रूप नुगा भक्ति राधा सुधा निधि
कथा थोड़ी कठिन है उसमे कुछ तत्व भी है
🏵 *श्रीराधरस सुधा निधि के श्लोक का श्रील् रूपानुगा दर्शन*
श्लोक अर्थ-
"नवयौवन के उदय होने पर महान लावण्य युक्त होकर जो लीलामयी है,
सन्द्रानंद घन श्रीकृष्ण प्रेम मूर्ति है
(सान्द्र घन मतलब very concentrated)
के द्वारा जो विश्व का सम्मोहन करती है,
वृन्दावन के निकुंज भवन में होनेवाली मधुर क्रीड़ाओं के द्वारा जो मनोरम हैं,
श्रीगोविन्द की भांति जो श्रीयशोदा कि प्रेमभाजन हैं,
कुंकुमयुक्त गौर छवि को धारण करनेवाली श्रीराधा की जय हो
( *कश्मीर गौर छवि*
कश्मीर- केसर को कहा गया है।
राधारानी जी के कुमकुम में केसर का प्रयोग होता है)
ये संस्कृत से हिंदी अनुवाद है👆🏼
अब इसीको श्रील् रूपगोस्वामी जी के चरणों में बैठकर समझते हैं
1⃣ *'नवयौवन के उदय होने पर'*
यह किसी भी कवि की स्वाभाविक काव्योक्ति लग सकती है
पर इसमें एक गहरा रहस्य छुपा है जिसका वर्णन श्रील् रूपगोस्वामी जी ने अपने मुकुटमणि ग्रँथ श्री उज्ज्वल नीलमणि में किया है
राधारानी जब छोटी बालिका हैं ,तब भी उनमें कृष्ण प्रेम रति माधुर्य आदि सारे भाव हैं।
क्योंकि वो प्रेम की सर्वाधिक गाढ अवस्था महाभाव की बनी हैं।महाभाव नित्य है
परन्तु बालिका अवस्था मे वो माधुर्य आदि भाव प्रकट नही है,क्योकि लीला अनुकूल नहीं है
जिस प्रकार रात में वस्तुएं दिखाई नही देती,पर वो होती तो है
पर जैसे ही यौवन सूर्य उदय होता है उनके लीला के अनुरूप भाव हमारे सामने प्रकट होते हैं
रावल में जो राधारानी के दर्शन हैं,उनमें भी कृष्ण रति तो नित्य है।उनकी सभी अवस्थाएं सभी लीलाएँ नित्य हैं।
भक्त उन बालिका छवि में भी छुपे इन मधुर्यमयी राधारानी को देख ले
परन्तु किशोर अवस्था को प्राप्त होकर यही भाव प्रत्यक्ष होकर पूर्ण प्रकट हो जाते हैं
2⃣ *कुमकुम युक्त गौर छवि*
ये साधारण अर्थ में लें तो अर्थ होगा वो राधारानी जिन्होंने कुमकुम लगाया है
दूसरा अर्थ ये की उन्हें *कुमकुम गौर छवि* कहा जा रहा है।
【यह छवि मंजरी देख रही है,क्योकि सरस्वती पाद अपने मंजरी स्वरूप में कह रहे हैं】
राधारानी का रंग *तड़ित सुवर्ण चंपक प्रदीप्त गौर विग्रह* है
अर्थात बिजली जैसी चमक युक्त सुवर्ण चंपा रंग है
❓ऐसी सुवर्ण चंपा कांति श्रीराधा कुमकुम कांति कैसे हो गई?
श्रील रूप गोस्वामीजी ने श्री उज्ज्वल नीलमणि में वर्णन किया है राधारानी के गाढ अनुराग का वर्ण लाल है
चटख लाल,उज्ज्वल लाल,ऐसा लाल जिसे चमकने किसी और वस्तु की आवश्यकता नही होती।प्रियाजी का प्रेम स्वतः उज्ज्वल है
प्रेम उद्दीपन अवस्था मे राधारानी के हृदय का यही रंग उनके अंगो पर झलकता है
उस समय उनका श्रीअंग लालिमा लिए दिखता है
श्रीकृष्ण के प्रति जब उनके हृदय का अनुराग पूर्ण प्रकट है,तब जो कुमकुम गौर छवि है,
वही मंजरी देख रही है
यह श्लोक उस समय का वर्णन है जब राधारानी नंदगाँव की ओर जा रही
मंजरी पीछे चलते हुए उन्हें देख रही।
इसीलिये मंजरी को मां यशोदा के राधारानी प्रेम की याद आ गई
श्रीकृष्ण के दर्शन होंगे,इस आशा से श्री राधारानी कुमकुम गौर हुई जा रहीं........
धन्य धन्य दर्शन🙏🏼🙇🏻
जय जय श्रीश्री राधे श्याम🙏🏼🙇🏻🌹
वास्तव में श्रीराधारानी मे रती से लेकर मादनख्या भाव सभी हर अवस्था में उपस्थित हैं चाहे बाल या चाहे किशोर
एक बार किशोर रूप श्रीराधारानी ने बाल कृष्ण को अपने हाथो में ले लिए श्रीनंदबाबा के हाथ से और ख़ूब फिर लीला विलास हुआ
श्रीराधा मादन प्रेम किशोर रूप से श्रीकृष्ण भी किशोर रूप में प्रकट हो गए
नहि तो किशोर श्रीराधारानी में बाल कृष्ण को देखकर माधुर्या भाव कैसे उपजा? नहि तो श्रीराधारानी को भी बाल रूप में आना चाहिए
यह कोई साधन सिद्ध गोपी नहि, श्रीराधारानी तो श्रीकृष्ण की निज अहलादिनी शक्ती हैं
ब्रज में श्रीकृष्ण का आगमन ही श्रीराधा माधुर्या शक्ती से होता हैं फिर माधुर्या भाव प्रधान हैं तो हर अवस्था में माधुर्या प्रेमवती है हमारी राधा
यह तो क्यूँकि श्रीकृष्ण जानते हैं श्रीराधारानी सदा हर अवस्था में मादांख्या प्रेम विभावित
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