यदि गौर न होइतो

🌹 *यदि गौर न होइतो* 🌹

*यदि गौर ना होइतो, तबे की होइतो,*
*केमोने धारिता दे।*
*राधार महिमा, प्रेमरस-सीमा*
*जगते जानात के।।*

अगर भगवान श्री श्री गौर इस कलियुग में 'युग-अवतार' के रूप अविभूर्त नही होते तो हम लोगो का क्या होता ? कैसे हम जिंदगी को सहन करते ? इस ब्रह्मांड में कोई भी यह ज्ञान कैसे प्राप्त करता की श्रीमती राधारानी के सर्वोत्तम प्रेमरस की सीमा क्या है, एवम उनकी अपार महिमा का वृतान्त क्या है ?

*मधुर वृन्दा, विपिन-माधुरी,*
*प्रवेश चातुरी सार।*
*व्रज-युवती,भावेर भक्ति,*
*सकती होइत कार।।*

ब्रज की गोपिओं के दिव्य सेवाओ के भावों को अनुसरण करने की शक्ति एवं योग्यता किसने कियी होती? वृन्दादेवी के परम सुंदर वनों में प्रवेश करने की चतुराई एवं भाव जो व्रज गोपिओं में था किसने हमे समझाया होता ?

*गाओ गाओ पुनः गौरांगेर गुण,*
*सरल करिया मन।*
*ए भव-सागरे, एमन दयाल,*
*ना देखिये एक-जन।।*

कृपा करके बारंबार भगवान गौरांग के अपूर्व गुणों की स्तुति का गायन कीजिये। अपने हृदय को साधारण स्थिति में रखकर भगवान गौरांग की स्तुति गायन कीजिये। अज्ञानता के अंधकार से पूर्ण इस भवसागर में किसी ने भी ऐसे परम दयालु को नही देखा।

*(आमि) गौरांग बोलिया, ना गेनू गलिया,*
*केमोने धरिनु दे ।*
*वासुर हिया, पाषाण दिया,*
*केमोने गड़ियाछे।।*

यद्यपि मैं भगवान गौरांग के परम पवित्र नाम जप करता हूँ तथापि न जाने क्यों मैंने अभी तक उनके प्रेम में विचलित होने के भाव को प्राप्त नही किया और न जाने कैसे में इस देह के भार को ढो रहा हूँ । सृष्टिकर्ता ने कैसे इस शरीर का आकार बनाया की वासुदेव घोष के शरीर मे उसके हृदय के जगह में एक पत्थर को दे दिया।

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