया था। वैसे तो भगवान श्री चैतन्य हर तरह से स्वतंत्र हैं परन्तु शास्त्रों की मर्यादाओं का सम्मान करने हेतु उन्होंने श्रील केशव भारती से संन्यास लिया। उस ग्राम में महाप्रभु के केश काटे थे इसलिए नाम पड़ा काटोया।

संन्यास ग्रहण करने से पहले ही महाप्रभु ने अपने कुछ अन्तरंग पार्षदों को इसकी जानकारी दे दी थी । कुछ ही दिनों पहले नदिया के कुछ विरोध करने वाले ब्राह्मणों ने निमाई पंडित को बुरा-भला कहा था । निमाई ने सोचा, “मैं तो यहाँ पतितों का उद्धार करने आया हूँ और यदि ये लोग मेरे प्रति इसी तरह अपराध करते रहे तो इनका उद्धार कैसे होगा ।” ये लोग तो मुझे बालक या अपना सहपाठी, सम्बन्धी, गृहस्थ आदि समझ कर कभी भी मेरी शरण ग्रहण नहीं करेंगे ।

सब चाहने वाले प्रतिदिन की तरह फल-फूल इत्यादि लेकर निमाई से मिलने आये। सभी को निमाई ने एक ही उपदेश दिया, “सदैव कृष्ण का नाम लो और किसी भी परिस्थिति में उनका नाम लेना न भूलो । कुछ भी कार्य करते रहो, खाना, सोना-जागना, दिन-रात परन्तु हर समय *कृष्ण* नाम लो। यदि आप लोग वास्तव में मुझसे प्रेम करते हो तो, कृष्ण के नाम जप को भूलकर कोई कार्य मत करो ।"

अंतिम रात्रि माता के साथ प्रेमपूर्वक बातें करते हुए उन्होंने कोलवेचा श्रीधर द्वारा भेंट किये हुए कद्दू की खीर बनाने का अनुरोध किया। और मध्य रात्रि करीब ३ बजे वे माँ और पत्नी को प्रणाम करके घर से निकल गए । उन्होंने तैर कर गंगा पार की और उन्हीं गीले कपड़ों में कटवा की ओर दौड़ पड़े।

मकर संक्रांति की पूर्व संध्या के अवसर पर कई लोग गंगा स्नान करने के लिए एकत्रित हुए थे । महाप्रभु के संन्यास की खबर आग की तरह सब तरफ फ़ैल गयी। सभी निमाई पंडित से अथाह प्रेम करते थे और इतनी कम आयु में संन्यास की खबर उनके लिए बड़ी ही दुखदायी थी ।संन्यास की विधि के अंतर्गत जब नाई को निमाई के मुंडन करने को कहा गया तो वह उनके केश देख कर इतना मन्त्र-मुग्ध हो गया कि उसने उन पर उस्तरा चलाने से मना कर दिया । बहुत समझाने बुझाने पर वह मान तो गया परन्तु इतने सुन्दर केशो को देखकर उसका मन नहीं मान रहा था।  फिर भी इस कार्य को सेवा मानकर आँखों में अश्रु भर के उसने मुंडन किया। इस सेवा के बाद नाई ने वचन लिया कि अब चाहे उसे भिक्षा माँगकर रहना पड़े परन्तु वह अब इस व्यवसाय त्याग देगा एवं किसी और के केश नहीं काटेगा । इस घटना के उपरांत वह हलवाई बन गया और मिठाई बनाने लगा ।

निमाई के केश रहित रूप को देखकर चारों ओर से विलाप ध्वनि आने लगी । लोग पागल की भांति इस दुखद दृश्य से बचने के लिए आँखे मूँद कर इधर-उधर भागने लगे । निमाई के बारम्बार अनुरोध करने पर वे सब शांत हुए और श्री चंद्रशेखर आचार्य की अध्यक्षता में संन्यास की विधि आगे बढ़ाई गयी । श्री केशव भारती द्वारा मन्त्र प्रदान करने के समय निमाई ने कहा कि मुझे स्वप्न में यह मन्त्र पहले ही मिल गया है और उन्होंने गुरु के कान में वह मन्त्र बोला । श्री केशव भारती ने वही मन्त्र निमाई के कान में बोल दिया एवं उनको “कृष्ण चैतन्य” नाम दिया । इस नाम का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा “कृष्ण चैतन्य” अर्थात संसार के सभी जीवों के हृदय में कृष्ण की चेतना जगाने वाला, सभी को कृष्ण भावना-भावित करने वाला । जैसे ही लोगों ने यह नाम सुना सभी जोर से चिल्लाते हुए जय ध्वनि करने लगे ।

यद्यपि श्री चैतन्य महाप्रभु का संन्यास सभी लोगों एवं परिवारजनों को संताप देने वाला था परन्तु उन्होंने केवल हम सब जीवों के लिए संन्यास लिया ताकि वे सभी जीवों को *कृष्ण* नाम देकर सबका उद्धार कर सकें ।

🙌🏼 श्रीराधारमण दासी परिकर 🙌🏼

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