जगाई 3

*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 3

परम दयाल सदानन्द निताई चाँद के मस्तक से रक्त की धारा बह चली जिस पर उन्होंने ध्यान न दिया और प्रेमानन्द में गौर गौर कहते हुए मधुर नृत्य करने लगे , उपस्थित भक्तवृंद हाहाकार करने लगे। इस पर भी मधाई का क्रोध रूपी राक्षस शांत न हुआ वह पुनः घड़े के एक टुकड़े को लेकर नित्यानंदजी को मारने के लिए उद्द्यत हुआ तब जगाई ने उसे जोर से पकड़कर बोला -अवधूत को अब और नहीं मारना , सन्यासी को मारकर तुम्हें क्या लाभ होगा। मार खाकर भी वह बोल रहे थे-

मारा कलशी का काना इसे सह जाऊँ,
तुम्हारी दुर्गति नहीं सह पाऊँ।
मारा है मारा है भाई कोई क्षति नहीं ,
सुमधुर हरिनाम बोलो यही भिक्षा रही ।
सुनते ही महाप्रभु जल्दी भागे आये ,
चीर कर भीड़ जल्दी आगे आये ।
आहत निताई चाँद को गोद मे ले,
गौरहरि अत्यंत प्रेम से सहलाये।
प्रभु देख रहे हैं अपलक केवल निशा गगन,
ओ चक्र! ओ चक्र! सुदर्शन आवाहन।

     प्रभु भगवदावेश में चक्र चक्र कहकर हुंकार गर्जन करने लगे । गौरसुन्दर का यह भाव देखकर सभी भगवत भक्त हाथ जोड़कर खड़े हो गए।मुरारीगुप्त हनुमान के आवेश में हुंकार गर्जन करके प्रभु से बोले -मेरे रहते आपने सुदर्शन चक्र को क्यों स्मरण किया।आदेश कीजिये मैं अभी दुष्ट जगाई मधाई को यम के घर भेज दूँ।अनाथबन्धु नित्यानंदजी जी ने यह सुनकर मुरारीगुप्त का हाथ पकड़ लिया, और विनती करके उन्हें रोका और प्रलयकारी चक्र की शांति के लिए गौरसुन्दर से प्रार्थना की।श्री विशम्भर प्रभु महाप्रलयंकारी क्रोध को धारण किये थे, मानो कोटि कोटि रुद्र एक साथ महाप्रभु जी की देह में विराज रहे हों, चारो ओर हाहाकार मच गया।गौरसुन्दर के किसी भी प्रिय भक्त में यह साहस नहीं था कि उन्हें कुछ कहें , फिर सामान्य लोगों की तो बात ही क्या है।एक मात्र नित्यानंदजी नयनअश्रुओं से कहने लगे-दीन बन्धु बचा लीजिये, जगाई मधाई अब मेरे हैं, इनकी रक्षा कीजिये।
  
    हे करुणासिन्धु !हर जीव आपकी कृपा का पात्र है, और यह करुणावतार धारण करने से पूर्व आपने पापियों को प्राणदण्ड न देने का वचन किया था, बल्कि पापियों के पाप हरिनाम द्वारा मोचन करके उनको निष्पाप करने का संकल्प लिया था। हे दीनो के नाथ कलियुग के जीवों पर दया करने का समय आ गया है। इधर जगाई मधाई प्रलंयकारी चक्र देखकर हाहाकार करने लगे, उनके प्राण सूख गए।नित्यानंद जी ने कहा -प्रभु इन्हें क्षमा कर दो। जब मधाई दूसरी बार कलसी मार रहा था तब जगाई ने मेरी रक्षा की थी। प्रभु मुझे कोई कष्ट नहीं है।कृपा कर इन दोनों भाइयों की रक्षा की भिक्षा देकर अपना पतितपावन नाम सार्थक करो।जगाई ने नित्यानंदजी की रक्षा की है यह सुनकर प्रभु जगाई से बोले-तुमने नित्यानंदजी की रक्षा कर मुझे खरीद लिया है।महाप्रभु जी ने उसका आलिंगन कर लिया।श्रीलक्ष्मीपति का स्पर्श व उनका प्रेम पाकर वह रोमांचित हो उठा , उन्होंने जगाई पर ऐसी परम कृपा की तब उसे प्रेम मूर्छा आ गई।इतनी कृपा करके भी गौरसुन्दर को शांति नहीं मिली, उन्होंने अपना रमा द्वारा सेवित,ब्रह्मा, शँकरादि देवों द्वारा पूजित एवम भक्त सुधा संजीवनी श्रीचरनकमल उसके वक्ष स्थल पर रख दिया । योगीजन जिन चरण कमलों की पदम् गन्ध की घ्राण सहस्त्रों जन्मों तक भी नहीं पाते वही चरण कमल आज गौरसुन्दर ने जगाई की वक्षस्थल पर रख दिये हैं।जगाई को उसी समय सुर वांछित अष्टसात्विक भाव प्रकट हो गए और उसका मन निर्मल हो गया। जिससे पश्चाताप की अग्नि उसके हृदय को जलाने लगी तथा वह अजस्र अश्रु बहाते हुए गौरसुन्दर के श्रीचरणों में गिर पड़ा। क्रमशः

जय निताई जय गौर

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