सखी छिप जाओ(तृषित जु)

सखी वें आ रहे ... छिप जाओ ।

*आ ... आ ... आ रहे !! ... छिप ... छिप ... हाय ! क्यों सखी ...*

सखी उन्हें व्याकुल होना होगा तभी वें समझेंगे तुम्हारे प्रेम को ... हम ऐसे कैसे मिलने दे तुम्हें ... ???
तनिक कुछ मूल्य तो लें ...

*व्याकुल ... किसे ... उन्हें ... हाय !! ना ... ना ... ना ... !!! कौनसा मूल्य ! ना सखी ... मैं उनकी ही हूँ जो हूँ ... उनके नेत्र मुझे बिन मोल खरीद चुके है न ... ना ! ना ... व्याकुल ! सखी ... ना !!*

हमारी पिय मिलन को बाँवरी सखी ! तुझे हमने सजाया क्यों ? उनके लिए न !! तो इस सृंगार का रस उन्हें हो तो कुछ वह व्याकुल भी तो हो ...

*श्रृंगार ! ... हटा दो न फिर यह श्रृंगार ... उन्हें व्याकुल करने का कारण कैसे होऊँ ... ना !! तुम ले लो यह श्रृंगार ... यह दासी बिन श्रृंगार उनसे मिलेगी ... सखी वह मेरे प्राण है ... यहाँ हुए और मैं छिप भी सकूँ यह कैसे होगा ... ???*

ओह ! सखियों ... अब इसका क्या करें ... इससे खेल होता ही नहीँ ... देख पगली ... तू है उनकी ... पर उन्हें सहज दिख गई और कुछ व्याकुल होने पर दिखी तो इसमें लाभ उनका ही ... क्योंकि व्याकुलता में वह सहजता खो देंगे ... और फिर हृदय द्रवीभूत हो एक रस होने को उछल पड़ेगा ...

*सखी ... यह सब समझ न आया ... सच कह ... क्या न मिलने से उन्हें सुख होगा ... सखी मैं उनकी वस्तु मात्र हूँ ... क्या यह अपराध तो नहीँ होगा न !! क्योंकि कैसे ... उनकी अभिलाषा का हनन कर सकती हूँ ... मुझे न पाकर उनमें कौनसा सुख होगा ... ना ... ना ... ना ! सखी मुझे न पा कर ... वह वैसे ही व्याकुलित होंगे जैसे सर्प मणि के न मिलने पर ... ! यह मणि उनके नेत्र है ... उनका सुख ... मैं हूँ क्योंकि उनकी हूँ ... फिर ... सर्प मणि तो बेचारे सर्प की पिपासा समझ नहीँ सकती ... उनका असन्तोष !! कही मेरे प्राण न लें लें ... और सखी उनके सुख बिन यह प्राण भी छूट न सकेंगे ... तो ... तो सखी ... यह वेदना कैसे ... कैसे ... सखी उन बिन मैं स्वयं में पिंजरे में बंद सारिका सी हूँ ... सखी अपने प्राण से कैसे छिपुं ... न ... न !!*

सखियाँ कुछ मन्त्रणा कर ...
देख उन्हें सुख ही वर्द्धन होगा ... तू रति संग जा ... पीछे से आ उन्हें छुना ... अचानक तेरा स्पर्श पा कर वह ... अहा सखी !! सखी तू हमारी भी है न ... देख व्याकुलता तो होगी पर ... उन्हें सुख होगा !! सच पगली !! परिणाम उनका सुख ही है हमारा ...

*सखी उन्हें सुख होगा ... परन्तु जब उन्हें असन्तोष हुआ तो ... उन्हें लगा कही कि यह राधा रूठ गई उनसे तो ... सखी वह प्राण हमारे ... मैं अवशेष हूँ उनकी ! वें प्राणवायु हमारे ... उन्हें असन्तोष हुआ तो फलतः मुझसे सहा कैसे जाएगा ?? उनके सुख मात्र हेतु तो मेरी भूमिका है ... उनका सुख ही यह मेरी पृथक आवश्यकता है ... वरन हम ... !!*

सखियाँ पुनः मन्त्रणा करती है ... एक सखी उनमें से चुप चाप बाहर चली जाती है ...

सखियों से लिपट प्यारी उन्हें होने वाली पीड़ा के स्मरण मात्र से मूर्छित होने लगी है ... सखियाँ ललिता जु को देख रही है ... नेत्रों से ललिता जु सबको सम्बल देती है और मुस्कुरा देती है ... ललिता जु के मुस्कुराने से सबमें प्राण आते है कि प्रियाप्रियतम हित का ही नाम सखी है ... सखी जो कहेगी सुन्दर सुखफल ही होगा ...

वह सखी पुनः भागती हुई ... हाँफती हुई भीतर आती है ... मुख से श्यामा ... श्यामा ... कह रही है ! उसकी अधीर वाणी से हल्के हल्के नेत्र खोल श्यामा उसे कौतूहल से देखती है , ... श्यामा ... श्यामा ... हम यहाँ प्रतीक्षा कर रहें है ... श्यामसुंदर आम्रकुंज में प्रवेश कर रहे है ... तुझे पुकारते हुए ...

*हाय ... चल ... चल ! सखी शीघ्र मुझे लें चल ... अपने प्राणों तक ... शीघ्र चल पगली ... यह प्राण उन बिन सम्बल नहीँ जुटा पा रहे ...*

उसका हाथ पकड़ प्रिया जु सजी श्रृंगारित ऐसे भागती है जैसे चातकी स्वाति मेघरस अणु के पान को भागती है ... !

सब सखियाँ ... भागती हुई श्यामा को देखती है ... रूप ललिता जु के नेत्रों में देखती है , रूप की अधीरता से ललिता जु स्वीकृति देती है और वह अपनी श्यामा के पीछे-पीछे भाग जाती है ... !!

श्यामसुंदर कहां आयेंगे इस पर सखियाँ आपस में वार्ता कर रही है ... ललिता जु के कहने पर वीणा पर रस रागिनियाँ छेड दी जाती है ... एक सखी प्रिया की नृत्य पेजनियों को बजाती है ...

प्रिया के नृत्य पद स्पन्दन से विचलित मनोहर दुविधा में होते है क्योंकि पद तल का स्पंदन और सौरभ आम्र कुँज से आ रहा है ... परन्तु गहन रागिनियों और नूपुर ध्वनियों से वह बलात इस रस कुँज तक आ जाते है ... !!

यहां सब है परन्तु श्रीप्रिया दर्शन ... विचलित मनहर के दृग कंज अपनी कमिलिनी को निहारने के लिये सारे रस कुँज की परिक्रमा लगाते है ...
जब नेत्र प्रिया को निहारने में असफल होते है तो परिणाम अधर और व्याकुलता का ज्वर हृदय से जैसे बिन आदेश फुट पड़ता है ...
नेत्र ललिता जु पर ... प्रिया कहां है ... दिखाई नहीँ दे रही ! नेत्र सजल हो गए है बस बहे नहीँ ...

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