वैष्णव वंदना

*🌸श्री वैष्णव वंदना 🌸*

*वृंदावन वासी यत वैष्णवेर गण*
*प्रथमे वंदना करि सबार चरण।।१।।*

सर्व प्रथम में वृन्दावनवासी समस्त वैष्णवो की चरण वंदना करता हूँ।

*नीलाचलवासि यत महाप्रभुर गण*
*भूमिते पडिया वन्दों सबार चरण।।२।।*

ततपश्चात नीलाचल में वास करने वाले महाप्रभु के भक्तों की साष्टांग दंडवत प्रणाम पूर्वक वंदना करता हूँ।

*नवद्वीप वासि यत महाप्रभुर भक्त*
*सबार चरण वन्दों हञा अनुरक्त।।३।।*

इसके अतिरिक्त नवद्वीप में  जितने भक्त निवास करते है, में अनुरक्त होकर उन सबके श्री चरणों की भी वंदना करता हूँ।

*महाप्रभुर भक्त यत गौडदेशे स्थिति*
*सबार चरण वन्दों करिया प्रणति।।४।।*

महाप्रभु के गौड़ (बंगाल) देश मे रहने वाले भक्तों की प्रेमपूर्वक चरणवंदना करता हूँ।

*ये–दशे, ये–देशे वैसे गौरांगेर गण*
*ऊर्ध्वबाहु करि’ वन्दों सबार चरण।।५।।*

इसके अतिरिक्त जिस किसी भी देश मे गौरचंद के गण (भक्त) रहते है, मैं दोनों भुजाओ को ऊपर उठकर दीनतापूर्वक सबकी चरण वंदना करता हूँ।

*हञाछेन हइबेन प्रभुर यत दास*
*सभार चरण वन्दो दन्ते करि घास।।६।।*

महाप्रभु के जितने भी भक्त हो चुके हैं, अभी वर्त्तमान है या भविष्य में होंगे, में दाँतो में तृण धारण कर अत्यन्त दीनतापूर्वक सबकी चरण वंदना करता हूँ।

*ब्रह्माण्ड तारिते सक्ति धरे जने–जने*
*ए वेद–पुराणे गुण गाय येबा शुने।।७।।*

महाप्रभु के एक एक भक्त एक एक ब्रह्माण्डका उद्धार करने में समर्थ हैं, वेद एवं पुराणों में वैष्णवों की ऐसी महिमा का गुणगान किया गया हैं।अतः जो व्यक्ति वैष्णवों का गुणगान करता हैं या सुनता है तो उसका भी उद्धार हो जाता है।

*महाप्रभुर गण सब पतित पावन*
*ताइ लोभे मुञि पापी लइनु शरण।।८।।*

महाप्रभु के सभी भक्त पतितपावन हैं। इसी लोभ से मुझे जैसे पापी ने भी उनके श्रीचरणों में शरण ग्रहण की है।

*वन्दना करिते मुञि कत शक्ति धरि*
*तमो–बुद्धि दोषे मुञि दम्भ मात्र करि।।९।।*

मेरे जैसे तामसी बुद्धिवाले व्यक्ति के लिए उनकी अलौकिक महिमा का वर्णन भी संभव नही है, फिर भी मैं जो कुछ वर्णन कर रहा हूँ, उससे केवल मेरा दम्भ ही प्रकाशित होता है।

*तथापि मूकेर भाग्य मनेर उल्लास*
*दोष क्षमि’ मो–अधमे कर निज दास।।१०।।*

तथापि मेरे जैसे मूक व्यक्ति का सौभाग्य ही है कि उनका गुणगान करने से मेरे मन में उल्लास होता है। अतः हे प्रभु! आप मेरे दोषों को क्षमाकर मुझ अधमको अपना दास बना लीजिए।

*सर्ववांछा सिद्धि हय, यमबंध छुटे*
*जगते दुर्लभ हञा प्रेमधन लुटे।।११।।*

क्योकि यदि कोई वैष्णवों की शरण में चला जाता है, तो उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं, यम के बंधन से (जन्म-मरण के चक्कर से) उसे छुटकारा मिल जाता है एवं जगत के लिए सुदुर्लभ होने पर भी वह कृष्ण प्रेमको प्राप्त कर लेता है।

*मनेर वासना पुर्ण अचिराते हय*
*देवकीनन्दन दास एइ लोभे कय।।१२।।*

देवकी नंदन दास इस आशा से यह सब वर्णन कर रहा है कि अतिशीध्र ही उसके मन की वासना भी पूर्ण हो जाएगी।

श्रीगुरुगौरांगो जयते

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