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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जय जय श्री विष्णुप्रिया गौरांग*

             भाग 4

   *विष्णुप्रिया का नकवेसर खोना*
एक दिन प्रातः काल श्रीमती विष्णुप्रिया के गंगास्नान के समय उनके कान का आभूषण जल में गिर गया। घ्र आकर वे रोने लगीं । उनके मुख से कोई बात नहीं निकल रही थी। घबराकर माँ ने जिज्ञासा की - बहू तुम क्यों रो रही हो ? मेरी सोने की बिटिया !बोलो तुम्हें क्या दुख हो रहा है। प्रिया जी बोली - मां स्नान करते समय मेरा नकबेसर जल में कहीं खो गया है।मेरी दाहिनी आंख फड़क रही है और आते समय मेरी दाईं ओर सर्प निकल गया । माँ मुझे चारों ओर से अमंगल के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इतना कहकर विष्णुप्रिया फूट फूटकर रोने लगी। शची माता ने पुत्रवधु को सांत्वना दी। किंतु स्वयं दुख सागर में डूब गई कि क्या मेरा निमाई मेरी सोने जैसी विष्णुप्रिया और मुझे अनाथिनी बनाकर चला जायेगा? मेरी बहु तो साक्षात लक्ष्मी है। कभी भी वह थोड़े से दुख को मुझे नहीं बताती है। अवश्य ही उस पर कोई भारी दुख आन पड़ा है।

  *गृहत्याग की तैयारी*

माघमास के उत्तरायण संक्रांति के दिन रात्रि के अवसान में श्रीनवद्वीपचन्द्र ने सन्यास के लिए नवद्वीप का त्याग किया। अपने अंतरंग भक्तों में से जिनको अपने साथ लेना था , उनको चुपचाप तैयार रहने के लिए कह दिया था। वे सभी महाप्रभु जी की आज्ञा से दालान में सोए रहे।

   आज रात्रि में श्रीगौरसुन्दर ने मां से ठाकुरजी के लिए विविध व्यंजन भोग लगाने के लिए कहा । स्नेहमयी माँ झटपट पुत्रवधु को साथ लेकर रसोईघर में गयी। सुयोग पाकर श्रीगौरसुन्दर भक्तों के साथ अंतिम विदाई लेने नगर भृमण हेतु निकल पड़े। गरीब श्रीधर उसरात प्रीतिपूर्वक लौकी दे गया था । भक्तवत्सल गौरसुन्दर ने उसी रात पाक करवाया।भक्तों को आनन्द देने वाले श्रीगौरहरि ने उस दिन सभी भक्तों के घर जाकर हास परिहास लीला कर सबका मन मोह लिया । गौरहरि आज भावी भक्त विरह के कारण दुखी हैं। उन्होंने नयनों  में अश्रु भर गंगा जी का दर्शन किया और अपनी बल लीला स्थली नवद्वीप की ओर अंतिम शुभ दृष्टिपात कर भक्तों को अंतिम बार प्रेमालिंगन किया और ग्रह मन्दिर आकर महाप्रसाद पाया। आज फिर शयनालय में पलँग पर आ विराजे। विष्णुप्रिया ने सुवासित पान , चन्दन, फूल मालादि द्रव्य लेकर धीरे धीरे शयन मन्दिर में प्रवेश किया। रसराज श्रीगौरसुन्दर की अतिसुन्दर रूप छटा , मधुरिमा व प्रफुल्ल मुखकमल देखकर अपना सारा दुख भूल गयी और प्राणेश्वर को सजाने की चाह छिपा न सकी। आज्ञा लेकर प्रिया जी ने चन्दन , कुमकुम, कस्तूरी , फूलमाला लाकर उनका विविध श्रृंगार किया।

     रसराज श्रीगौरांगसुन्दर अब प्रियाजी को सजाने लगे। पहले कबरी बांधकर उसके चारों ओर सुंदर मालती पुष्पों की माला जड़ित कर दी । उनके सुंदर ललाट पर अल्कातिलक की रचना कर दी और सिंदूर का बिंदु लगा दिया और कमल सम दीर्घ नयनों में अंजन लगा दिया । फिर दिव्य अलंकार धारण करवाये । विष्णुप्रिया के त्रेयलोक्य विमोहन सुंदर रूप को देख वह प्रीम में विभोर हो गए।

  श्रीश्रीराधाकृष्ण की युगलविलास लीला के समान ही श्रीश्रीविष्णुप्रियागौरांग की युगलविलास लीला है।कलिकाल में हर व्यक्ति के आश्रय श्रीश्रीविष्णुप्रियागौरांग ही हैं। क्योंकि श्रीश्रीराधाकृष्ण ही इस युग मे विशुद्ध कृष्ण प्रेमामृत की उन्मद मधुर अमृतलहरी जगत को दान देने हेतु प्रकट हुए हैं। श्रीवृन्दावन के समान ही श्रीनवद्वीप धाम दर्शन है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी लिखते हैं -
नवद्वीप दर्शन करे जो जन।
जन्मे जन्मे पाये वो कृष्ण प्रेम धन ।।
सर्वमहिमामयी श्रीश्रीराधाकृष्ण की आराधना के साथ साथ सर्व माधुर्य से परिपूर्ण श्रीश्रीविष्णुप्रियागौरांग की युगल आराधना से भक्तों को शीघ्र ही सर्वार्थसिद्धि (युगल प्रेम)की प्राप्ति होती है।
क्रमशः

जय निताई जय गौर

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