श्याम भये राधा

स्याम भए राधा बस ऐसैं।
चातक स्वाति, चकोर चंद ज्यौं, चक्रवाक रबि जैसें।
नाद कुरंग, मीन जल की गति, ज्यौं तनु कैं बस छाया।
इकटक नैन अंग-छबि मोहे, थकित भए पति जाया।
उठैं उठत, बैठैं बैठत हैं, चलैं चलत सुधि नाहीं।
सूरदास बड़भागिनि राधा, समुझि मनहिं मुसुकाहीं।

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