राम

राम

*परमात्मा की प्राप्ति की संसार में जितने उपाय बतलाय गये हैं उन सब में सब से बढ़कर के हर वक्त भगवान् की स्मृति रहे, यह चीज है|* आजतक भगवान् को जैसे समझे हैं, वैसी स्वरूप की स्मृति हर वक्त रहे| हर वक्त स्मृति रहने में जो चीज सहायक है, उसी का सहारा लेना चाहिए – जैसे सत्संग, और ज्ञान, वैराग्य, भक्ति आदि विषयों की पुस्तकें| *भगवान् की निरंतर स्मृति के लिए जो वस्तु सहायक है, वो ही वास्तव में हमारी वास्तु है, वो ही व्यक्ति हमारा मित्र है, वो ही परिस्थिति हमारे लिए मंगलकारक है, जिसकी परिणाम स्वरूप में भगवान् की स्मृति बनी रहे|* अपने इष्ट देव का स्वरूप को सर्वोपरी माने| *स्मृति, श्रद्धा पूर्वक और निष्काम भाव से होनी चाहिए|* कोई इच्छा नहीं रखे – न भोगों की, न मुक्ति की|

*भगवान् की स्मृति सभी साधनों में सहायक ही नहीं, प्रधान है|* ज्ञान के मार्ग में निर्गुण निराकार की स्मृति सहायक है| सगुण निराकार और सगुण साकार में भी स्मृति सहायक है| *स्मृति में नाम सहायक है|* इसलिए नाम का जप और स्वरूप का ध्यान करना चाहिए| *वाणि, स्वास या मन से नाम का जप करे और मन से ध्यान करे|*

*जप निरंतर, आदरपूर्वक और निष्काम होने से उसकी महिमा अधिक है| नाम के जप के साथ साथ नामी (भगवान्) की भी स्मृति रहे तो सोने में सुगंधी|* भगवान् के स्वरूप के स्मृति के साथ उनके गुण प्रभाव तत्व रहस्य की स्मृति रहे तो और भी लाभ दायक है| *शीघ्र ही बेड़ापार है|* सगुण साकार में लीला और धाम की भी स्मृति रहे तो वो भी सहायक है| निर्गुण निराकार में भगवान् की स्वरूप की स्मृति सब से बढ़कर है|

नारायण नारायण नारायण नारायण

श्री जयदयालजी गोयन्दका

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