कृष्ण विरह
राधे राधे शुभ प्रभात
🌼🌹आज की "ब्रज रस धारा"🌹🌼
दिनांक 28/01/2017
रासपंचाध्यायी के प्रथम अध्याय के श्लोक २७ में भगवान गोपियों
को बड़े रहस्य की बात बता रहे है,यही बात
भगवान ने उद्धव जी से भी कही
थी.
"श्रवणाद दर्शनाद ध्यानान्मयि भावो नु कीर्तनात
न तथा सन्निकर्षण प्रतियात ततो गृहान"(27)
अर्थात - गोपियों मेरी लीला और गुणों के श्रवण से
रूप के दर्शन से उन सबके कीर्तन और ध्यान से मेरे प्रति जैसे
अनन्य प्रेम की प्राप्ति होती है वैसे प्रेम
की प्राप्ति पास रहने से नै होती इसलिए तुम लोग
अभी अपने अपने घर लौट जाओ.
यहाँ भगवान ने अपनी कथा के श्रवण, कीर्तन,
दर्शन, ध्यान के बारे में गोपियों को बताया है.गोपियों भागवत कि कथा सुनो, यहाँ
ये शंका नहीं करनी चाहिये कि भागवत
की कथा तो द्वापर में ही लिखी गई फिर
भगवान गोपियों से कैसे कह रहे है क्योकि भागवत तो अनादि काल से है
जिसका उपदेश भगवान ने स्वयं अपने मुख से ब्रम्हा को दिया.
यहाँ भगवान गोपियों से कह रहे है जैसे प्रेम की प्राप्ति पास
में रहने से नहीं होती वैसे प्रेम की
प्राप्ति, दूर रहने से होती है. पास रहने से प्रेम कम हो
जाता है क्योकि पास में रहने से दोष बुद्धि उत्पन्न हो जाती
है. और दूर रहने से प्रियतम से प्रेम बढ़ जाता है, इसी लिए
विवाह के बाद वर्ष में एक बार पत्नी को मायके जाने का रिवाज
बनाया गया होगा ताकि पति पत्नी में वह प्रेम जो वर्ष भर साथ
रहने से कम हो गया हो कुछ दिन दूर रहने से बढ़ जाए.
भागवत में तो इसका तथ्य भी है भगवान की
सोलह हजार एक सौ आठ रुक्मणि आदि रानियों को जो नित्य संपर्क मिला वे
फिर भी नीचे रह गई और गोपियों को वियोग मिला वे
गोपियाँ उच्च कोटि में चली गई.
जब उद्धव जी ने भगवान से पूँछा तो भगवान ने भी
यही किया कि मेरा विरह मेरे सानिध्य से भी कई गुना
बड़ा है, मेरा विरह एक अमूल्य रत्न है और ये रत्न में हर
किसी को नहीं देता केवल किसी
किसी अधिकारी को ही देता हूँ और
इसकी सबसे बड़ी अधिकारी गोपियाँ है,
इसलिए मैंने उन्हें सानिध्य नहीं विरह दिया.
इसलिए जब भगवान का विरह गोपियों को हुआ तो गोपियाँ एक दूसरे से भगवान
के श्रवण कीर्तन ध्यान की ही बाते
करती थी और वे कभी भी
मथुरा भगवान से मिलने के लिए नहीं गई.क्योकि उन्होंने भगवान
के मुख से ही ये सुना कि सानिध्य से बड़ा विरह है और
श्री कृष्ण के मथुरा जाने के बाद प्रत्यक्ष अनुभव किया, कि
कृष्ण से बड़ा कृष्ण विरह है.
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