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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत*

*जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार*

             भाग 10

इस घोर दुखमय संसार सागर से पार जाने के इछुक हे सुधी साधुजन !कृपया अपने हित की बात सुनिए! मैं दांतों में तृण रखकर , श्रीचरणों में गिरकर बहुत ही अनुनय विनय करता हूँ कि श्रीश्रीनिताई गौरचन्द्र की शरण लो, निताई चांद ने तुम सबके लिए श्रीकृष्ण नाम का जहाज बनाया है और भव सागर के तट पर लाकर खड़ा कर दिया है-

अंधा, लूला , लँगड़ा, क्रोधी , पापी , दुखी सभी इससे भव सागर पार जा सकते हैं। उन्होंने सद्गुरु को जहाज का कप्तान बना दिया है, सेवा द्वारा सद्गुरु को प्रसन्न करते हुए हरिनाम जपें बाकी श्रीभगवान का वचन वे स्वयम निभाएंगे।

   जगाई मधाई अब महाधर्मिक हो गए हैं। उषाकाल में उठकर गंगास्नान करते हैं और अपने आपको बहुत धिक्कार देते हैं।जगाई मधाई उद्धार लीला को देखकर धर्मराज ने चित्रगुप्त से पूछा -जगाई मधाई के पापों का अंत नहीं था , उनका अब हिसाब बताओ तो?चित्रगुप्त ने विनय पूर्वक कहा -महाराज !इनका पहाड़ के समान पापों का लेखा मेरे पास था । जब से नदिया अवतार महाप्रभु जी ने इनके पापों को ग्रहण किया , मेरे खाते में पापों के स्थान पर भगवत कृपा और भागवत दर्शनरूपी महापुण्यों का वर्णन है।निताई गौरांग की करुणा का विचार कर धर्मराज मूर्छित हो गए।

  धर्मराज को घेरकर सभी देव गण कृष्ण नाम कीर्तन करने लगे , मूर्छा भंग होने पर देवगण पृथ्वी पर आ गए , उनमे नारद आदि मुनि गण भी थे। सभी आकर श्रीगौरसुन्दर की स्तुति करने लगे-

जय जगत मंगल प्रभु गौरसुन्दर।
जय सर्व जीव लोकनाथ।।
उद्धारे हे, करुणा से ब्रह्मदैत्य जैसे।
हम पर भी करो दृष्टिपात।

गौरसुन्दर के दिव्य दर्शन करके ब्रह्मादि देवताओं के मन मे हर्षोउल्लास हुआ और वे स्तुति, नृत्य , कीर्तन करने लगे।

नाचे प्रभु शंकर होकर दिगम्बर
कृष्णावेशे वस्त्र नहीं जाने।
नाचे श्री चतुरानन भक्ति जिनकी प्राणधन
लेकर समस्त देवगण
कश्यप कर्दम दक्ष मनु भृगु महामुख्य
पाछे नाचे ब्रह्मा पुत्रगण।।
श्री चैतन्य प्रिय भृत्य शुकदेव करे नृत्य
भक्ति की महिमा शुक जाने ।
धूलि में लोटपोट कर जय जय जय कहे
जगाई मधाई धन्य माने।

  जगाई मधाई में अब तीव्र वैराग्य के लक्षण दिख रहे हैं । सुबह से शाम तक दोनो भाई निर्जन स्थान पर बैठकर 2 लाख हरिनाम नित्य करते हैं।उन्होंने अपना घर छोड़ दिया है तथा श्रीनिताई गौरचन्द्र के भक्तवृंद का आश्रय ले लिया है।आज वे इसके घर से कल उसके घर से भिक्षा करते हैं तथा अति दीन भाव से गंगा के रास्ते पर और नदिया के रस्ते पर हा निताई !हा गौर ! कहकर भूमि में लोटपोट होते हैं।व्याकुलता पूर्वक क्रंदन करते हैं। सभी जीवों में ईश्वर का दर्शन करते हैं। सबका बहुत सम्मान करते हैं और पहले की घटनाओं से बहुत दुखी होते हैं।नित्यानंदजी तथा गौरसुन्दर स्वयम भी तथा अपने भक्तों के द्वारा उन्हें बहुत समझाते हैं।तथापि वह चित्त में सुख नहीं पाते हैं। विशेषकर मधाई यह सोचकर कि जिनके हृदय में गौरांग महाप्रभु साक्षात विलास करते हैं उन प्रभु के मस्तक पर मैंने आघात किया। ऐसा विचारकर वह आत्म ग्लानि से रोते रहते हैं।वे कहते हैं कि जिस अंग में श्रीचैतन्य चन्द्र विहार करते हैं , उनके मस्तक पर मुझ पापी ने प्रहार किया है।जगाई मधाई निर्जन में गंगातट पर बैठे हुए थे। मृदुले सुमन्द पवन बह रही थी। सूर्यदेव अस्तगामी हो रहे थे।जगाई मधाई नित्यानंदजी का स्मरण कर रहे थे उसी समय प्रभु आ पधारे। रोते रोते मधाई उनके चरणों मे गिर पड़ा । परम करुणामय श्रीनित्यानन्द प्रभु ने अपना सुर सेवित श्रीचरण कमल उनके हृदय पर रख दिया । परम भाग्यवान मधाई श्रीनिताई चरण कमलों की अपार कृपा पाकर सर्वतत्ववेता हो गया। सरस्वती जी उनकी जिव्हा पर विराजमान हो गयी। वह हाथ जोड़कर श्रीनित्यानन्द प्रभु की स्तुति करने लगा-

