अक्रोध परमानन्द

🌸 *अक्रोध परमानंद नित्यानंद राय*🌸

*अक्रोध परमानंद नित्यानंद राय ।*
*अभिमान शून्य निताइ नगरे बेडाय ।।१।।*

अहो ! क्रोध शून्य परमानंद स्वरूप श्रीमंनित्यानंद प्रभुजी की जय हो, जो अपने भगवता के अभिमान को भी त्यागकर स्वयं नगर नगर में भ्रमण कर रहे है

*अधमपतित जीवर द्वारे द्वारे गिया ।*
*हरिनाम महामंत्र दिच्छेन बिलाइया ।।२।।*

अधम व पतित जीवों के घर घर जाकर उन्हें हरिनाम महामंत्र प्रदान कर रहे है ।

*जारे देखे तारे कहे दंते तृण धरि।*
*आमरे किनिया लह, बोलो गौरहरी ।।३।।*

वे जिस किसी को भी देखते है, उसीसे अत्यन्त ही दीनतापूर्वक कहते है अरे भाई !तुम मात्र एकबार गौर हरि बोलकर मुझे खरीद लो ।

*एत बलि, नित्यानंद भूमे गडी, जाय ।*
*सोनार पर्वत जेन धुलाते लोटाय ।।४।।*

ऐसा कहते हुये जब वे प्रेम में आविष्ट हो कर भूमी पर गिर जाते है तथा लौटने लगते है
तो ऐसा जान पड़ता है, मानो कोई सोने का पहाड़  धूलि मे लोट रहा हो ।

*हेन अवतारे जार रति ना जन्मिल ।*
*लोचन बले सेइ पापी एलो आर गेलो ।।५।।*

लोचनदास ठाकुर कहते है ऐसे दयालु श्री नित्यानंद प्रभु जी के श्रीचरण कमलो में जिसकी रति नही हुई उसका दुर्लभ मनुष्य जन्म व्यर्थ ही चला गया ।

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