भाव में डुबकी

भाव में डुबकी कृपा तो भाव से छूटना भी कृपा हमें लगे । हम विक्षेपक को रावण नही राम ही मान ले । तब भाव नही टूटेगा । उनकी कृपा से वह गये तो पीड़ा भी रसीली होगी । जिससे बाहर भी किसी को पीड़ा न हो । यह वह कहे ... आंतरिक रूप ।
दूसरी बात , अपने भाव का नहीँ , सबके भाव की गहनता का चिंतन हो । हम चिन्तन करें सब उन्हें खूब दुलार करे । खूब नेह करे । खूब प्रेम करे । फिर भाव नही छूटेगा ।
हम स्व हेतु ही चिन्तन कर पाते । हम चिन्तन करे कि प्यारे प्यारी अमुक सखी पर सहज रस की कृपा करें । सन्त कृपा सबको मिले । ब्रज रस की पुलकन में सब डूब जावें ।
परस्पर रस खण्डन सहज है। परस्पर रस गहन हो यह भाव सहज होकर भी असहज ।

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