जय निताई
*जय निताइ*
एक बार श्रीपाद रामदास बाबाजी महाराज ने गौर परिकरों के सूचक कीर्तन के प्रारंभ में *गौर-चंद्रिका* के आखर में कहा था;- *"ताँरा सांतार भूले डूबे छिलो।" (अर्थात श्री श्रीरूप-सनातन तैरना भूलकर डूब गए थे)*
परम पण्डित, शास्त्रविद, हमारे दादू श्रीपाद श्रीगौरांगदास बाबा अपने गुरुदेव श्रीपाद रामदास बाबाजी महाराज के आते ही सरलता में डूब जाते। तभी कीर्तन के बाद उन्होंने स्वाभाविक सरलता से प्रश्न किया, - *"क्यों बाबा जो तैरना जानता है, वह क्या भूल सकता है?"* श्रीपाद बाबाजी महाराज गौरांगदास (दादू) की सरलता पर मन ही मन बहुत संतुष्ट हुए, परंतु बाहर से कपट गाम्भीर्य दिखाया, कुछ नही बोले।
जो गौरांगदास *'बाबा'* (श्रीपाद बाबाजी महाराज के लिए) कहते हुए आत्महारा जो जाते, उनके लिए यदि 'बाबा' बात न करें, तो कितना असह्य होगा- इसे समझना प्रीति-राज्य की अनुभूति से ही सम्भव है। मर्माहत होकर गौरांगदास दादू ने रजनीदास बाबा से कहा- _" रजनी! बाबा बात नही कर रहे।"_
_बाबा बात नही कर रहे_ यह बात इतनी मर्मभेदी थी कि रजनीदास बाबा के हृदय को भी बेध दिया।
दो दिन बाद फिर किसी गौर परिकर के सूचक कीर्तन में बाबाजी महाराज का आखर आया- *" श्रीशिक्षागुरु रूपी ताँरा,- केमोन कोरे डूबते होय, ताइ जानाबार लागि....। (श्री श्रीरूप-सनातन आदि आचार्यजन यह लोग शिक्षागुरु की भूमिका में है न! तभी यह बताने के लिए डूबा कैसे जाता है......।)*
कीर्तन के बाद उल्लास से भर कर गौरांगदास दादू बोले- "यह बात बाबा उसी दिन भी कह सकते थे, परंतु अयाचित कृपा!!"
सरलता भरी बात सुनकर श्रीपाद के चेहरे पर विशुद्ध हास्य फ़ूट गया।
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