शरणागति

🌹🌹🌹जय श्री कृष्ण🌹🌹🌹
🌹🌹🌹जय श्री राधे🌹🌹🌹

🌻🌻|| श्रीहरि: ||🌻🌻

*सत्संग पीयूष : शरणागति*

*खोज पकड़ सैंठे रहो, धणी मिलेंगे आय ।*
*अजया गज मस्तक चढ़े, निर्भय कोंपल खाय ।।*

बहुत सी भेड़ बकरियाँ जंगल में चरने गयीं। उनमें से एक बकरी चरते-चरते एक लता में उलझ गयी। उसको उस लता में से निकलने में बहुत देर लगी, तब तक अन्य सब भेड़ बकरियाँ अपने घर पहुँच गयीं। अँधेरा भी हो रहा था। वह बकरी घूमते-घूमते एक सरोवर के किनारे पहुँची। वहाँ किनारे की गीली जमीन पर सिंह का एक चरण चिह्न अंकित था। वह उस चरण चिह्न के शरण होकर उसके पास बैठ गयी। रात में जंगली सियार, भेड़िया, बाघ आदि प्राणी बकरी को खाने के लिए पास में आए तो उस बकरी ने बता दिया कि ‘पहले देख लेना कि मैं किसके शरण में हूँ, तब मुझे खाना!’ वे चिह्न को देखकर कहने लगे- ‘अरे, यह तो सिंह के चरण- चिह्न के शरण है, जल्दी भागो यहाँ से! सिंह आ जाएगा तो हमको मार डालेगा।’
इस प्रकार सभी प्राणी भयभीत होकर भाग गये। अंत में जिसका चरण-चिह्न था, वह सिंह स्वयं आया और बकरी से बोला- ‘तू जंगल में अकेली कैसे बैठी है?’ बकरी ने कहा- ‘यह चरण चिह्न देख लेना, फिर बात करना। जिसका यह चरण चिह्न है, उसी के मैं शरण हुए बैठी हूँ।’ सिंह ने देखा कि ‘ओह! यह तो मेरा ही चरण चिह्न है, यह बकरी तो मेरे ही शरण हुई!’ सिंह ने बकरी को आश्वासन दिया कि अब तुम डरो मत, निर्भय होकर रहो।

रात में जब जल पीने के लिए हाथी आया तो सिंह ने हाथी से कहा- ‘तू इस बकरी को अपनी पीठ पर चढ़ा ले। इसको जंगल में चराकर लाया कर और हरदम अपनी पीठ पर ही रखा कर, नहीं तो तू जानता नहीं कि मैं कौन हूँ? मार डालूँगा!’ सिंह की बात सुनकर हाथी थर-थर काँपने लगा। उसने अपनी सूँड़ से झट बकरी को पीठ पर चढ़ा लिया। अब वह बकरी निर्भय होकर हाथी की पीठ पर बैठे-बैठे ही वृक्षों की ऊपर कोंपलें खाया करती है और मस्त रहती।
ऐसे ही जब मनुष्य भगवान् के शरण हो जाता है, उनके चरणों का सहारा ले लेता है, तब वह संपूर्ण प्राणियों से, विघ्न-बाधाओं से निर्भय हो जाता है। उसको कोई भी भयभीत नहीं कर सकता, उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

*जो जाको शरणो गहै, ताकहँ ताकी लाज ।*
*उलटे, जल मछली चले, बह्यो जात गजराज ।।*

भगवान् के साथ काम, भय, द्वेष, क्रोध, स्नेह आदि से भी संबंध क्यों न जोड़ा जाए, वह भी जीव का कल्याण करने वाला ही होता है। तात्पर्य यह हुआ कि काम, भय, द्वेष आदि *किसी तरह से भी जिनका भगवान् के साथ संबंध जुड़ गया, उनका तो उद्धार हो ही गया*, पर जिन्होंने किसी तरह से भी भगवान् के *संबंध* नहीं जोड़ा, उदासीन ही रहे, वे भगवत्प्राप्ति से वंचित रह गए।

*श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी महाराज*

श्री राम जय राम जय जय राम

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