जयदेव 2
श्री जयदेवजी ------( Part- 02 )
.
(पूर्व की Post से आगे का वर्णन )
..........................................प्रभु की कृपा से बहुत कम समय में जयदेव द्वारा रचित काव्य "गीतगोविन्द" दूर दूर तक प्रचलित हो गया ,
उस समय नीलांचल धाम का राजा पंडित था ,
उसने भी गीतगोविन्द नामक एक पुस्तक बनाई और ब्राह्मणों को बुलाकर कहा की यह वही 'गीतगोविन्द ' है
.
आप लोग इसे पढ़िये , इसकी प्रतिलिपियाँ कर लीजिये व् देशदेशांतर में जाकर इसका प्रचार करिये इसके लिए हम आपको बहुत सा धन देंगे ,
.
राजा की बात सुनकर ब्राह्मण मुस्कुराये और असली 'गीतगोविन्द 'को निकालकर दिखाते हुए बोले की राजन !
असली गीतगोविन्द तो यह है जिसे स्वयं जयदेवजी ने प्रभु राधिकारमण की कृपा से रचा है।
आप वाला तो कोई और ही गीतगोविन्द है
.
इसे देखकर तो अब हमारी बुद्धि भी भ्रम में पड़ गयी है ,
.
बाद में विद्वानों के मतानुसार दोनों पुस्तको को अंतिम निर्णय हेतु प्रभु जगन्नाथ जी के समक्ष रखा गया।
.
बड़े बड़े दिग्गजों , विद्वानों व् राज्य के श्रेष्ठ वरिष्ठजनो की उपस्थिति में ,
प्रभु ने राजा वाली पुस्तक को तो दूर फेक दिया व् जयदेव रचित पुस्तक को अपने वक्षस्थल का हार बना लिया और उसके चारो और अपने प्रसादी हार को लपेट दिया।
.
प्रभु के इस निर्णय को सभी ने स्वीकारा ,
.
इधर प्रभु जगन्नाथजी द्वारा अपनी पुस्तक का इस प्रकार परित्याग देखकर राजा को चिंता हुई
और वह खिसियाना रह गया ,
ग्लानि में भरकर वह समुद्र की और चल दिया और उसने निश्चय कर लिया की अब में डुब कर प्राण दूंगा ,
.
मेने तो गीत गोविन्द में उन्ही भावो को लेकर कविता की है जिन्हें की जयदेवजी ने व्यक्त किया है ,
.
फिर भी मेरा प्रभु ने अपमान किया !
मेरा रोम रोम अपमान की आग से जल रहा है ,
इसे में किस प्रकार छिपाऊँ ?/
.
जब राजा डूबने चला तो स्वयं प्रभु ने प्रकट होकर कहा - राजन ! डूबने की जरुरत नही है ,
जयदेव ने जो रचना की है उस जैसी न तो तुम्हारी यह रचना है , और न ही किसी दूसरे की हो सकती है।
.
ऐसी दशा में तुम्हारा शरीर त्याग व्यर्थ ही है ,
.
तुम एक काम करो अपनी रचना मे से बारह सर्वोत्तम श्लोक जयदेवजी कृत "गीतगोविन्द " के बाहरवें सर्ग में मिला दो ,
.
इस रीती से तुम्हारे बनाये गए श्लोक भी उस परम सुन्दर 'गीतगोविन्द ' के साथ संसार में प्रचलित हो जायेंगे ,
जिसकी प्रसिद्धि पत्ते-पत्ते में , अर्थात सर्वत्र हो गयी है।
..
.
.
शेष वर्णन अगली Post में - कृपया भाव से ग्रहण करे
.
.
हे गोविन्द
Comments
Post a Comment