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A2 28श्री नरोत्तम प्रार्थना - ( ) ( 73 )

 प्रार्थना :-
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 राधाकृष्ण प्राण मोर युगल किशोर ।
     जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥

 कालिन्दी कूले केलि कदम्बेर वन ।
     रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥

श्यामगौरी अंगे दिव चन्दनेर गन्ध ।
    चामर ढुलाब कबे हेरिब मुख चन्द्र ॥

गांथिया मालतीर माला दिव दोंहार गले ।
      अधरे तुलिया दिव कर्पूर ताम्बूले ॥

ललिता विशाखा आदि जत सखीवृन्द ।
     आज्ञाय करिव सेवा चरणारविंद ॥

 श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।
      सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥

♻ शब्दकोष :-
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कालिन्दीर -  यमुना
बसाब - बसाऊँगा
हेरिब - स्नेह से निहारना

इस पद में  भी नरोत्तम ठाकुर ने अपनी सिद्ध देह " चम्पक मञ्जरी " से श्री राधा कृष्ण से नित्य सेवा की प्रार्थना की है । यह प्रार्थना किसी भी वैष्णव भक्त के अन्तर्मन की पुकार भी है , स्वप्न भी है , गति भी और जीवन का लक्ष्य भी !!!!! आईये हम भी परम सिद्ध नरोत्तम ठाकुर के आश्रय में इस आलौकिक भाव स्थिति को ग्रहण करे और इस प्रार्थना का गान करे !!!

 अनुवाद :-
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♻चम्पक मञ्जरी ह्रदयगत भावों को उदघाटित करते हुए कहती है ," युगल किशोर श्री श्रीराधाकृष्ण ही मेरे प्राण है । जीवन - मरण में मेरी और कहीं , और कोई गति नहीं है । श्री यमुना जी के तट पर जो केलि कदम्ब वन है , वहाँ रत्नमयी सिंहासन पर मैं इन दोनों को विराजमान करूँगी ? "

♻ कब मैं श्री श्याम-गौर के  श्री अंग पर  चोबा-चन्दन के  सुरभित द्रव्य से लेप करूँगी ? और उनके श्री मुखचन्द्र को निहारते निहारते उन्हें चामर झुलाऊँगी ? कब वह सुन्दर क्षण होगा .... जब मैं मालती पुष्पों की माला गूँथ कर दोनों के कण्ठ में धारण कराऊँगी और उनके श्री अधरों में कर्पूर मिश्रित ताम्बूल अर्पण करूँगी ?

♻ कब श्री ललिता-विशाखा जू सखियों की आज्ञा से आपके श्री चरण युगल की सेवा करूँगी ??

               और फिर पुनः अपने वर्तमान में स्थित हो नरोत्तम ठाकुर कहते है कि ," मैं श्रीकृष्णचैतन्य देव के दासों का अनुदास मैं यही से�वा अभिलाषा करता हूँ....... ।"

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 ॥श्रीराधारमणाय समर्पणं ॥।

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