भोग आरती
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🍋 भोगआरति 🍋
*भज भकत-वत्सल श्री-गौरहरि*
*श्री-गौरहरि सोहि गोष्ठ-विहारी,*
*नंद-जशोमती-चित्त-हारी।।१।।*
अरे भाइयो! आप सभी लोग भक्तवस्तल श्रीगौरसुन्दर का भजन करो, जो और कोई नही, श्रीनंद बाबा और यशोदा मैया के चित्त को हरण करने वाले, गौरचरण के लिए वन वन में विचरण करने वाले नंदनंदन ही है।
*बेला हो ‘ लो, दामोदर, आइस एखानो*
*भोग-मंदिरे बोसि’ कोरहो भोजन।।२।।*
श्रीनंद बाबाजी ने दामोदर को आदेश दिया कि समय हो गया है; भोग मंदिर में जाकर भोजन करने के लिए बेठो।
*नंदेर निदेशे बैसे गिरि-वर-धारी*
*बलदेव-सह सखा बैसे सारि सारि।।3।।*
अनेक आदेश पर गिरिवरधारी बलदेव तथा अन्य सखाओ के साथ बैठ गए।
*शुक्ता-शाकादि भाजि नालिता कुष्माण्ड*
*डालि डाल्ना दुग्ध-तुंबी दधि मोचा-खंड।।४।।*
शुकता, शाक, नाकिता, कुष्माण्ड, डालि, डालना, दुग्ध, तुम्बी, दधि, मोचाखण्ड।
*मुद्ग-बोडा माष-बोडा रोटिका घृतान्न*
*शष्कुली पिष्टक खीर् पुलि पायसान्न।।५।।*
मूंग का बड़ा, माष का बड़ा, रोटियां, घी युक्त अन्न, शाश्कुलीपिष्टक, क्षीर, पुलि, पायस।
*कर्पूर अमृत-केलि रंभा खीर-सार*
*अमृत रसाला, आम्ल द्वादश प्रकार।।६।।*
अमृतकेलि, रम्भा( केला), द्वादश प्रकार के रस,
*लुचि चिनि सर्पूरी लाड्डु रसाबली*
*भोजन कोरेन कृष्ण हो ‘यो कुतूहली।।७।।*
लुचि, चीनी, रसपूरी, लड्डू आदि का कृष्ण कौतूहल पूर्वक भोजन करने लगे।
*राधिकार पक्क अन्न विविध व्यंजन*
*परम आनंदे कृष्ण कोरेन भोजन।।८।।*
श्रीमती राधिकाजी के द्वारा पकाए नाना प्रकारके सुस्वादिस्ट एवम रसमय व्यंजनों को कृष्ण परम आनंदपूर्वक ग्रहण करने लगे।
*छले-बले लाड्डु खाय् श्री-मधुमंगल*
*बगल बाजाय् आर देय हरि-बोलो।।९।।*
इतने में ही मधुमंगल ने छल बल से कृष्ण के हाथ से एक लड्डू खा लिया तथा आनंद से बगल बजाते हुए हरि बोल हरि बोल बोलने लगा।
*राधिकादि गुणे हेरि’ नयनेर कोणे*
*तृप्त हो ‘ये खाय् कृष्ण जशोदा-भवने।।१०।।*
श्रीमती राधिकाजी तथा उनकी सखिया छिपकर तिरछे नयनो से इस भोजनलीला का दर्शन कर रही है। इस प्रकार श्रीकृष्ण यशोदाजी के भवन में उन समस्त व्यंजनों को खाकर तृप्त हो गए।
*भोजनांते प्रिये कृष्ण सुबासित बारि*
*सबे मुख प्रखालोय् हो ‘ये सारि सारि।।११।।*
भोजन के अंत मे कृष्ण ने सुशीतल एवं सुगंधित जलपान किया तथा सबने मुख धो लिया।
*हस्त-मुख प्रखालिया जत सखा-गुणे*
*आनंदे बिश्राम कोरे बलदेव-सने।।१२।।*
सभी सखावृन्द हाथ मुख धो लेने पशचात बलदेवजी के साथ विश्राम करने लगे।
*जम्बुल रसाल आने ताम्बुल -मसाला*
*ताहा खेये कृष्ण-चन्द्र सुखे निद्रा गेला।।१३।।*
उसी समय जम्बुल(एक सेवक) लौंग, इलायची, कर्पूर आदि सुगंधित मसालो वाला ताम्बूल लेकर आया। कृष्ण उसे खाकर सुखपूर्वक सो गए।
*बिशालाख शिखि-पुच्छ-चामर ढुलाय*
*आपूर्ब शय्याय कृष्ण सुखे निद्रा जाय।।१४।।*
विशालाक्ष(एक सेवक) मयूरपुच्छ एवं चामर ढुलाने लगा तथा कृष्ण उस अपूर्व शय्या पर निद्रा में सो गए।
*जशोमती-आज्ञा पे’ये धनिष्ठा-आनीतो*
*श्रीकृष्ण-प्रसाद राधा भुंजे हो’ये प्रीतो।।१५।।*
तत्पश्चात यशोदा मैया की आज्ञा से धनिष्ठा( कृष्ण की एक सखी) के द्वारा लाए हुए श्रीकृष्ण के प्रसाद को श्रीमती राधिकाजी ने प्रेमपूर्वक खाया।
*ललितादि सुखी-गुण अवशेष पाय*
*मने मने सुखे राधा-कृष्ण-गुण गाय।।१६।।*
अवशिष्ट प्रसाद को ललिता इत्यादि सखियो ने आनंदपूर्वक ग्रहण किया तथा वे मन ही मन राधाकृष्ण का गुणगान करने लगी।
*हरि लीला एक्-मात्र जाहार प्रमोद*
*भोगारति गाय् ठाकुर् भकतिविनोद।१७।।।*
राधाकृष्ण की ऐसी लीलाए ही जिनके लिए आनंद का एकमात्र विषय है, वे भक्तिविनोद ठाकुर भोग आरती गा रहे है।।
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