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7 श्री नरोत्तम प्रार्थना (
प्रार्थना :-
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प्राणेश्वर निवेदन एइ जन करे ।
गोविन्द गोकुलचन्द्र ,परम आनन्द कन्द
गोपीकुल प्रिय देख मोरे ॥
तुया प्रिय पदसेवा , एई धन मोरे दिवा ,
तुमि प्रभु करूणार निधि ।
परम मंगल यश, श्रवणे परम रस ,
कार किंवा कार्य्य नहे सिद्धि ॥
दारूण संसार गति ,विषयेते लुब्ध मति,
तुया विस्मरण शेले बुके ।
जर जर तनु मन , अचेतन अनुक्षण ,
जीयन्ते मरण भेल दु:खे ॥
मो बड़ अधम जने ,कर कृपा निरीक्षणे,
दास करि राखे वृन्दावन ।
श्रीकृष्णचैतन्य नाम , प्रभु मोर गौर धाम ,
नरोत्तम लइल शरणे ॥
♻ शब्दकोष :-
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एइ जन - यह जीव ( मैं)
तुया - आपकी
कार किंवा -किस प्रकार किसके
दारुण - कठिन
विस्मरण - प्रभु को भूलना
शेल - काँटा
बुके -ह्रदय
भेल- समान
अनुवाद :-
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♻ नरोत्तम ठाकुर कहते है ," हे प्राणेश्वर ! मुझ दास का यह निवेदन सुनिए । हे गोविन्द गोकुलचन्द्र ! हे परम आनन्दकन्द ! हे गोपीजन प्रिय ! मेरी ओर एक बार देखो तो सही !!!
♻ अपने चरणों का सेवा -धन मुझे दीजिये , आप तो प्रभो ! करूणानिधि हो । आपके परम मंगलमय , परम रसमय यश को सुनकर किसके कार्य की सिद्धि नहीं होती ??
♻ हे प्रभो ! मैं संसार की कठिन गति की ओर बढ़ता जा रहा हूँ....... और मेरी बुद्धि भी जगत की माया में लुब्ध होती जा रही है । हाय ! आपका विस्मरण अर्थात आपके दिव्य नाम का स्मरण नहीं कर पाना... यह मेरे ह्रदय में काँटे की भाँति चुभ रहा है । और यह दुख मेरे मन को चूरचूर किए दे रहा है , अनुक्षण मैं बेसुध हो रहा हूँ और आपका मैं नाम स्मरण नहीं कर पा रहा हूँ , इसी दुख में मैं जीते जी भी मृतक के समान हो रहा हूँ ।
♻ मैं अतिशय अधम हूँ , आप मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि कर मुझे अपना दास कर श्री धाम वृन्दावन में रख लीजिए । हे श्री कृष्णचैतन्य नाम धारि गौर-कान्ति विशिष्ट मेरे प्रभो ! अब मैंने आपके ही चरणों की शरण ली है ..... आप कृप्या मुझे अपनी शरण में स्थान दों !!
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॥श्रीराधारमणाय समर्पणं ॥।
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