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॥श्री राधारमणो जयति॥ 
       🔺॥ जय गौर ॥ 🔺

 ॥ श्री नरोत्तम प्रार्थना ॥ ( 1 )

पूज्यपाद सिद्ध बाबा श्री चैतन्य दास जी महाराज से श्री शिशिर कुमार घोष ( एक विख्यात बंगाली कवि ) ने पूछा ," बाबा !! प्रेमभक्ति अति दुर्लभ वस्तु है , कैसे प्राप्त हो ?"

बाबा बोले ," चार पैसे में  ( उस समय के हिसाब से
) ।"
घोष ने चकित होते हुए कहा ," प्रेमभक्ति ..... और चार पैसे में ? आप मेरा उपहास करते हैं ??"

बाबा ने कहा ," उपहास नहीं ! मैं सत्य कह रहा हूँ ! दो पैसे में श्री नरोत्तम प्रार्थना और दो पैसे में श्री प्रेमभक्ति चन्द्रिका बाज़ार में छपी मिलती है । ले आओ और उसका निरन्तर नित्य पाठ करो - प्रेमभक्ति प्राप्त होगी मैं इसका जिम्मेदार हूँ ।"

♻ नरोत्तम  ठाकुर के प्रार्थना गीत अत्यंत ह्रदय स्पर्शी है और समस्त वैषणव समाज के लिए वन्दनीय है ।प्रभुपाद कहते हैं ,"  नरोत्तम  प्रार्थना की धुन संसारकिता के मंच से  ऊपर है..... यह सीधे आध्यात्मिक मंच से आती है ।और यहाँ भाषा समझने की ज़रूरत नहीं है । नरोत्तम प्रार्थना ठीक मेघ गर्जन जैसी है । मेघ गर्जन हर एक सुन सकता है - वहाँ भ्रम का स्थान नहीं है ।इसी तरह यह प्रार्थना गीत संसारिक मंच से उपर है और ये तुम्हारे ह्रदय में बिजली जैसे कौंध जाते है ।"

 नरोत्तम प्रार्थना समस्त साधकों के लिए कण्ठहार के समान है । श्री गुरूपाद आश्रय , नामनिष्ठा , ब्रजधाम निष्ठा से लेकर मञ्जरी स्वरूप सम्बन्धी रागानुगात्मक परमसाध्य वस्तु श्री श्रीप्रियालाल जी की निकुञ्ज सेवा तक का स्वरूप श्री नरोत्तम ठाकुर महाशय ने प्रार्थना के रूप में सुप्रकाशित किया है । साधन का प्राण है ' श्रीकृष्ण स्मृति ' और श्री कृष्ण स्मृति का जीवन है ' प्रार्थना '। कृपा अभिलाषा की प्रार्थना ही साधकों के पक्ष में एकमात्र अवलम्बन है । और उसमें भी दैन्यता एवं क्रन्दन भरी अन्तस्तल की पुकार करूणामय भक्तवत्सल भगवान के ह्रदय में उथलपुथल मचा देती है और वे भक्त की ओर खिंचे चले आते है । " क्रन्दन यदि जानासि किं दूरः करूणार्णवः "।

♻ पर किसी भी रचना के पठन से पहले उसकी पृष्ठभूमि में अगर उसके रचियता का चरित्र , उसकी भक्ति का स्तर का मनन चिन्तन हो तो उनकी  रचना के स्तर का भी ज्ञान पूर्ण रूपेण हो जाता है ।

           इसी आशय से सर्वप्रथम श्री नरोत्तम ठाकुर के चरित्र का गान कर इसी श्रृंखला में हम क्रमबद्ध श्री नरोत्तम-प्रार्थना के पदों का श्रवण एवम् मनन करेंगें ।

क्रमशः .........

॥श्री राधारमणाय समर्पणं ॥

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