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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 2

नित्यानन्द प्रभु ने कहा -प्रभु आज दो ब्राह्मण बन्धु मिले , सभी पापों में रत्त, और नशे में चूर, आपकी आज्ञा अनुसार हम उन्हें कृष्ण नाम सुनाने गए , तो उन्होंने हम पर हमला कर दिया , प्राण बचाकर ही हम आये हैं।श्रीमन महाप्रभु जी ने भगवदावेश में आकर कहा कौन हैं?ये जगाई मधाई । सामने बैठे श्रीवास और गंगादास बोल उठे-
प्रभु आप सब कुछ जानते हैं, इन दोनों दस्युओं ने पूरे नगर में आतंक मचा रखा है।इनके नाम से सभी नगरवासी कांप उठते हैं।कोई ऐसा पाप नहीं है जो इन्होंने न किया हो, यह सुनकर महाप्रभु जी ने क्रोध में आकर कहा - जानता हूँ जानता हूँ इन दोनों को। समय आने पर दोनो को मृत्युदंड दूंगा। श्रीनित्यानन्द प्रभु जी बलराम हैं जो दास्य , सख्य, वात्सल्य आदि भावों से नित्य प्रभु की सेवा में लीन रहते हैं और इनको संतुष्ट करके जीवों के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं।यहां भी जगाई मधाई के उद्धार के लिए नित्यानन्द प्रभु जी ने महाप्रभु जी से कहा -प्रभु धार्मिक लोग तो बोलने पर ही कृष्ण नाम ले रहे हैं , यदि आप इन दुराचारी, धर्मज्ञान शून्य,क्रूर, हिंसक तथा शराबी भाइयों के मुख से कृष्ण नाम निकलवा सको , तभी आपका पतितपावन नाम सिद्ध होगा। नित्यानन्द जी की प्रार्थना सुनकर महाप्रभु जी का क्रोध शांत हो गया।वे नित्यानन्द जी से बोले -श्रीपाद !उनका उद्धार तो उसी समय हो गया था जब उन्होंने आपके दर्शन किये थे और अब आप स्वयम उनके मंगल की कामना कर रहे हो तो शीघ्र ही श्रीकृष्ण उनका उद्धार करेंगें।

  यह सुनकर नित्यानन्द प्रभु जी को महाआनंद हुआ तथा सभी भक्तवृंद हरि हरि ध्वनि करने लगे।गौरचन्द्र ने आगे कहा कि प्राचीन काल मे अजामिल नाम कज एक पापी था। यह दोनों तो उससे भी आदिम पापी हैं। जिनके उद्धार का एक ही उपाय है इनको मंगलमय श्रीकृष्ण नाम प्रदान करना। आओ आज सब मिलकर हरिनाम संकीर्तन करते हुए जगाई मधाई के घर जाकर श्रीहरिनाम मन्त्र की शक्ति से इन दोनों दस्युओं का उद्धार कर श्रीहरिनाम की महिमा का प्रचार करते हैं।महाप्रभु जी का आदेश सुनकर सभी भक्तगण आनन्द सड़ उन्मत्त हो उठे । श्रीअद्वैतप्रभु, हरिदास ठाकुर, श्रीवास पंडित और उनके चारों भाई मुरारी गुप्त, मुकुन्द दत्त, चन्द्र शेखर ,आचार्यरत्न, गदाधर पंडित,ठाकुर नरहरि, शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी आदि सब मन्दिर में एकत्र हुए महाप्रभु जी के मंदिर में महासंकीर्तन आरम्भ हुआ तथा महाप्रभु जी के साथ सभी चल पड़े हैं। गौरसुन्दर मालती पुष्पों की माला धारण किये हुए हैं, श्रीचरणों में नूपुर है, श्रीहरिनाम में नयन रंजन नृत्य विलास करते हुए जा रहे हैं।श्रीनित्यानन्द प्रभु जी के मन मे आज खूब आनन्द है।चूंकि श सपार्षद जगाई मधाई के उद्धार के लिए जा रहे हैं, जिनके उद्धार के लिए अपार करुणासागर नित्यानंद जी ने कमर कस ली है, सबके आगे वह नृत्य करते हुए चल रहे हैं। जगाई मधाई के घर के बाहर आकर जोर से नृत्य कर रहे हैं।

   पिछली रात जगाई मधाई ने बहुत शराब पी थी, इसलिये दोनो भाई आज संध्याकाल तक सो रहे थे । संकीर्तन का उच्च नाद स्वर सुनकर उनकी निद्रा भंग हो गयी था वह क्रुद्ध हो उठे और चारपाई से उठ घर के बाहर आये। दोनो की आंखें लाल लाल थी तथा सबको क्रोध भरी दृष्टि से देखने लगे, तब भी संकीर्तन न रुका तो वह वैष्णव जन को गालियां देते हुए उन्हें मारने के लिए दौड़े, कलिहत जीवों की यह दशा देख निताई चाँद के नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होने लगे।उन्होंने विचार किया कि कलिकाल के पतित जीवों के लिए अपना खून देकर भी हरिनाम जपा सकूँ।ऐसा विचारकर उन्होंने सबसे आगे खड़े होकर जगाई मधाई पर दृष्टिपात किया। इधर जगाई मधाई नित्यानन्द के अश्रु देख भी शांत न हुए , उन्होंने सोचा कल आया हुआ अवधूत आज हमको मारने के लिए ही सबको बुलाकर लाया हैं।

  नित्यानन्द को देख ह क्रोधित हो उठे , उधर नित्यानन्द हरिनाम दान करने हेतु उनकी ओर बढ़े, यह देख उनका क्रोध चौगुना हो गया।वे क्रुद्ध होकर उनके सामने आए। परम करुणा के अवतार दयाल पद्मावती नन्दन निताई चाँद रोते हुए उनसे कहने लगे-
आओ आओ हे गंगा तट पर दोनो भाई।
आज तुमको हरिनाम दूंगा हे जगाई मधाई।

     तब दुष्ट मधाई ने क्रोधोन्मत्त होकर सामने कुछ न देख एक फूटे घड़े का ठीकरा लेकर दयालु निताई चाँद के सिर को लक्ष्य कर जोर से चलाया।क्रमशः

जय निताई जय गौर

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