हरिदास ठाकुर

*श्री हरिदास ठाकुर बोले......*

*" खंड खंड हइ देह, जाय यदि प्राण"*
*"तबु आमि बदने ना छाडि हरीनाम"*

" मेरे शरीर के टुकड़े टुकड़े भी हो जाए अथवा प्राण ही क्यूँ ना निकल जाए परंतु फिर भी मैं हरीनाम नहीं छोड़ूँगा"

*जपकर्ता हेते उच्चसंकीर्तनकारी*
*शत- गुण अधिक से पुराणते धरी"*

*शूनी विप्र- मन दिया इहार कारण*
*जपी आपनारे सब करये पोषण*

*उच्च करी करिले गोविंद संकीर्तन*
*जंतुमात्र शूनीजाईं पाय विमोचन"*

( श्रीचैतन्य भागवत)

हरिदास ठाकुर कहते है - हे विप्र " जो मन ही मन नाम का जप करते है उनकी अपेक्षा उनकी अपेक्षा " उच्च स्वर से कीर्तन करने वालों को सौ गुना अधिक फल मिलता है क्यूँकि मन ही मन जप करने वाला तो अपना ही स्वयं का उद्धार करता है परंतु उच्चस्वर से कीर्तन करने पर जीव जंतुओं के कानो में भी भगवान का नाम प्रवेश कर जाता है और उनका भी उद्धार हो जाता है।

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