भगवतलीला रस

-- श्री भागवतलीला रस --

इस शरीर रूपी रथ को जो श्री कृष्ण के हाथों में दे देता है, उसी की जीत होती है। कृष्ण की लीला कथा हमें अपने दोषों से भली भांति अवगत कराती है। कृष्ण की लीला कथा के श्रवण से हमें भजन करने की प्रेरणा मिलती है और वैसा होने पर हमारी इन्द्रियां शुद्ध होती हैं, हृदय शुद्ध होता है। गंगास्नान शरीर को शुद्ध करता है, अतः गंगास्नान की अपेक्षा कृष्ण कथा स्नान अधिक श्रेष्ठ है।
कुरूक्षेत्र में आए हुये माता पिता से श्री कृष्ण ने एक दिन पूछा, आपके मन में कुछ इच्छा है? यदि है तो मैं पूर्ण करूँगा।
वसुदेव ने कहा, वैसे तो मेरी कोई इच्छा नहीं है। मेरी एक यही इच्छा है कि मैं अन्तकाल में तेरा ही स्मरण करता रहूँ और तेरा नाम लेते हुए ही देहत्याग करूँ।
शरीर त्याग के समय बडी वेदना होती है। सो मन को ऐसी शिक्षा दो कि मृत्यु के समय उस वेदना के बीच भी भगवान की ही याद आए। मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने वाला व्यक्ति धन्य है। ऐसे व्यक्ति का ही जीवन सार्थक है। मृत्यु की चिन्ता करने से पाप से बचा जा सकेगा।
एक बार एकनाथ महाराज से किसी ने पूछा, आप तो हमेशा ईश्वरमग्न और आनन्दित रहते हैं।
मेरा मन तो ईश्वर में लग ही नहीं पाता है। ऐसा क्यों होता है?
एकनाथ महाराज ने स्वगत कहा कि मन संसार में से हटेगा तो प्रभु में लगेगा। किन्तु प्रकट कहा, आज तो मैं कुछ नहीं कह सकता। आज से सातवें दिन तेरी मृत्यु होगी। उस दिन तू मेरे पास आना, मैं तुझे सब कुछ बताऊँगा।
मृत्यु को निकट सुनकर वह मनुष्य घबडा गया। अपने पुत्रों को अपनी सारी धन सम्पत्ति तथा कारोबार सौंप दिया और प्रभु भजन में लग गया। मृत्यु की तैयारी करने लगा।
सातवें दिन एकनाथ महाराज के पास आया तो उन्होंने उससे पूछा, क्यों कैसी रही? इन दिनों कैसी मौज उडायी?
वह गृहस्थ कहने लगा, मस्तक पर मृत्यु को मँडराते देखा तो भोग विलास को भूल गया और ईश्वर का भजन करता रहा।
एकनाथ जी - अब तो मेरी ईश्वरमग्नता का रहस्य तूने जान लिया न? मैं हमेशा मृत्यु को दृष्टि के समक्ष रखता हूँ, अतः मन ईश्वर भजन में लगा रहता है।
भगवान् ने देवकी की इच्छा जानने की जिज्ञासा की। देवकी ने कहा, मुझे कहते हुये संकोच तो हो रहा है, किन्तु मेरी इच्छा यह है कि कंस द्वारा मृत्यु को प्राप्त अपनी सभी संतानों को मैं देखूं।
एक बार भगवान् ने यशोदा से भी उसकी इच्छा पूछी थी। तो यशोदा ने कहा था मेरी तो यही इच्छा है कि मैं निरन्तर तेरे दर्शन करती रहूँ। एक क्षण तू मेरी दृष्टि से ओझल नहीं हो।
कहां यशोदा की इच्छा और कहां देवकी की।
भक्ति में इच्छा विघ्नकर्ता है। इच्छा ही पुनर्जन्म का कारण है। कृष्ण सुतल पाताल लोक से अपने सभी भ्राताओं को ले आये। देवकी ने उनको देख लिया और कहा, बस अब मेरी यही इच्छा है कि मेरी मृत्यु सुधरे।
जो अपना प्रतिक्षण सुधारता है। उसी का अंतिम समय सुधरता है। प्रभु ने वसुदेव देवकी को दिव्य तत्व ज्ञान समझाया।

#श्रीभागवतलीलारस
#जयश्रीसीताराम

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