अवतार शिरोमणि नित्यानन्द सरकार
पापी तापी उद्धार हेतु तव अवतार
करुणानिधि तुम दयालु ठाकुर
पतितों के प्रति करुणा प्रचुर
जिनकी शरण से कभी न हो नाश
पतित पावन हेतु जिनका है प्रकाश
शरणागत वत्सल करो प्रभु परित्राण
मधाई के तुम हो जीवन प्राण
जय जय जय श्री पद्मावती नन्दन
जय नित्यानन्द प्रभु सर्व वैष्णव धन
जय जय अक्रोध परमानंदराय
शरणागत के तुम क्षमो अपराध
दारुण *चांडाल* मैं अधम गोखर
सब अपराध प्रभु मेरे *क्षमा* कर

    मधाई की स्तुति से दया के सागर श्रीनित्यानन्द प्रभु ने संतुष्ट होकर उनको अपने हाथ से पकड़ कर उठाया और कहा - उठो मधाई उठो , अब तुम मेरे दास हो।बालक पुत्र के पैर लगने से पिता को क्या दुख होता है।मेरे शरीर पर तुम्हारा प्रहार भी तो ऐसा ही है।तुमने जो मेरी स्तुति की है यह जो भी सुनेगा , वह भी मेरे चरणों का भक्त बन जायेगा। तुम मेरे गौरचंद के कृपा पात्र हो।जो जन मेरे गौरहरि का भजन करते हैं मैं युगों युगों तक उनकी रक्षा करता हूँ।जो मेरे विशम्भर को न भज केवल मुझे भजता है और मेरी स्तुति करता है उससे मुझे बहुत दुख होता है तथा वह भी बहुत दुख पाता है।मधाई ने रोते हुए श्रीनिताई चाँद के चरणों मे प्रार्थना की-
हे प्रभु सब जीवों के हृदय में आप ही निवास करते हो।मैंने ऐसे बहुत से जीवों को सताया है जिन्हें मैं पहचानता नहीं हूं। यदि पहचानता तो मैं उनसे क्षमा मांग लेता। जिनके प्रति मैंने अपराध किये हैं वह मुझसे कैसे प्रसन्न होंगे।दयाकर इसका उपाय बताइए।
  श्रीनित्यानन्द प्रभु ने कहा - हे मधाई ! तुम सदा गंगा जी के घाटों की सफाई किया करो। गंगा जी की सेवा सब अपराधों का भंजन करने वाली है।उससे लोगों को सुख होगा तथा वह तुम्हें आशीर्वाद देंगे।अति विनयपूर्वक सबको नमस्कार करना इससे तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। मधाई उस घाट की सफाई करने लगे , जगाई ने बहु उनके इस मांगलिक कार्य मे सहयोग दिया। मधाई जिस घाट की सेवा करते थे , उसका नाम मधाई घाट पड़ गया जो आज भी प्रसिद्ध है।मधाई अति दैन्य भाव से घाट पर आने वाले सभी स्त्री पुरुष बालकों को समान भाव से प्रणाम करते है।
धन्य धन्य निताई करुणावतार
जगत उद्धार किये हरिनाम प्रचार।।
लोचनदास ठाकुर जी ने इसलिये लिखा है -
निताई दयाल सम नाहिं अन्य प्रेम दाता।
कहे लोचनदास भज नवीन विधाता।।
ऐसा करुणासिन्धु मेरा निताई चाँद।
अनायासे सर्वजन प्रेमधन पाय।

जगाई मधाई दस्युओं का उद्धार प्रकरण समाप्त।

जय निताई जय गौर

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