निर्मल प्रेम (तृषित जु)

होता क्या है , उन्हें प्रेम । आपको हो गया । पर किसी को प्रेम होता ही नही । उनके अतिरिक्त । उनके प्रेम का सुमिरन भजन मनन रसिक किये । उनका प्रेम यानि , रस , लीला गान । मेरे प्रेम का चिंतन न कर उनके प्रेम में हम डूबे रहे । जो उनके प्रेम में डूब गया , वह ही उनका निर्मल प्रेमी । यानी रस भाव में । आप गीत गोविन्द की सेवा देते न । वह उनका ही प्रेम । आपका प्रेम उनके प्रेम में डूब गया । यह ही आपकी सिद्धि है । अब आपका पृथक और उनका पृथक प्रेम हो तो वह इतना निर्मल नहीँ होगा । उनके प्रेम अर्थात उनके निर्मल रस में आप डूब गए । यह ही आपका निर्मल प्रेम ।

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