गोविन्द का वास

एक समय देवर्षि नारदजी ने भगवान से पूछा:- देवेश्वर, आप कहाँ निवास करते हैं?
इस पर भगवान ने कहा:-नारद, न तो मैं वैकुण्ठ में वास करता हूँ और न योगियों के हृदय में, मेरे भक्त जहाँ मेरा गुणगान करते हैं,वहीं मैं भी रहता हूँ-
नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न वै।
मभ्दक्ता यत्र गायंति तत्र तिष्ठामि नारद॥
बस, फिर क्या था, देवर्षि नारदजी ने भगवद्गुणगान प्रारंभ कर दिया।
देवर्षि नारदजी ने अनुभव किया कि भगवान भक्त के प्रेम के वशीभूत हैं तथा प्रेम का, अनुराग का, अनुरक्ति का मार्ग सहज और सुलभ भी है, इसलिये अनन्य प्रेम से उन्हें रिझाना चाहिये।
इसी बात को बताने के लिये इन्होंने चौरासी सूत्रों की उभ्दावना की, ये ही चौरासी सूत्र भक्तिसूत्र के नाम से प्रासिद्ध हैं, जिनमें प्रेम की महाभाव दशा का बहुत-ही अद्भुत वर्णन हुआ है।
इस भक्ति सूत्र के सूत्र छोटे-छोटे हैं, संस्कृत बहुत ही सरल है, किंतु भाव बड़ा ही गम्भीर है, ये सभी सूत्र याद करने योग्य हैं।
जैसे प्रेम के स्वरूप के विषय में बताया गया है-'अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम्॥' प्रेम का स्वरूप अनिर्वचनीय है।
यह प्रेम गुण रहित है, कामना रहित है, प्रतिक्षण बढ़ता रहता है, विच्छेद रहित है, सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर है और अनुभव रूप है-
'गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षणवर्धमानमविच्छिन्नं सूक्ष्मतरमनुभवरूपम्॥'
साथ ही भक्ति क्या है इसे बताते हुए कहा गया है:- 'तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति॥'
अर्थात अपने सब कर्मों को भगवान को अर्पण करना और भगवान का थोड़ा-सा भी विस्मरण होने में परम व्याकुल होना ही भक्ति है।
नारदजी प्रेमाभक्ति को कर्म, ज्ञान और योग से भी बढ़ कर बताते हुए कहा है:- "सा तु कर्मज्ञानयोगेभ्
योऽप्यधिकतरा॥"
भक्ति को प्राप्त करने के मुख्य साधनों में देवर्षि नारदजी ने भगवत्प्रेमी महापुरुषों की अथवा लेशमात्र भी भगवत्कृपा को ही माना है:- 'मुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवत्कृपालेशाद्वा॥'
यह भी बताया गया है कि महापुरुषों का सगं अथवा सत्संग बड़ा ही दुर्लभ, अगम्य और अमोघ है तथा यह भगवान् की कृपा से ही प्राप्त होता है:- 'महत्सगंस्तु दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्र्च, लभ्यतेऽपि तत्कृपयैव॥'
भगवान और उनके भक्तों में भेद का अभाव है:- 'तस्मिंस्तज्ज्ने भेदाभावात्॥'
देवर्षि नारदजी बताते हैं कि भगवत्प्रेमी भक्त स्वयं तो तरता है, लोकों को भी तार देता है:-'स तरति स तरति

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला